घाटी में बहे बेगुनाह लहू से गुस्से में देश

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By उमेश चतुर्वेदी | Apr 25, 2025

घाटी में बहे बेगुनाह लहू से गुस्से में देश

कश्मीर घाटी में पिछले कुछ वर्षों में सिर्फ परिंदे ही नहीं चहचहा रहे थे, बल्कि देश-दुनिया से आए सैलानी भी यहां की खूबसूरती में अपना सहयोग दे रहे थे..वे भी परिंदे की तरह घाटी के कैनवस को और ज्यादा खूबसूरत बना रहे थे..यह खूबसूरती पाकिस्तान परस्त उन आतंकियों को नहीं देखी गई, जिनके लिए कश्मीर गले की नस की तरह है। अपने गले की इस नस को बचाने के लिए आतंकियों ने बाइस अप्रैल का दिन चुना, और 26 बेगुनाह लोगों का रक्त घाटी की हरियाली चादर पर बिछा दिया..ये प्राकृतिक रंग होता तो धानी कैनवस पर खूबसूरत होता..लेकिन लहू का सुर्ख रंग कभी खूबसूरती का सबब नहीं बनता..वह वीभत्सता का जरिया बनता है..जब किसी बेगुनाह का लहू जब धरती पर गिरता है तो वह क्षोभ और क्रोध का जरिया बन जाता है..बेशक यह लहू सूख जाता है, लेकिन उसकी तासीर मानवता के दिल और दिमाग में कहीं गहरे तक रच जाता है..उसे धरती पर बहाने वाले के लिए वही सैलाब बन जाता है और उस सैलाब में एक दिन उसे बहाने वाले बह जाते हैं। 


पहलगाम की धरती पर गिरा खून सूख चुका है..लेकिन वह भारत की असंख्य आंखों में उतर आया है..जब खून किसी की आंखों में उतर आता है तो उसका अंजाम बहुत भयानक होता है..भयानक उसके लिए, जिसकी वजह से वह आंखों में उतर आता है...तब उन आंखों का पानी धीरे-धीरे मरने लगता है और उसकी हर सूखी बूंद से उपजा सैलाब कहर बन कर टूटता है। भारत की असंख्य आंखों की सूख रही बूंदों से वही सैलाब उमड़ने वाला है। बिहार के मधुबनी में प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि घाटी में बेगुनाह खून बहाने वालों का पीछा किया जाएगा, उन्हें खोज निकाला जाएगा और दंडित किया जाएगा..दरअसल उसी सैलाब की निशानी है..

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अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 का खात्मा होने के बाद घाटी धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगी थी, कुछ पिछली सदी के नब्बे के दशक से पहले की स्थिति में आने लगी थी। घाटी में परिंदों की चहचहाहट के साथ ही सैलानियों के तराने गूंजने लगे थे। इसके साथ घाटी में खुशहाली लौट रही थी। पत्थर थामने और सेना पर उन्हें उछालने वाले हाथों में कहीं पतवार तो कहीं घोड़े की लगाम तो कहीं सैलानियों को राह दिखाने वाले जज्बात आने लगे थे। कश्मीर की कालीनों को एक बार फिर रंग मिलने लगा था, उन्हें कद्रदानों की बाढ़ आने लगी थी...कश्मीर के केसर की रंगत और सुगंध दूर तक फैलने लगी थी..घाटी के मेवे की पहुंच एक बार फिर दुनिया के बाजारों तक होने लगी थी..लेकिन कंगाली के दरवाजे पर खड़ा पाकिस्तान और उसके सैनिक आकाओं को यह खुशहाली पसंद नहीं आई। इसके बाद उन्होंने द रेसिस्टेंस फ्रंट के आतंकवादियों को आगे किया और पहलगाम में 24 भारतीय और दो विदेशी नागरिकों को मौत के घाट सुला दिया। भारतीय सेना की वर्दी में आए आतंकियों ने पुरूषों से कलमा पढ़ने को कहा। उनके धर्म पूछे और हिंदू बताते ही उनके सिरों को गोलियों से उड़ा दिया। इस कुकृत्य का शिकार बना भारतीय नौसेना का एक लेफ्टिनेंट, जिसकी महज छह दिन पहले ही शादी हुई थी...भारतीय वायुसेना का एक जांबाज, कानपुर का महज दो महीने पहले विवाहित एक जवान। एक मासूम बच्चे के सामने ही उसके पिता का खून बहा दिया गया। इस्लाम के नाम पर की गई इन हत्याओं के बाद आतंकी बोलते हुए चले गए कि मोदी को बता देना कि कश्मीर घाटी में जबरदस्ती बसाए जा रहे लोगों का यह बदला है...


महज दो महीने और छह दिनों का सुहाग अपने मासूम आंखों के सामने उजड़ना कैसे बर्दाश्त होगा, उन मासूम लड़कियों के दिलों पर क्या गुजरेगी, इसका ध्यान उन खूनी दरिंदों ने एक बार भी नहीं सोचा। इस्लाम के नाम पर इंसानियत का कत्ल करते वक्त उनके हाथ नहीं कांपे, ट्रिगर दबाने वाली उंगलियां नहीं थरथराईं..ऐसे में कैसे माने कि इस्लाम के अनुयायी ऐसे भी हो सकते हैं?


