By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Feb 23, 2024
दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के 2005 के एक फैसले के क्रियान्वयन पर अपना स्थगन आदेश हटाते हुए यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज (यूसीएमएस) को दिल्ली सरकार को सौंपने का मार्ग बृहस्पतिवार को प्रशस्त कर दिया।
इससे पहले यह संस्थान दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के अधीन था। उच्च न्यायालय ने कहा कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का गैर-क्रियान्वयन जनहित के विरूद्ध है तथा इससे सिर्फ संस्थान के कर्मियों के निजी हितों की पूर्ति हुई है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि यह एक घटना से स्पष्ट हो जाता है जब दो जनवरी को सीटी स्कैन मशीन और वेंटिलेटर की अनुपलब्धता की वजह से एक घायल मरीज की मौत हो गयी। उससे पहले उस मरीज को अन्य अस्पतालों ने भर्ती करने से इनकार कर दिया था।
सन् 1971 में स्थापित यूसीएमएस एक सरकारी चिकित्सा महाविद्यालय है और दिल्ली विश्वविद्यालय से मान्यताप्राप्त है। यह चिकित्सा महाविद्यालय दिल्ली सरकार के गुरू तेग बहादुर अस्पताल से संबद्ध है।
अदालत ने कहा कि एक अन्य याचिका में उसके सामने पेश की गयी अंतरण योजना यूसीएमएस में बुनियादी ढांचों की भारी कमी दर्शाती है जिसके कारण मरीजों को अहम सेवाएं नहीं मिल रही हैं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पी एस अरोड़ा की पीठ ने 19 फरवरी को एक फैसले में कहा, ‘‘ हमारा सुविचारित मत है कि याचिकाकर्ताओं के कहने पर (जिन्हें प्रतिवादी नंबर 4 यानी डीयू का मौन समर्थन प्राप्त है) मंत्रिमंडल का फैसला लागू नहीं किया गया और यह बात जनहित (यहां मरीजों एवं विद्यार्थियों) के विरूद्ध थी और इससे केवल यूसीएमएस के कर्मियों के निजी हितों की पूर्ति हो रही है।’’
यह फैसला बृहस्पतिवार को न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध करायी गयी। उच्च न्यायालय ने 25 अगस्त, 2005 के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले को लागू करने के लिए केंद्र, दिल्ली सरकार और दिल्ली विश्वविद्यालय की ओर से जारी किये गये आदेशों के खिलाफ यूसीएमएस के अध्यापक एवं शिक्षकेत्तर कर्मियों के संगठनों द्वारा दायर याचिकाएं खारिज कर दीं।
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 2005 में यूसीएमएस और जीटीबी अस्पताल को दिल्ली सरकार के एकीकृत नियंत्रण में सौंपने का फैसला किया था। जीटीबी अस्पताल यमुनापार क्षेत्र में दिल्ली सरकार द्वारा संचालित प्रमुख अस्पताल है। पीठ ने 16 नवंबर, 2016 का अपना वह स्थगन आदेश भी हटा दिया जिसमें केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले पर रोक लगा दी गयी थी।