By अभिनय आकाश | Nov 20, 2024
कल तक जो ट्रूडो खालिस्तानियों के खैर ख्वाह बने बैठे थे। कल तक जिन ट्रूडो को कनाडा में रह रहे हिंदुओं पर अत्याचार नजर नहीं आ रहे थे। उन जस्टिन ट्रूडो के तेवर अब ढीले पड़ने लगे हैं। उनके तेवर बदलने लगे हैं। कल तक जो ट्रूडो खालिस्तानियों के लिए आंसू बहाते थे वो आज उनके खिलाफ बोल रहे हैं। खालिस्तानियों को लेकर ट्रूडो ने ऐसा कुछ कह दिया, जिससे वहां रह रहे खालिस्तानियों की नींद उड़ गई है। अलगाववादी संगठन सिख फॉर जस्टिस के खालिस्तानी समर्थक गुरवतपंत सिंह पन्नू की नींद ट्रूडो के बयान के बाद से उड़ी हुई है। ट्रूडो के रुख में आए इस बदलाव के पीछे प्रधानमंत्री मोदी के दोस्त को माना जा रहा है। जो ट्रूडो कल तक कनाडा में रह रहे खालिस्तानियों के हितों को लेकर मुखर थे, अब कह रहे हैं कि कनाडा में खालिस्तान का समर्थन करने वाले बहुत से लोग हैं। लेकिन वो पूरे सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते। ये वही कनाडा है जिसने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले को लेकर लगातार भारत के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ता गया। लेकिन आखिर अचानक ट्रूडो को क्या हुआ और उनके तेवर नरम क्यों पड़ने लगे हैं। इसकी बड़ी वजह अमेरिका है। वैसे कनाडा का खालिस्तान प्रेम बहुत पुराना रहा है।
कनाडाई राजनेता सिख चरमपंथियों को बढ़ावा क्यों देते हैं?
माइलवस्की ने इस प्रश्न का उत्तर अपनी पुस्तक में दिया है। यह मोटे तौर पर कनाडा में वोट बैंक की राजनीति के जयशंकर के संदर्भ के समान है। यह अक्सर भारतीयों द्वारा पूछा जाने वाला प्रश्न है कि कनाडाई राजनेता सिख चरमपंथियों को बढ़ावा क्यों देते हैं? माइलवस्की ने इसका जवाब देते हुए लिखा कि इन शॉर्ट इसका उत्तर यह है कि वैशाखी दिवस पर कनाडा में 100,000 की भीड़ को देखना आसान नहीं है, यह जानते हुए कि यदि आप अपना मुंह बंद रखेंगे तो वे आपको वोट दे सकते हैं और फिर इसके बजाय इन सब पर बंदिश से वोट गंवाने का डर होता है। 2021 की कनाडाई जनगणना के अनुसार, कनाडा की आबादी में सिखों की हिस्सेदारी 2.1 प्रतिशत है और यह देश का सबसे तेजी से बढ़ने वाला धार्मिक समूह है। भारत के बाद, कनाडा दुनिया में सिखों की सबसे बड़ी आबादी का घर है। आज, सिख सांसद और अधिकारी कनाडा सरकार के सभी स्तरों पर काम करते हैं और उनकी बढ़ती आबादी देश में सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। 2017 में 39 वर्षीय जगमीत सिंह किसी प्रमुख कनाडाई राजनीतिक दल के पहले सिख नेता बने, जब उन्होंने वामपंथी झुकाव वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) की कमान संभाली।
जस्टिन के पिता पियरे ने आतंकवादी को सौंपने से किया था मना
कनाडा को लंबे समय से खालिस्तान समर्थकों और भारत में आतंकवाद के आरोपी उग्रवादी आवाजों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह माना जाता रहा है। टेरी मिल्वस्की ने अपनी पुस्तक ब्लड फ़ॉर ब्लड: फिफ्टी इयर्स ऑफ़ द में लिखा है कि खालिस्तानी चुनौती के प्रति नरम कनाडाई प्रतिक्रिया 1982 से ही भारतीय राजनेताओं के निशाने पर थी, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसके बारे में प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो से शिकायत की थी। जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 1968 से लेकर 1979 तक और फिर 1980 से लेकर 1984 तक कनाडा के प्रधानमंत्री के तौर पर देश की सत्ता संभाली थी। संयोग से इसी दौरान इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थी। उस दौरान भारत में उमड़ रहे खालिस्तानी आंदोलन के मद्देनजर उन्होंने खालिस्तानी तलविंदर सिंह परमार के भारत प्रत्यर्पण की मांग की थी। लेकिन पियरो ट्रूडो की सरकार ने ये कहते हुए इसे खारिज कर दिया था कि भारत ब्रिटेन की रानी को कॉमनवेल्थ का हेड तो मानता है, लेकिन सदस्य है। इसलिए वो किसी भी तरह का प्रत्यर्पण नहीं करेगा। इसलिए कॉमनवेल्थ प्रत्यर्पण संधि लागू नहीं कर सकते। बाद में 23 जजून 1983 को कनाडा में रहने वाले खालिस्तानी आतंकियों ने एयर इंडिया के विमान में बम रखकर उसे उड़ा दिया था। जिसमें 329 लोगों की मौत हो गई थी।
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन क्यों जारी है?
यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी कनाडाई सिख खालिस्तान समर्थक नहीं हैं और अधिकांश प्रवासी सिखों के लिए खालिस्तान कोई "हॉट ट्रेंडिंग टॉपिक नहीं है। मिलेवस्की ने पिछले साल डीडब्ल्यू को बताया कि कनाडाई नेता सिख वोट खोना नहीं चाहते हैं, लेकिन वे गलत सोचते हैं कि खालिस्तानियों का अल्पसंख्यक समुदाय कनाडा के सभी सिख हैं। मिलेव्स्की ने प्रवासी भारतीयों के भीतर खालिस्तान के लिए समर्थन को पंजाब की जमीनी हकीकतों से जुड़ाव की कमी के कारण पाया। प्रवासी भारतीयों में वे लोग शामिल हैं जो 1980 के दशक के दौरान चले गए थे, जब आंदोलन अपने चरम पर था और भारतीय राज्य खालिस्तानी अलगाववादियों पर बेहद सख्त था। इस दौरान कई अतिरिक्त-न्यायिक गिरफ्तारियां और हत्याएं हुई थीं।