इंटरमिटेंट फास्टिंग से दिमाग को मिलता है ये फायदा, जानकर हो जाएंगे हैरान

By रितिका कमठान | Mar 18, 2024

आजकल सोशल मीडिया के जमाने में कई तरह की डाइट का चलन देखने को मिल रहा है। युवा सोशल मीडिया से इंफ्लूएंस होकर अलग अलग डाइट अपनाने लगे है। ऐसी ही एक डाइट इन दिनों काफी प्रचलन में है जिसे इंटरमिटेंट फास्टिंग कहा जाता है। इस डाइट में खाने के तरीके में किसी तरह का अंतर नहीं होता है मगर इसमें समय का अहम रोल होता है।

 

इंटरमिटेंट फास्टिंग लोगों को अपना वजन कम करने या संयमित करने में मदद करने में एक अहम रोल माना जाता है। ये मेटाबॉलिज्म को रीसेट करने, क्रॉनिक बीमारी को नियंत्रित करने, उम्र बढ़ने की गति को धीमा करने और सेहत में सुधार करने के लिए भी अहम माना जा रहा है। इस बीच कुछ शोध से पता चला है कि इंटरमिटेंट फास्टिंग मस्तिष्क को ऊर्जा तक पहुंचने और अल्जाइमर रोग जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने में भी अलग रोल अदा कर सकता है।

 

जानें क्या होती है इंटरमिटेंट फास्टिंग

आहार में कैलोरी, मैक्रोन्यूट्रिएंट संरचना ( वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का अनुपात जो डाइट के जरिए हम खाते हैं) शामिल होते है। भोजन खाने के तरीके को हम जीवनशैली को देखते हुए बदल सकते है, जैसा की इंटरमिटेंट फास्टिंग में होता है। आमतौर पर सांस्कृतिक कारण, वजन घटाने या स्वास्थ्य लाभ के लिए ये कदम उठाया जा सकता है। इंटरमिटेंट फास्टिंग में कैलोरी लेने का समय काफी कम तय किया जाता है। वहीं इस डाइट में खाना खाने का समय भी सीमित होता है, जैसे दिन में 12 से 16 घंटे महज खाने के लिए होते है। इसके बाद भोजन का सेवन करने पर रोक होती है। इस डाइट में इंटरमिटेंट का अर्थ होता है एक बार नहीं बल्कि एक तरीके को बार बार रिपीट करना। 

 

बता दें कि अगर कोई व्यक्ति लगातार 24 घंटे से अधिक समय तक भोजन के अभाव में रहता है तो इसे भुखमरी कहा जाता है। ये स्थिति लंबे समय तक जारी रहने पर अपने विशिष्ट और संभावित रूप से हानिकारक जैव रासायनिक परिवर्तनों और पोषक तत्वों की कमी के कारण उपवास से अलग है।

 

इंटरमिटेंट फास्टिंग चार प्रकार से काम करते हुए दिमाग को प्रभावित करता है। बता दें कि मस्तिष्क शरीर की ऊर्जा खपत का लगभग 20 प्रतिशत खर्च करता है। आपको चार तरीके बताते हैं इंटरमिटेंट फास्टिंग शरीर पर काम करने के साथ ही दिमाग पर भी प्रभाव डालता है। 

 

केटोसिस

कई इंटरमिटेंट फास्टिंग का लक्ष्य मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट और फैट को खत्म करना होता है। इसे हासिल करने के लिए फ्लिप मेटाबॉलिज्म का उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया को केटोसिस कहा जाता है। आमतौर पर इसमें 12-16 घंटे तक फास्टिंग होती है। इस दौरान लीवर और ग्लाइकोजन शरीर से खत्म हो जाते है। केटोन्स, जो एक तरह का केमिकल है, वो दिमाग के लिए ऊर्जा का स्त्रोत बनता है। ब्लड शूगर के स्तर को कम करने के लिए एनर्जी और क्षमता उत्पन्न करने के लिए यह धीमी मेटाबॉलिज्म प्रक्रिया होने के कारण, केटोसिस भूख, थकान, मतली, खराब मूड, चिड़चिड़ापन, कब्ज, सिरदर्द और मस्तिष्क "कोहरे" के लक्षण पैदा कर सकता है। रिसर्च में सामने आया है कि  जैसे-जैसे मस्तिष्क में ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म बढ़ती उम्र के साथ कम होता जाता है तब कीटोन दिमाग के कार्य करने और उसे संरक्षित करने और उम्र से संबंधित न्यूरोडीजेनेरेशन विकारों और संज्ञानात्मक गिरावट को रोकने के लिए एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत प्रदान कर सकता है। इसके अनुरूप, पूरकता या आहार के माध्यम से बढ़ते कीटोन्स को क्रमशः हल्के गिरावट वाले वयस्कों और अल्जाइमर रोग के जोखिम वाले वयस्कों में अनुभूति में सुधार दिखाया गया है। 

