By कमलेश पांडे | Jun 02, 2024
कोई भी एग्जिट पोल चुनाव परिणाम तो नहीं होता, लेकिन बातों ही बातों में चुनाव परिणामों की ओर इशारे कर जाता है, जो अक्सर समय की कसौटी पर सही साबित होते आये हैं, कुछ प्रायोजित अपवादों को छोड़कर। इसलिए इसके मायने को गम्भीरता पूर्वक समझने की जरूरत होती है। जहां तक आम चुनाव 2024 के एग्जिट पोल के नतीजे की बात है तो ये शनिवार 1 जून को देर शाम तक सामने आ गए। जबकि वास्तविक नतीजे मंगलवार 4 जून को देर शाम तक प्राप्त हो पाएंगे।
यदि औसत की भी बात करें तो भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को 350 से अधिक और कांग्रेस नीत इंडिया गठबंधन को 150 के कम सीटें प्राप्त होने का अनुमान लगाया गया है। वहीं, अन्य दल बमुश्किल 36 सीटें ही जीत पाएंगे। ये एग्जिट पोल भाजपा और कांग्रेस के बीच जनाधार के जबर्दस्त फासले के भी संकेत दे रहे हैं। क्योंकि जहां सिर्फ भाजपा को 300 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान है, वहीं कांग्रेस एक बार फिर दो अंकों यानी लगभग 60 सीटों पर ही सिमटती नजर आ रही है।
इस प्रकार प्रथमदृष्टया एग्जिट पोल के नतीजे जाहिर कर चुके हैं कि जनता ने सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं, बल्कि मजबूत विपक्ष के लिए जनादेश दिया है, जो एक नई बात है। क्योंकि चाहे 2014 का जनादेश हो या 2019 का, लोगों ने मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस को लोकसभा की कुल सीटों में से 10 प्रतिशत सीटों का भी जनादेश नहीं दिया था, जिससे दोनों लोकसभा में उसका कोई वैधानिक नेता प्रतिपक्ष तक नहीं बन पाया। क्योंकि नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए लोकसभा की कुल सीटों में से 10 प्रतिशत सीटें जीतना अनिवार्य होता है। हालांकि, इस बार प्रतीत हो रहा है कि जनता विपक्ष पर भी मेहरबान है और उसे मजबूत बनाने के संकेत दे दिए हैं, ताकि वह मजबूती पूर्वक सरकार की पहरेदारी कर सके।
ऐसे में चर्चा आम है कि लोगों को मोदी सरकार की संतुष्टिकरण वाली नीतियां तो पसंद हैं, लेकिन कतिपय राजनीतिक व प्रशासनिक मामलों में उनकी मनमानी नापसंद भी है। इसलिए उन्हें थोड़ा कमजोर करते हुए उनके सामने एक मजबूत विपक्ष देने की कोशिश की है, ताकि दूरगामी व्यापक जनहित की रक्षा की जा सके। साफ शब्दों में कहें तो जनता को यह कतई पसंद नहीं है कि उनके वोट से बनने वाली सरकार पूंजीवादी ताकतों के हाथ में खेले और जनविरोधी कानून संसद में बनाये। जैसा कि पिछले 10 वर्षों में और बाजपेयी सरकार के 6 वर्षों में महसूस किया जा चुका है।
एग्जिट पोल के नतीजे कांग्रेस और भाजपा दोनों को यह स्पष्ट संदेश दे रहे हैं कि भारतीय राजनीति में उन्हें यदि प्रासंगिक बने रहना है तो अपनी नीति रीति में व्यापक बदलाव करने होंगे, अन्यथा लोग क्षेत्रीय दलों को आगे बढ़ाएंगे जो कि उनके अरमानों के सच्चे और अच्छे प्रतिबिंब होते हैं। यही वजह है कि पिछले दो लोकसभा चुनावों में मृतप्राय हो चले क्षेत्रीय दल इस बार के लोकसभा चुनाव में पूरी मजबूती के साथ उभरे हैं और जहां-जहां पर वो कांग्रेस या भाजपा के साथ रहे, वहां पर उन्होंने उन्हें लाभांवित भी किया है। यह बात एनडीए से ज्यादा इंडिया गठबंधन पर लागू होती है।
एग्जिट पोल के नतीजों से साफ है कि भाजपा जहां दिल्ली, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और पूर्वोत्तर राज्यों में अपनी यथास्थिति बनाये रखने में सफल हुई है, वहीं दक्षिण भारत में कमल खिलाने के उसके मंसूबे भी पूरे होने वाले हैं। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, हरियाणा में भाजपा को उतनी क्षति नहीं हो रही है, जितना कि चुनाव पूर्व अनुमान लगाया गया। वहीं, दक्षिण भारत में कांग्रेस की स्थिति और मजबूत हुई है, जबकि हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा आदि राज्यों में कांग्रेस की स्थिति मजबूत हुई है। बिहार में राजद, उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, झारखंड में झामुमो, दिल्ली-पंजाब में आप, महाराष्ट्र में शिवसेना उद्धव और एनसीपी शरद पवार आदि के मजबूती के संकेत मिल रहे हैं।
वहीं, नरेंद्र मोदी की सरकार के लगातार तीसरी बार सत्तारूढ़ होते ही वो देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के रिकॉर्ड की बराबरी करके इतिहास रच देंगे। कांग्रेस के बाद भाजपा के लिए भी यह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।
लिहाजा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा है कि वह विश्वास के साथ कह सकते हैं कि लोगों ने राजग सरकार को फिर से चुनने के लिए रिकॉर्ड संख्या में मतदान किया है। क्योंकि लोगों ने हमारी सरकार का ट्रैक रिकॉर्ड देखा है। हमारी सरकार के कार्यकाल में गरीबों, हाशिए पर पड़े लोगों और दलितों के जीवन में गुणात्मक सुधार आया है। लोगों ने यह भी देखा है कि किस प्रकार भारत में सुधारों ने देश को पांचवीं सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बना दिया है। उन्होंने तंज कसते हुए यहां तक कह दिया कि अवसरवादी इंडिया गठबंधन मतदाताओं के दिलों को छूने में विफल रहा। मतदाताओं ने विपक्ष की पुराने दिनों में चले जाने की राजनीति को खारिज कर दिया।
- कमलेश पांडेय
वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक