साल 2020 की शुरुआत में ही भारतीय अर्थव्यवस्था ढलान की ओर जाती दिखी। भले ही सरकार की ओर से देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के दावे किए जा रहे हो लेकिन देश अर्थव्यवस्था की कई चुनौतियों से जूझ रहा था। विश्व बैंक ने तो जनवरी के पहले ही सप्ताह में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर का अनुमान 6.5 फ़ीसदी से घटाकर 5 फ़ीसदी कर दिया था जिसे एक झटका के रूप में देखा जा रहा था। साल की शुरुआत में अर्थव्यवस्था में सुस्ती जारी थी, वहीं विकास की दर भी लगातार नीचे गिर रही थी। खाने-पीने की चीजें महंगी हो रही थी, पेट्रोल-डीजल भी महंगे हो रहे थे और दाम भी बढ़ रहे थे। साल के शुरुआत में भारत का विकास दर 4.5 फ़ीसदी तक पहुंच गया था। इसके बाद यह दावा किया गया कि भारत की अर्थव्यवस्था की विकास दर 6 सालों में सबसे नीचे पहुंच गया। निवेश के साथ-साथ निर्यात पर भी असर पड़ता दिखा। साल की शुरुआत में देश की अर्थव्यवस्था में सुस्ती, बढ़ती बेरोजगारी और बड़ा वित्तीय घाटा चिंता का विषय था। हालांकि इस बात की उम्मीद की जा रही थी कि सरकार इस साल अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कई कदम उठा सकती है। लेकिन कोरोनावायरस महामारी ने इस उम्मीद पर पानी फेर दिया। मार्च से देश की अर्थव्यवस्था पर कोरोना वायरस का असर पड़ने लगा। मार्च के आखिरी सप्ताह में देश में लॉकडाउन लगाने पड़े। भारत की अर्थव्यवस्था पर इस लॉक डाउन का तगड़ा असर पड़ा। हमारी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई।
देश में कोरोना वायरस महामारी की रोकथाम के लिये वित्त वर्ष की शुरुआत में लगाये गये लॉकडाउन की वजे से जून तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 प्रतिशत की बड़ी गिरावट देखने को मिली। दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में जून तिमाही में भारत की जीडीपी में सबसे बड़ी गिरावट देखने को मिली है। रिपोर्ट में कहा गया कि उन्नत देशों के सापेक्ष, भारत की जीडीपी में 23.9 प्रतिशत की गिरावट आयी, जो थोड़ी अधिक है। हालांकि,कड़े लॉकडाउन की वजह से कोरोना वायरस के कारण होने वाली मृत्यु की दर भारत में सबसे कम रही है। 31 अगस्त तक भारत की मृत्यु दर 1.78 प्रतिशत थी, जबकि अमेरिका में 3.04 प्रतिशत, ब्रिटेन में 12.35 प्रतिशत, फ्रांस में 10.09 प्रतिशत, जापान में 1.89 प्रतिशत और इटली में 13.18 प्रतिशत रही है।
पहली तिमाही में देश वी-आकार की तरह तेजी से वापसी कर रहा है, जो वाहन बिक्री, ट्रैक्टर बिक्री, उर्वरक बिक्री, रेलवे माल ढुलाई, इस्पात की खपत और उत्पादन, सीमेंट उत्पादन, बिजली की खपत, ई-वे बिल, जीएसटी राजस्व संग्रह, राजमार्गों पर दैनिक टोल संग्रह, खुदरा वित्तीय लेनदेन, विनिर्माण पीएमआई, मुख्य उद्योगों के प्रदर्शन, पूंजी प्रवाह तथा निर्यात जैसे संकेतकों से भी पता चल रहा है। भारत का विनिर्माण खरीद प्रबंध सूचकांक (पीएमआई) अगस्त में 52.2 पर पहुंच गया। यह पहली बार है जब लॉकडाउन के बाद किसी महीने में विनिर्माण पीएमआई 50 से ऊपर रहा है। विनिर्माण पीएमआई के 50 से ऊपर रहने से पता चलता है कि विनिर्माण से जुड़ी गतिविधियों में विस्तार हो रहा है।
भारत की अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में उम्मीद से बेहतर रहा है। ताजा सरकारी आंकड़ों के अनुसार विनिर्माण क्षेत्र में तेजी से जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में दूसरी तिमाही में केवल 7.5 प्रतिशत की गिरावट आयी जबकि इससे बड़े संकुचन का अनुमान लगाया जा रहा था। आने वाले समय में बेहतर उपभोक्ता मांग से इसमें और सुधार की उम्मीद जतायी जा रही है। लगातार दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में संकुचन से भारत तकनीकी रूप से मंदी में आ गया है। सांख्यिकी मंत्रालय के जारी आंकड़े के अनुसार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में 7.5 प्रतिशत का संकुचन हुआ। एक साल पहले 2019-20 की इसी तिमाही में इसमें 4.