By अभिनय आकाश | Dec 24, 2021
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल का एक निर्णायक लम्हा था फरवरी 1999 में उनकी लाहौर बस यात्रा। यह ऐसा फैसला था जो हिंदुस्तान और पाकिस्तान के रिश्तों में आमूलचूल बदलाव लाने की संभावना से वाबस्ता था। अटल बिहारी वाजपेयी 1999 में बस से लाहौर गये थे और अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को गले लगाकर अपनी प्रिय छवि की छाप छोड़ी। लेकिन इसके तुरंत बाद ही पीठ में छुरा घोपने की अपनी पुरानी रवायत के तहत पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध छेड़ दिया। युद्ध में पराजित होने के बाद पाकिस्तान की सियासत में भी बड़ा परिवर्तन देखने को मिला। अक्टूबर के महीने में पाकिस्तान में सैन्य शासन आ गया और कारगिल युद्ध के सूत्रधार जनरल परवेज मुशर्फ ने तख्तापलट कर खुद गद्दी संभाल ली।
क्या था आडवाणी का प्रस्ताव
मई 2001 में एक रोज अटल बिहारी वाजपेयी, जसवंत सिंह और लाल कृष्ण आडवाणी लंच की टेबल पर बैठे थे। तभी आडवाणी ने कुछ ऐसा बोला जिसकी उम्मीद वहां बैठे किसी शख्स ने नहीं की होगी। लाल कृष्ण आडवानी ने कहा कि अटल जी, आप पाक जनरल परवेज मुशर्रफ को भारत आकर वार्ता करने के लिए क्यों नहीं आमंत्रित करते? तपे-तपाए सियासतदां आडवाणी का ये प्रस्ताव बैकडोर डिप्लोमेसी से मिले संकेतों पर आधारित था जिससे पता चला था कि खुद मुशर्रफ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अकेले पड़े पाकिस्तान अपनी छवि बदलने को आतुर है। अटल जी को आडवाणी का ये प्रस्ताव सही लगा और उन्होंने हामी भर दी।
प्रत्यपर्ण संधि का जिक्र और मुशर्रफ खाली हाथ घर लौटे
वार्ता के लिए आगरा का चुनाव किया गया। 14-16 जुलाई 2001 को भारत और पाकिस्तान के बीच होटल जेपी पैलेस में शिखर वार्ता हुई। आडवाणी की पहल पर आगरा सम्मेलन की जमीन तैयार हुई। कहा जाता है कि इन्हीं आडवाणी की वजह से सम्मेलन बेनतीजा खत्म भी हो गया। आगरा सम्मेलन में वो कश्मीर सुलझाते-सुलझाते रह गए थे। दरअसल, वो जानते थे कि ऐसे मौके रोज-रोज नहीं आते। मुशर्ऱफ से मिलने पहुंचे आडवाणी ने शुरुआती बातचीत के बाद तुर्की संग प्रत्यपर्ण संधि का उदाहरण देते हुए पाकिस्तान के साथ भी ऐसी संधि करने की बात कही। जिसके तहत एक-दूसरे के देश में छिपे अपराधियों को कानून के कटघरे में खड़ा किया जा सके। मुशर्ऱफ ने इस पर हामी भी भरी लेकिन तभी आडवाणी ने कहा कि औपचारिक तौर पर यह संधि लागू हो इससे पहले अगर आप 1993 के मुंबई बम धमाकों के जिम्मेदार दाऊद इब्राहिम को भारत सौंप दें तो शांति प्रक्रिया आगे बढ़ाने में बड़ी मदद मिलेगी। लेकिन इतना सुनते भर से मुशर्ऱफ के चेहरे का रंग फीका पड़ गया और उन्होंने कहा कि आडवाणी जी दाऊद पाकिस्तान में नहीं है। एक किस्म से आगरा समझौता वार्ता शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई। पाकिस्तान के राष्ट्रपति बिना किसी समझौते के खाली हाथ अपने घर लौट गए।