नेता जी मंच पर चढ़े और भीड़ की तरफ एक नज़र डाली। आज भीड़ कुछ ज़्यादा ही थी, क्योंकि भाषण के बाद समोसे बँटने वाले थे। नेता जी ने माइक को सीधा किया और बोले, “भाइयो और बहनो, देश इस समय कठिन दौर से गुज़र रहा है।”
यह सुनते ही एक बुज़ुर्ग ने खांसते हुए कहा, “हम तो कब से कठिन दौर में हैं, तुमको अभी पता चला?”
नेता जी ने ध्यान नहीं दिया। भाषण जारी रखा, “हमने आपकी भलाई के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं। सड़कें बन रही हैं, अस्पताल खुल रहे हैं, रोजगार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं।”
तभी एक युवा ने पूछा, “सड़कें कहाँ बन रही हैं? मैं तो आज ही गड्ढे में गिरकर आया हूँ!”
भीड़ में हलचल मच गई, लेकिन नेता जी को इससे फर्क कहाँ पड़ता था? वे तो अपने लिखे भाषण को पढ़ते जा रहे थे, “हमारी सरकार ने हर घर में पानी पहुंचाने का वादा किया था, और आज वो पूरा हो रहा है।”
एक महिला बोली, “पानी तो है, पर नल में नहीं, मेरी आँखों में!”
जनता हंसने लगी, पर नेता जी को इससे क्या? वो तो अपनी धुन में थे। उन्होंने अगला वादा किया, “आने वाले समय में हम आपको ऐसी बिजली देंगे, जो कभी नहीं जाएगी।”
इस पर भीड़ में से किसी ने कहा, “हाँ, क्योंकि वो आएगी ही नहीं।”
नेता जी थोड़े असहज हुए, लेकिन फिर उन्होंने अपना सबसे दमदार वादा किया, “हम हर व्यक्ति को रोजगार देंगे!”
इस बार एक बेरोजगार युवक खड़ा हुआ और बोला, “नेता जी, अगर आपको रोजगार देने का इतना ही शौक है, तो मुझे अपनी स्पीच लिखने का काम दे दो। कम से कम सच्चाई का थोड़ा मसाला डाल दूंगा!”
भीड़ में ठहाके गूंजने लगे। नेता जी को अब समझ में आ चुका था कि भाषण का असर नहीं हो रहा। उन्होंने आखिरी चाल चली, “और अंत में, हम समोसे बाँटने जा रहे हैं।”
भीड़ अचानक से चुप हो गई, और फिर एक व्यक्ति ने कहा, “नेता जी, समोसे तो बाँट दो, पर मुद्दे भी बाँटते तो अच्छा होता!”
- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,
(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)