गरमी कम होने लगी थी और मौसम सुहावना। आभास और अनुभूति के स्कूल से लौटने के बाद, उनकी मम्मी ने कहा, ‘कल से रोज़ शाम हम तीनों घूमने जाया करेंगे। आपके पापा को पता चलेगा तो उन्हें भी यह जानकर बहुत अच्छा लगेगा । सैर करने से हमारे शरीर में स्फूर्ति आएगी और तरोताजा भी रहा करेंगे । हम तीनों मास्क भी साथ लेकर जाएंगे। ज़रूरत पड़ी तो पहन सकते हैं’।
बाग उनके घर के पड़ोस में ही था जहां सुबह शाम बच्चे व बड़े घूमने आते थे। बाग में सैर मार्ग के किनारे खजूर के पुराने वृक्षों की टहनियों के झुरमुट में चिड़ियों का मोहल्ला बसा हुआ था। जिसमें खूब सारी चिड़ियाँ रहती थी, जिनके परिवार सदस्य सुबह और शाम खूब चींचीं चींचीं करते थे ।
जब आभास, अनुभूति और उनकी मम्मी खजूर के वृक्षों के पास से गुज़र रहे थे तब भी ऐसा हो रहा था । उनकी चींचीं चींचीं ज़ोर ज़ोर से जारी थी। आभास ने पूछा, ‘मम्मी क्या यह चिड़ियाँ रोज़ यहां आती होंगी’।
उसकी मम्मी ने कहा, ‘आजकल बाग में खूब चिड़ियाँ और दूसरे परिंदे आए हुए हैं। चिड़ियाँ दिन भर इधर उधर चुगने और फुदकने रहने के बाद, शाम को यहां इक्कठी होती हैं । इन्हें समूह में रहना अच्छा लगता है। सुबह और शाम आपस में खूब बातें करती हैं, बहसती हैं, अनेक बार ज़ोर से जब चीख चीख कर चीं चीं करती हैं तो ऐसा लगता है कि इनमें झगड़ा हो रहा है। थोड़ी देर बाद शांत हो जाती हैं। अगले दिन के कार्यक्रम पर चर्चा कर, रात यहीं गुज़ार कर, सुबह उड़ जाती हैं’।
चिड़ियों का शोर सुनकर वहां से गुजरने वालों की नज़रें एक बार तो खजूर के पेड़ों की तरफ उठ ही जाती थी। पास से निकलते एक बच्चे ने बताया कि उसने कल शाम दो चिड़ियों को आपस में उलझते लड़ते, पेड़ से नीचे गिरते देखा है। आभास, अनुभूति की मम्मी को पता था कि स्कूल जाते समय या स्कूल से आकर, शाम को कभी एक बात पर तो कभी दूसरी बात पर बहसते थे । कई बार उनकी लड़ाई भी होती थी। तब उनकी मम्मी उनसे कहती थी कि हमें किसी भी बात या समस्या को आराम से बैठकर सुलझाना चाहिए न कि ज़ोर ज़ोर से बोलकर या लड़कर।
अगले दिन फिर तीनों घूमने गए तो चिड़ियाँ आराम से बात कर रही थी। पिछले कल जैसा शोर नहीं मचा रखा था उन्होंने। बाग के उस क्षेत्र में शांति थी। आभास ने कहा, ‘मम्मी आज चिड़ियाँ कितने आराम से बात कर रही हैं, कितना अच्छा लग रहा है’। अनुभूति बोली, ‘इनकी आवाज़ भी कितनी मीठी लग रही है’।
थोड़ा दूर आगे पहुँचकर वे तीनों हरी घास पर बैठ गए। अडोस पड़ोस में बनी क्यारियों में रंग बिरंगे फूल बहुत सुन्दर लग रहे थे। सामने तालाब में बतख़ें तैर रही थीं।
मम्मी ने दोनों को समझाया, ‘चिड़ियों का मोहल्ला हमारे घर जैसा है। आप भी तो कई बार चीख चीख कर, बात करते करते बहस करते हो और लड़ते भी हो। क्या यह अच्छी बात है, नहीं न । याद करो पिछले कल जब यह चिड़ियाँ ज़ोर ज़ोर से चीं चीं चीं कर रही थी तो यहां से गुजरने वालों को भी अच्छा नहीं लग रहा था। उनका यह शोर उनके घर से बाहर भी जा रहा था। लेकिन जब वह आराम से बात कर रही थी तब आप दोनों को भी कितनी अच्छी लग रही थी। आप दोनों मेरी बात समझ रहे हो न’।
आभास और अनुभूति को बात समझ में आ गई थी। दोनों ने अपनी मम्मी से लिपटकर वायदा किया कि वे भविष्य में अपनी कोई भी समस्या बहस न कर, बिना लड़े आराम से बैठकर, बात कर सुलझाएँगे। अगले दिन जब घूमने आए तो चिड़ियों के मोहल्ले में ज़ोर से शोर मचा हुआ था। दोनों बच्चों ने मिलकर कहा, ‘मम्मी मम्मी, देखो गंदे बच्चे शोर मचा रहे हैं’।
- संतोष उत्सुक