By अभिनय आकाश | Aug 03, 2022
ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका आमने-सामने आ गए हैं। दोनों देशों की फौज हाई अलर्ट पर है। अमेरिकी संसद की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे से चीन भड़क गया है। उसने टारगेटेड स्ट्राइक की चेतावनी भी दी है। चीन और अमेरिका दोनों की फौज जवाबी कार्रवाई के लिए तैयार है। अमेरिका के चार जंगी बेड़े ताइवान के समुंद्र में गश्त कर रहे हैं। चीन ने ताइवान को पूरी तरह से घेरते हुए छह जगहों पर युद्ध अभ्यास शुरू कर दिया है। इनमें से तीन जगह ऐसी हैं जहां पर वो ताइवान की सीमा के अंदर अभ्यास कर रहा है। ताइवान में हलचल देख ड्रैगन बुरी तरह से बौखला गया है। लेकिन इस बार उसके सामने सुपरपावप मुल्क अमेरिका चट्टान सरीखा खड़ा है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, 27 चीनी लड़ाकू विमानों ने बुधवार को उसके वायु रक्षा क्षेत्र में प्रवेश किया। चीनी बेड़े में छह J-11 फाइटर जेट, पांच J-16 फाइटर जेट और 16 SU-30 फाइटर जेट शामिल थे। मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि जवाबी कार्रवाई के तौर पर ताइवान ने भी अपने लड़ाकू विमान भेजे और वायु रक्षा मिसाइलें तैनात कीं।
इन सभी घटनाक्रमों पर भारत भी नजर बनाए हुए है। भले ही इस मुद्दे पर भारत की तरफ से कोई प्रतिक्रिया देखने को न मिली हो परंतु भारत के अंदर ताइवान पर चीनी नीतियों को लेकर राजनीतिक गलियारों और सोशल मीडिया पर खूब चर्चा देखने को मिल रही है। वैसे तो भारत के ताइवान के साथ अभी औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, क्योंकि यह एक-चीन नीति का पालन करता है। हालाँकि, दिसंबर 2010 में तत्कालीन चीनी प्रधान मंत्री वेन जियाबाओ की भारत यात्रा के दौरान, भारत ने संयुक्त विज्ञप्ति में एक-चीन नीति के समर्थन का उल्लेख नहीं किया था। 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आए, तो उन्होंने ताइवान के राजदूत चुंग-क्वांग टीएन को अपने शपथ ग्रहण में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष लोबसंग सांगे के साथ आमंत्रित किया। वन-चाइना नीति का पालन करते हुए, राजनयिक कार्यों के लिए भारत का ताइपे में एक कार्यालय है - भारत-ताइपे एसोसिएशन (ITA) का नेतृत्व एक वरिष्ठ राजनयिक करते हैं। ताइवान का नई दिल्ली में ताइपे आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र (TECC) है। दोनों की स्थापना 1995 में हुई थी।
चीन की संवेदनशीलता के कारण, इन्हें जानबूझकर लो-प्रोफाइल रखा गया है। उदाहरण के लिए, संसदीय प्रतिनिधिमंडल का दौरा और विधायिका-स्तरीय संवाद 2017 से बंद हो गया है, जब डोकलाम में भारत-चीन सीमा गतिरोध हुआ था। लेकिन, हाल के वर्षों में, भारत ने ताइवान के साथ अपने संबंधों को निभाने की कोशिश की है, क्योंकि चीन के साथ उसके संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। 2020 में, गलवान संघर्ष के बाद, नई दिल्ली ने विदेश मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव (अमेरिका) को राजनयिक गौरांगलाल दास को ताइपे में अपना दूत बनने के लिए चुना। उस वर्ष 20 मई को, भाजपा ने अपने दो सांसदों मीनाक्षी लेखी और राहुल कस्वां को ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन के शपथ ग्रहण समारोह में वर्चुअल मोड के माध्यम से भाग लेने के लिए कहा।
भारत और ताइवान के बीच व्यापारिक संबंधों में भी वृद्धि देखने को मिली है। आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2000 में भारत-ताइवान के बीच कुल 1 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ था जोकि 2019 में बढ़कर 7.5 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। कुल मिलाकर कहा जाए तो भारत ने अब तक ताइवान को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन उसने ये भी संकेत दिए हैं कि वो चीन की वन चाइना पॉलिसी का समर्थन नहीं करता है। ताइवान एक ऐसा मुद्दा है जिसके जरिए भारत चीन को उसी की भाषा में जवाब दे सकता है।