चीन के लिए एक खतरनाक पैगाम लेकर आये हैं रिजॉल्व तिब्बत एक्ट के कूटनीतिक मायने

By कमलेश पांडे | Jul 18, 2024

दुनिया के थानेदार अमेरिका ने तिब्बत के मसले पर चीन को जो दो टूक संदेश दिया है, उससे एक बार फिर वह बौखला उठा है और अमेरिकी नेतृत्व के प्रति अपनी आंखें तरेरनी शुरू कर दी है। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तिब्बत-चीन विवाद के समाधान को बढ़ावा देने वाले "रिजॉल्व तिब्बत एक्ट" पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। जिसमें तिब्बत पर चीन के जारी अवैध कब्जे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए दलाईलामा या उनके प्रतिनिधियों के साथ बिना शर्त सीधी बातचीत की बात कही गई है। 


हालांकि, चीन ने इस एक्ट का विरोध करते हुए इसे अस्थिरता पैदा करने वाला बताया। उसने इस बिल पर अमेरिका से कड़ा विरोध जताया और साफ शब्दों में कहा  कि यह चीन के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप है। कोई भी व्यक्ति या ताकत, जो चीन को नियंत्रित करने के लिए या दबाने के लिए जिजांग (तिब्बत का चीनी नाम) को अस्थिर करने का प्रयास करेगी, सफल नहीं होगी। चीन अपनी संप्रभुता, सुरक्षा व विकास हितों की रक्षा के लिए कदम उठाएगा। 

इसे भी पढ़ें: अमेरिकी हथियारों की ब्रिकी पर बौखलाया चीन, ताइवान से 'लाइफ इंश्योरेंस' जैसा प्रीमियम भुगतान क्यों चाहते हैं ट्रंप?

वहीं, इससे उलट निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री सिक्योंग पेम्पा सेरिंग ने रिजॉल्व तिब्बत एक्ट पर हस्ताक्षर करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का आभार जताते हुए कहा कि यह कानून तिब्बती लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार की बात करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून में है। यह चीन के इस प्रचार व दावे को मंजूर नहीं करता कि तिब्बत कभी चीन का हिस्सा रहा है। यह धर्मगुरु दलाईलामा के आशीर्वाद से हो रहा है।


बता दें कि 1950 के दशक में चीन ने भारत की मूक सहमति पर जब तिब्बत पर अपना कब्जा जमा लिया तो वहां के सर्वोच्च धर्मगुरु यानी चौदहवें दलाईलामा 1959 में तिब्बत से भागकर भारत चले आये थे, जहां उन्होंने भारत सरकार से शरण मांगी और मिलने के बाद हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में अपनी निर्वासित सरकार स्थापित की। तभी से दलाईलामा से ज्यादा भारत चीन की आंखों में खटक रहा है। भारतीय प्रयासों के बाद 2002 से 2010 तक दलाई लामा के प्रतिनिधियों और चीनी सरकार के बीच नौ दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। 


अलबत्ता, भारत इस मुद्दे पर भले ही शांत रहा, लेकिन उसके नए मित्र अमेरिका ने उसके दर्द को समझा और एशिया में अपनी राजनीति चमकाने और दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र पर कब्जा जमाने की गरज से चीन के विरोध के बीच रिजॉल्व तिब्बत एक्ट को अमल में ला दिया। इससे पहले जम्मू-कश्मीर पर उसकी भूमिका से लगभग सभी वाकिफ हैं। इसलिए तो उसे दुनिया का थानेदार कहा जाता है। यह कटु सत्य है कि जिस काम को भारत और रूस को करना चाहिए, उसे करने का श्रेय भी अमेरिका ले चुका है।


गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने गत 12 जुलाई 2024 को तिब्बत सम्बन्धी विधेयक रिजॉल्व तिब्बत एक्ट पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसके बाद यह कानून बन गया है। यह प्रस्ताव तिब्बत के लिए अमेरिकी समर्थन बढ़ाने और इस हिमालयी क्षेत्र के दर्जे व शासन से सम्बन्धित विवाद के शांतिपूर्ण समाधान के लिए चीन और तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाईलामा के बीच संवाद को बढ़ावा देने वाला है। बकौल बाइडन, मैंने एस.138, तिब्बत-चीन विवाद समाधान को बढ़ावा देने वाला अधिनियम पर हस्ताक्षर किए हैं। मैं तिब्बतियों के मानवाधिकारों को बढ़ावा देने, उनकी विशिष्ट भाषाई, सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत को संरक्षित करने के प्रयासों का समर्थन करने के लिए संसद के दोनों सदनों की प्रतिबद्धता को साझा करता हूँ। मेरा प्रशासन चीन से दलाईलामा या उनके प्रतिनिधियों के साथ बिना किसी शर्त के सीधी बातचीत शुरू करने का आह्वान करता रहेगा, ताकि मतभेद दूर किये जा सकें और तिब्बत पर बातचीत के जरिए समझौता किया जा सके।


