By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 03, 2022
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कुछ ही दिन रह गये हैं और बागियों ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तथा विपक्षी कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रखी हैं। दोनों खेमों के बड़े नेता असंतोष को खत्म करने में दिन-रात लगे हैं। दोनों ही दलों के नेता राज्य की 68 विधानसभा सीटों में से कुछ पर तो बगावत की आवाज को शांत करने में सफल रहे, वहीं उन्हें पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार को लेकर असंतोष के स्वर उठाने वाले अपने कुछ नाखुश पूर्व विधायकों और मंत्रियों पर कार्रवाई भी करनी पड़ी।
कांग्रेस के सामने अब भी करीब एक दर्जन विद्रोहियों से निपटने की चुनौती है तो उम्मीदवारी के लिए नामांकन वापस लेने की अंतिम तारीख29 अक्टूबर के बाद भाजपा को भी करीब 20 असंतुष्टों से निपटना है। अनुशासन की बात करने वाली भाजपा ने अपने चार पूर्व विधायकों और एक पार्टी उपाध्यक्ष समेत पांच वरिष्ठ नेताओं को पार्टी से अलग रुख अपनाने पर छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। कांग्रेस ने भी अपने एक पूर्व मंत्री और राज्य विधानसभा के एक पूर्व उपाध्यक्ष समेत छह नेताओं के खिलाफ इसी तरह की कार्रवाई की है।
भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘‘विद्रोहियों को उसी तरह की कार्रवाई का सामना करना होगा जैसा चार पूर्व विधायकों और प्रदेश उपाध्यक्ष को करना पड़ा। बगावत बर्दाश्त नहीं की जाएगी।’’ कांग्रेस ने भी कहा कि पार्टी अनुशासन और विचारधारा से अलग चलने वालों को कार्रवाई का सामना करना होगा। राज्य में पहली बार किस्मत आजमा रही आम आदमी पार्टी (आप) का चुनाव पर असर तो भविष्य में ही पता चलेगा लेकिन यह बात स्पष्ट है कि विद्रोही राज्य में चुनावी गणित निश्चित रूप से बिगाड़ सकते हैं जहां दशकों से बारी-बारी से कांग्रेस और भाजपा की सरकार बनती रही है।
भाजपा जनता से अपील कर रही है कि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के मतदाताओं की तरह एक बार फिर मौजूदा सरकार की राज्य की सत्ता में वापसी कराएं और हर बार सरकार बदलने के मिथक को तोड़ें। वहीं कांग्रेस लोगों को पांच साल बाद सरकार बदलने की परंपरा की याद दिला रही है। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाद्रा ने मतदाताओं से भाजपा को बाहर का रास्ता दिखाने की अपील की। पच्छाड, अन्नी, थियोग, सुलाह, चौपाल, हमीरपुर और अरकी में कांग्रेस उम्मीदवारों को बागियों का सामना करना पड़ रहा है।
भाजपा भी मंडी, बिलासपुर, कांगड़ा, धर्मशाला, झांडुता, चांबा, देहरा, कुल्लू, हमीरपुर, नालागढ़, फतेहपुर, किन्नौर, अन्नी, सुंदरनगर, नचान और इंदौरा में असंतुष्टों से चुनौती का सामना कर रही है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और पूर्व मंत्री गंगूराम मुसाफिर पच्छाड में कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ निर्दलीय किस्मत आजमा रहे हैं। इसी तरह पूर्व विधायक कुलदीप कुमार चिंतपूर्णी में कांग्रेस के बलविंदर सिंह के खिलाफ मैदान में उतर गये हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की विधानसभा सीट अरकी में उनके करीबी सहयोगी रहे राजिंदर छाकुर को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया और उन्होंने बगावत का झंडा उठा लिया। भाजपा ने पूर्व विधायकों तेजवंत सिंह नेगी (किन्नौर), मनोहर धीमान (इंदौरा), किशोरी लाल (अन्नी), के एल ठाकुर (नालागढ़) और कृपाल परमार (फतेहपुर) को निष्कासित कर दिया है जो पार्टी का टिकट नहीं मिलने पर भी चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व भाजपा विधायक महेश्वर सिंह के बेटे तथा कुल्लू राज परिवार के उत्तराधिकारी हितेश्वर सिंह बंजार में बागी उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं। कांग्रेस ने यहां से भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष खीमी राम को उतारा है जो कांग्रेस में चले गये थे। इस तरह के कुछ और भी उदाहरण हैं।