इन मासूस हत्याओं के बाद भारत में उबाल है। भारत इसका बदला चाहता है। भारत ने कुछ कदम उठाए भी हैं। 1960 से लागू सिंधु नदी जल समझौता रोक दिया गया है। अटारी सीमा को बंद कर दिया गया है, भारत आए पाकिस्तानी नागरिकों को वापस लौटने को कह दिया गया है। सार्क के सदस्य देशों के लिए मिलने वाला विशेष वीजा रोक दिया गया है। पाकिस्तान के साथ कारोबार थम गया है। 


पाकिस्तान की जीवन रेखा है सिंधु और उसकी सहायक नदियों से मिलने वाला पानी। इन नदियों का करीब अस्सी फीसद पानी पाकिस्तान को मिलता है। पाकिस्तान के पंजाब और सिंध की खेती इसी पानी के दम पर लहलहाती है। पाकिस्तान के कई शहरों की प्यास भी यही पानी बुझाता है। पहले से कंगाली झेल रहे पाकिस्तान के लिए भारत की ओर से लगे ये प्रतिबंध उसकी परेशानी ही बढ़ाएंगे। दिखावे के लिए पाकिस्तान को भी कुछ कदम उठाने ही थे। उसने भी उठाए हैं, मसलन हवाई सीमा भारतीय विमानों के लिए बंद कर देना और कारोबार रोकना। लेकिन भारत की तुलना में उसकी अर्थव्यवस्था कुछ भी नहीं है। ऐसे में उसकी माली हालत खराब होना स्वाभाविक है।


आम भारतीय सिर्फ इन्हीं उपायों से ही संतुष्ट नहीं है। भारत का नागरिक इजरायल की तरह की कार्रवाई का खुलेआम समर्थन कर रहा है। अपने नागरिकों के खून का बदला खून से लेना चाहता है। पुलवामा के बाद जिस तरह भारत सरकार ने सर्जिकल स्ट्राइक की थी, उस तरह के हमले की उम्मीद भारतीय जनता कर रही है। अगर मोदी सरकार ऐसे फैसले लेती है, भारतीय सैनिक अपने नागरिकों के लहू का इंतकाम लेते हैं तो भारतीय लोगों का गुस्से पर पानी पड़ सकता है। लोकतांत्रिक सरकारें जनभावना को समझती हैं, उसके दबाव में भी होती हैं,लेकिन वे जनता की सोच को ठीक उसी तरह जमीन पर नहीं उतार सकतीं। प्रधानमंत्री मोदी की जो कार्यशैली है, उसमें वे क्या करने वाले हैं, इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है। लेकिन एक बात का अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है कि लहू का बदला उनकी सरकार अपने तरीके से जरूर लेगी।

कश्मीर घाटी में पहली बार दिख रहा है कि इन हत्याओं के खिलाफ लोग उठ खड़े हुए हैं। यहां की महिलाएं तक बोल रही हैं कि वे सीमा रेखा के पार जाकर पाकिस्तान को सबक सिखाने को तैयार हैं। 1990 के बाद से यह पहला मौका है, जब कश्मीर में भी ऐसे लोग सामने आने लगे हैं, जो कश्मीर को भारत का हिस्सा मानने लगे हैं, ना सिर्फ मान रहे हैं, बल्कि खुलेआम इसे स्वीकार भी कर रहे हैं। आतंकियों के नापाक मंसूबों की भेंट चढ़े नागरिकों को वे अपना बेटा, भाई, बताते नहीं थक रहे हैं। कश्मीर का यह बदलाव बड़ा है। कश्मीरियों को बरसों बाद चहलपहल और समृद्धि की आहट दिखी है..इसमें ही उन्हें अपनी जिंदगी दिख रही है। वे अपनी जिंदगी जी लेना चाहते हैं और अपने बच्चों को मुकम्मल भविष्य देना चाहते हैं। कश्मीर की एक पीढ़ी ने अपनी जवानी संगीनों के साये में सन्नाटे के बीच गुजार दिया है, उनकी जिंदगी के बड़े हिस्से में पत्थरबाजी, आतंकियों की गोलियों की तड़तड़ाहट और त्रासदी रही है। अब जाकर उन्हें घाटी में सुकून नजर आ रहा था, गोलियों की तड़तड़ाहट की जगह गाड़ियों का हार्न, सैलानियों के गीत गूंजने लगे थे। वे अपने बच्चों को अब यही माहौल देना चाहते हैं। इसीलिए वे खुलकर आतंकियों के खिलाफ बोल रहे हैं।


हालांकि भारत में एक वर्ग ऐसा भी है, जो आतंकियों को परोक्ष रूप से समर्थन कर रहा है। इसमें वामपंथी वैचारिकी के लोगों की अच्छी-खासी संख्या हैं। इन शहरी नक्सलियों को अब एक बड़ा वर्ग मानने लगा है कि ये भारतीय समाज रूपी शरीर के मवाद हैं। इस मवाद को बहाने के लिए सर्जिकल ऑपरेशन की जरूरत है। भारत का लोक इस ऑपरेशन की जरूरत कहीं ज्यादा शिद्दत से महसूस कर रहा है। यह लोकभाव ही है कि मुस्लिम समुदाय की आक्रामक राजनीति करने वाले ओवैसी साहब भी आतंकियों के लिए गालियां निकाल रहे हैं। उन्हें सजा दिलाने की बात कर रहे हैं। कश्मीर घाटी में जो मासूम लहू बहा है, उसे जायज नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन यह लहू बेकार नहीं जाएगा। इस लहू ने बताया है कि भारत बदल रहा है, जिसमें अब शहरी नक्सली बर्दाश्त के काबिल नहीं, जिसमें जाहिल आतंकियों की बंदूकों की नोक से लोक नहीं डरता।


- उमेश चतुर्वेदी

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं

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