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। जून से ‘लॉकडाउन’ से जुड़ी पाबंदियों में ढील दिये जाने के बाद से अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहतर हो रही है। जुलाई-सितंबर तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में 0.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि इससे पूर्व तिमाही में इसमें 39 प्रतिशत की गिरावट आयी थी। कृषि क्षेत्र का पदर्शन बेहतर बना हुआ है और इसमें दूसरी तिमाही में 3.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं बिजली और गैस क्षेत्र में 4.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। वित्तीय और रीयल एस्टेट सेवा में चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सालाना आधार पर 8.1 प्रतिशत की गिरावट आयी। वहीं व्यापार, होटल, परिवहन और संचार क्षेत्र में 15.6 प्रतिशत की गिरावट आयी।
कोविड-19 महामारी से बुरी तरह प्रभावित अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सरकार ने आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज की घोषणा की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद वित्त मंत्री ने 13 मई से 17 मई के दौरान आयोजित कई संवाददाता सम्मेलनों में एएनबीपी 1.0 की घोषणा की थी। उसके बाद 12 अक्टूबर को पैकेज 2.0 और 12 नवंबर को तीसरे पैकेज की घोषणा की गई। कुल 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज के बड़े हिस्से का क्रियान्वयन बैंक और वित्तीय संस्थान कर रहे हैं। कोविड-19 संकट से अर्थव्यवस्था को उबारने और उसे गति देने तथा एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों) क्षेत्र एवं समाज के गरीब तबकों की मदद के लिये 20 लाख करोड़ रुपये के आत्मनिर्भर भारत अभियान पैकेज की घोषणा की गई।
चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में देखा जाए तो भारत के जीडीपी में संकुचन 15.7 प्रतिशत रहा जबकि एक साल पहले इसी अवधि में इसमें 4.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। हालांकि 1996 के रिकार्ड के आधार पर जुलाई-सितंबर तिमाही में गिरावट के साथ भारत तकनीकी रूप से मंदी में आ गया है लेकिन अनुमान के विपरीत बेहतर सुधार से चालू वित्त वर्ष के समाप्त होने से पहले अर्थव्यवस्था की स्थिति कुछ सुधने की उम्मीद है। विश्लेषकों ने अनुमान जताया कि है कि पुनरूद्धार तेजी से (V आकार) होगा। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि ‘लॉकडाउन’ के बाद से पुनरूद्धार उम्मीद की तुलना में तेज है और चौथी तिमाही में वृद्धि दर सकारात्मक रह सकती है। दूसरी तिमाही के बाद त्योहारों के दौरान वाहन, गैर-उपभोक्ता और रेल माल ढुलाई में तेजी दर्ज की गयी है। इसका कारण कोविड-19 टीका के अगले साल की शुरूआत में आने की संभावना है। हालांकि कुछ राज्यों में संक्रमण के फिर से बढ़ते मामलों को देखते हुए लगायी जा रही कुछ पाबंदियों से अर्थव्यवस्था के नीचे जाने का भी जोखिम है। इससे पुनरूद्धार की गति अगले दो-तीन महीने धीमी पड़ सकती है। साथ ही महंगाई दर बढ़ने की आशंका है।
भले ही 2020 भारतीय अर्थव्यवस्था के हिसाब से अच्छा नहीं रहा हो लेकिन सरकार को उम्मीद है कि 2021 भारत के अर्थव्यवस्था के लिए स्वर्णिम हो सकता है। अर्थशास्त्रियों का भी यह मानना है कि सरकार द्वारा जारी आत्म निर्भर भारत पैकेज का जैसे जैसे असर देखने को मिलेगा वैसे ही भारतीय अर्थव्यवस्था में उछाल आएगा। सरकार भी अपनी ओर से लगातार अर्थव्यवस्था को सुचारू रखने के लिए कई कदम उठा रही है। देखना दिलचस्प होगा कि आखिर अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए किस तरह के कदम आगे उठाए जाते हैं? जब साल के शुरुआत में देश का बजट पेश होगा तो इसमें किस तरह की बातें की जाती है?