 

सर्केडियन सिंकिंग

ऐसे समय में भोजन करना जो हमारे शरीर की नैचुरल टाइमटेबल से मैच नहीं खाता है तो इससे हमारे अंगों के काम करने के तरीका बाधित हो सकता है। शिफ्ट में काम करने वालों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि इससे हमें पुरानी बीमारियों का खतरा भी हो सकता है। समय-प्रतिबंधित भोजन तब होता है जब आप दिन के दौरान छह से दस घंटे के भीतर अपना भोजन खाते हैं जब आप सबसे अधिक सक्रिय होते हैं। समय-प्रतिबंधित भोजन से ऊतकों में जीन की अभिव्यक्ति में परिवर्तन होता है और शरीर को आराम और गतिविधि के दौरान मदद मिलती है। इसी कड़ी में वर्ष 2021 में इटली में 883 वयस्कों पर एक अध्ययन हुआ था, जिसमें जानकारी मिली कि जो लोग अपने भोजन का सेवन दिन में दस घंटे तक सीमित रखते थे, उनमें समय की पाबंदी के बिना भोजन करने वालों की तुलना में संज्ञानात्मक हानि होने की संभावना कम थी। 

 

माइटोकॉन्ड्रिया

इंटरमिटेंट फास्टिंग माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन, मेटाबॉलिज्म में सुधार और ऑक्सीडेंट को कम करके मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान कर सकता है। माइटोकॉन्ड्रिया का मूल कार्य इनर्जी उपैदा करना है, जो मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए अहम है। उम्र से संबंधित कई बीमारियाँ ऊर्जा आपूर्ति और मांग के असंतुलन से निकटता से संबंधित हैं, जो संभवतः उम्र बढ़ने के दौरान माइटोकॉन्ड्रियल डिसफंक्शन के कारण होती हैं। रोडेंट स्टडीज से पता चलता है कि वैकल्पिक दिन पर उपवास या 40 प्रतिशत तक कैलोरी कम करने से मस्तिष्क माइटोकॉन्ड्रियल फ़ंक्शन की रक्षा या सुधार हो सकता है।  

 

गट ब्रेन एक्सिस

आंत (गट) और मस्तिष्क शरीर के तंत्रिका तंत्र के माध्यम से एक दूसरे के साथ संवाद करते हैं। मस्तिष्क इस बात को प्रभावित कर सकता है कि आंत कैसा महसूस करती है (सोचें कि घबराहट होने पर आपके पेट में "तितलियाँ" कैसे निकलती हैं) और आंत मूड, अनुभूति और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। हालांकि स्वस्थ वयस्कों में अनुभूति पर इंटरमिटेंट फास्टिंग के प्रभावों पर कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है। हालाँकि 2022 के एक अध्ययन में 411 वृद्ध वयस्कों का साक्षात्कार लिया गया, जिसमें सामने आया कि भोजन की कम आवृत्ति मस्तिष्क इमेजिंग पर अल्जाइमर रोग के कम सबूत से जुड़ी थी। कुछ रिसर्च में सामने आया है कि कैलोरी इनटेक में कमी लाने पर अल्जाइमर रोग के खिलाफ सुरक्षा होती है। एक साल तक कुछ लोगों को कम कैरोली का खाना दिया गया, जिससे हल्का सुधार देखने को मिला था। एक अन्य अध्ययन में 25 प्रतिशत तक कैलोरी में कमी की गई, जिसके बाद मेमौरी पर थोड़ा सुधार देखने को मिला था। हाल ही के एक अध्ययन में सामने आया कि कैलोरी में कमी करने के बाद भी मैमोरी पर अधिक प्रभाव नहीं पाई गई है। 

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