By अभिनय आकाश | Nov 01, 2023
अगस्त के आखिरी हफ्ते में चीन की तरफ से नए नक्शे के जरिए अपनी मानसिकता को एक बार फिर से दुनिया के सामने एक्सपोज कर दिया। हालांकि भारत द्वारा अरुणाचल प्रदेश और अक्साई चिन को शामिल करने वाले चीन के नए आधिकारिक मानचित्र को बेतुका बताकर खारिज करने के एक दिन बाद,कांग्रेस नेता राहुल गांधी मैदान में आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरते हुए चीनी घुसपैठ के मुद्दे पर चुप्पी को लेकर सवाल उठाए। इसके ठीक एक हफ्ते बाद ही विदेशी धरती पर उसी चीन की तारीफों के पुल बांधते भी राहुल नजर आए। उन्होंने बेल्जिय में ड्रैगन की तारीफ करते हुए उसके मैन्युफैक्चरिंग क्षमता की तारीफ की। राहुल गांधी की तरफ से कहा गया कि मैं अपनी हर मीटिंग में कहता हूं कि चीन अपना एक निश्चित दृष्टिकोण रखता है। ये उन कारणों से है जिसकी वजह से चीन ग्लोबल प्रोडक्शन के केंद्र में है। वैसे ये कोई पहला मौका नहीं है। राहुल गांधी अक्सर चीन की नापाक हरकतों पर अपने ही देश की सरकार पर सवाल उठाते नजर आए हैं। जबकि हर जगहों पर उसी चीन की तारीफ भी करते नहीं थकते।
डोकलाम के दौरान चीन के राजदूत से मुलाकात
अमूमन राहुल गांधी चीन को लेकर अलग रुख़ रखते रहे हैं। जब डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं आंखों में आंखे डालकर एक-दूसरे के सैनिकों की सेहत का अंदाज़ा लगा रही थी, तो राहुल गांधी ने चीन के राजदूत से मिलकर राजनीतिक हड़कंप मचा दिया था। तब की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने राहुल गांधी पर चीन के साथ गुपचुप बातचीत करके भारत का पक्ष कमज़ोर करने का आरोप लगाया था।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी संग संबंधों पर सवाल
लोकसभा चुनाव 2019 के वक्त राहुल गांधी जब मानसरोवर यात्रा पर गए थे, तो चीनी दूतावास ने भारतीय विदेश मंत्रालय से आग्रह किया था, कि उन्हें प्रोटोकॉल देते हुए औपचारिक रुप से विदा करने की अनुमति दी जाए। ऐसे में राहुल के चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से कथित संबंधों को लेकर लगातार सवाल उठते हैं।
राहुल का चीन कनेक्शन?
भारतीय उद्योगपतियों के साथ हुई एक बैठक में राहुल गांधी ने उन्हें चीन से भी निवेश मंगाए जाने के बारे में सलाह दी थी।
राहुल गांधी जब जर्मनी के दौरे पर थे तो उनसे भारतीय उपमहाद्वीप में सत्ता संतुसन को लेकर सवाल किया गया था। जिसके जवाब में राहुल में भारत को अमेरिका के साथ चीन से भी अपने संबंधों में संतुलन साधने की वकालत की थी।
साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक के समय तत्कालीन कांग्रेस और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को ही नहीं बल्कि नाती-पोतों सहित उनके पूरे परिवार को चीन ने विशेष रुप से आमंत्रित किया था।
जवाहर लाल नेहरू और चीन
नेहरू हमेशा से चीन से बेहतर ताल्लुक़ चाहते थे और च्यांग काई शेक से उनकी अच्छी पटरी बैठती थी। इतिहास के हवाले से कई दावें ऐसे भी हैं कि जवाहर लाल नेहरू की गलती की वजह से भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता ठुकरा दी और अपनी जगह ये स्थान चीन को दे दिया। उस दौर में आदर्शवाद और नैतिकता का बोझ पंडित नेहरू पर इतना था कि वो चीन को सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता दिलवाने के लिए पूरी दुनिया में लाबिंग करने लगे। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा दिया था और जवाब में भारत को 1962 के युद्ध का दंश झेलना पड़ा था।