रिजॉल्व तिब्बत एक्ट में कहा गया है कि चीन की नीतियां तिब्बत के लोगों की जीवनशैली को संरक्षित करने की क्षमता को दबाने की कोशिश कर रही हैं। इसलिए यह कानून चीन के इस दावे को खारिज करता है कि तिब्बत प्राचीन काल से उसका हिस्सा रहा है। इस एक्ट में चीन से तिब्बत के इतिहास के बारे में गलत व भ्रामक प्रचार बन्द करने की मांग की है। यह कानून चीन के भ्रामक दावों से निपटने के लिए अमेरिका के विदेश विभाग को भी नए अधिकार देता है।


स्पष्ट है कि तिब्बत प्राचीन काल से चीन का नहीं, बल्कि भारत का पड़ोसी रहते हुए कभी कभार उसका अभिन्न अंग भी रहा है। पहले भारत के डाक वहां जाते थे और भारतीय मुद्रा भी वहां चलती थी। यह बात अलग है कि जब जब भारत के शासक कमजोर हुए तो तब तब वह स्वायत्त या स्वतंत्र देश बन गया। हालांकि आजादी के बाद पंचशील के सिद्धांतों का गला घोंटते हुए चीन ने साल 1959 में जिस तरह से तिब्बत को जबरन अपने भूभाग में मिला लिया और तत्कालीन भारतीय नेतृत्व 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' के गफलत में रहकर उसकी इस ओछी कार्रवाई का विरोध तक नहीं किया, वह एक अदूरदर्शी कदम साबित हुआ और उसकी कीमत आजतक भारत चुका रहा है।


अलबत्ता, अमेरिका के नए पैंतरे से साफ है कि अंदरखाने में उसने भारत का विश्वास जरूर हासिल किया होगा। क्योंकि चीन जिस तरह से भारत के अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकते हुए उसे दक्षिणी तिब्बत का भूभाग करार देता है, उसके परिप्रेक्ष्य में अमेरिकी कानून ने यह साफ कर दिया है कि जब तिब्बत ही चीन का हिस्सा नहीं है तो फिर भारतीय भूभाग पर उसका दावा वाकई फर्जी है। 


वहीं, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में चीनी हरकतें भी स्वीकार्य नहीं हो सकती हैं। नेपाल से लेकर भूटान की सीमा तक जो उसकी हरकतें हैं, उसके मद्देनजर रिजॉल्व तिब्बत एक्ट को चीनी चालों पर एक करारा तमाचा भी समझा जा सकता है, जो भारत ने अपने नए और रणनीतिक दोस्त से दिलवाई है। अब भी यदि चीन नहीं चेतेगा तो तिब्बत का उसके हाथ से फिसलना तय है।


अमेरिका ने जिस तरह से रूस को यूक्रेन में उलझाया, उसी तरह से अब वह चीन को तिब्बत में उलझायेगा। क्योंकि ताइवान और दक्षिण चीन सागर में चीन को घेरने से अच्छा है तिब्बत पर घेरना, ताकि दो मोर्चे पर एक साथ उलझने की गलती वह कर बैठे। अब भारत को भी चाहिए कि चीनी विश्वासघात का बदला ले और तिब्बत मुक्ति संग्राम को शह प्रदान करके अपने ऐतिहासिक भूल को सुधारे, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में भारत के खिलाफ चीन भी तो पाकिस्तान के साथ मिलकर वही कुटिल चाल चलता आया है। इसलिए जैसे को तैसा की तर्ज पर भारत को अमेरिका के साथ मिलकर चीन को कड़ा जवाब जरूर देना चाहिए।


स्पष्ट है कि रिजॉल्व तिब्बत एक्ट चीन के लिए एक खतरनाक पैगाम लेकर आया है। इसके कूटनीतिक मायने इस बात की चुगली कर रहे हैं कि पर्ल/रिंग पॉलिसी के माध्यम से भारत को घेरते रहने की अनवरत चाल चलते रहने वाला चीन अब खुद ही तिब्बत के मसले पर अमेरिकी जाल में फंसकर तड़फड़ाने वाला है, क्योंकि अमेरिका एक बार जो ठान लेता है, उसे पूरे करके ही चैन की सांस लेता है। भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान के अलावा तिब्बत को उसने चीन के खिलाफ नया मोहरा बनाया है, जो असरकारक साबित होगा, आज नहीं तो निश्चय कल!


- कमलेश पांडेय

वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक

प्रमुख खबरें

Sambhal: बीजेपी समर्थकों की भी जारी करें तस्वीरें..., अखिलेश का योगी सरकार पर पलटवार

बिहार से निकलकर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय हैं Sanjeev Jha, बुराड़ी से लगातार तीन बार जीत चुके हैं चुनाव

विपक्ष के साथ खड़े हुए भाजपा सांसद, वक्फ बिल पर JPC के लिए मांगा और समय, जगदंबिका पाल का भी आया बयान

राजमहलों को मात देते VIP Camp बढ़ाएंगे Maha Kumbh 2025 की शोभा