By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Jun 19, 2021
एमके स्टालिन ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की शपथ लेते ही नए विवादों को हवा दे दी है। दरअसल एमके स्टालिन ने गैर ब्राह्मण महिला पुजारियों की नियुक्ति का ऐलान किया था जिसके बाद से चारों तरफ नई चर्चाएं होने लगी हैं। आपको बता दें की हाल ही में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ये ऐलान किया था कि जल्द ही गैर ब्राह्मण महिलाओं को मंदिरों में पुजारी नियुक्त किया जाएगा। इसके लिए बकायदा पाठ्यक्रम भी तैयार किया गया था । जिसकी जानकारी राज्य के मंत्री पीके शेखर बाबू ने दी थी।
सरकार के सत्ता में 100 दिन से पहले होगी नियुक्ति
उन्होंने कहा था कि इसके लिए प्रबंधित मंदिर में पुजारी बनने की इच्छुक महिलाओं को प्रशिक्षण दिया जाएगा। जिससे सभी हिंदू पुजारी बन सकते हैं यहां तक कि महिलाएं भी पुजारी बन सकती हैं। सरकार की तरफ से कहा गया था कि सरकार के सत्ता में 100 दिन पूरे होने से पहले उचित प्रक्रियाओं का पालन करके विभाग द्वारा प्रबंधित मंदिर में नियुक्त किया जाएगा। बता दें कि ये नियुक्तियां 36 हजार मंदिरों में की जाएंगी। स्टालिन सरकार के इस कदम पर बीजेपी का कहना है कि द्रमुक पार्टी की नींव हिंदू विरोध के मूल विचारों पर पड़ी है। साथ ही बीजेपी ने सरकार से सवाल किया कि क्या सरकार किसी मस्जिद या चर्च को नियंत्रण में लेगी।
1972 में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी
राज्य सरकार के मंत्री पीके शेखर बाबू ने कहा साथ ही मंदिरों में पूजा भी तमिल में की जाएगी। इसपर बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष केटी राघवन ने कहा कि सरकार चाहती है कि मंदिरों में मंत्र भी तमिल पढ़े जाएंगे। ये कैसे संभव है? डीएमके राजनीतिक लाभ के लिए हिंदुओं में मतभेद पैदा कर रही है। ब्राह्मण पुजारी संघ के प्रतिनिधि एन.श्रीनिवासन कहते हैं कि 100 दिन का कोर्स करके कैसे पुजारी बन सकता है?उन्होंने कहा कि ये सदियों पुरानी परंपरा का अपमान है. आपको बता दें कि 1970 में पेरियार ने मुद्दा उठाया तो द्रमुक सरकार ने नियुक्ति के आदेश दिए। 1972 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी।
2011 में अन्नाद्रमुक सरकार ने कर दिया था बंद
साल 1982 में, तत्कालीन सीएम एमजी रामचंद्रन ने जस्टिस महाराजन आयोग का गठन किया। आयोग ने सभी जातियों के व्यक्तियों को प्रशिक्षण के बाद पुजारी नियुक्त करने की सिफारिश की थी। 2006 में सरकार ने फिर नियुक्तियों के आदेश दिए और 2007 में एक साल का कोर्स शुरु हो गया जिसे 206 लोगों ने किया था। इसके बाद साल 2011 में अन्नाद्रमुक सरकार ने इसे फिर से बंद कर दिया था।