By योगेश कुमार गोयल | Apr 13, 2020
कोरोना से निपटने के लिए भारत द्वारा पिछले एक माह से लगातार किए जा रहे प्रयासों को पूरी दुनिया ने सराहा है। अब संयुक्त राष्ट्र के एशिया प्रशांत आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (यूएनइस्केप) ने भी वर्ष 2020 के अपने ‘आर्थिक एवं सामाजिक सर्वेक्षण’ में कोरोना से जंग में भारत द्वारा उठाए गए कदमों की प्रशंसा की है। यूएनइस्केप के अधिकारियों के मुताबिक भारत में पूरे देश में लॉकडाउन किया गया है और भारत की नीति अभी तक सही दिशा में जा रही है। दरअसल पूरी संभावना भी थी कि 25 मार्च से देशभर में लागू किए गए 21 दिनों के लॉकडाउन के बाद भारत कोरोना से जंग जीतने के काफी हद तक करीब होगा लेकिन पिछले दिनों इस जंग के तमाम प्रयासों को दिल्ली की निजामुद्दीन मरकज के जमातियों ने ऐसा पलीता लगाया कि अब महाराष्ट्र सहित कुछ स्थानों पर कोरोना के तीसरे चरण में प्रवेश करने का खतरा मंडरा रहा है।
देश का शायद ही कोई कोना ऐसा बचा हो, जहां जमातियों की वजह से कोरोना का कोहराम न हो। ऐसे ऑडियो सामने आ चुके हैं, जिनमें तब्लीगी जमात का कर्ता-धर्ता मौलाना साद कंधालवी कोरोना को लेकर हजारों जमातियों को यह कहकर भड़काता रहा कि यह सब जमात के विरूद्ध एक साजिश है और सोशल डिस्टेंसिंग की कोई जरूरत नहीं है। सरकार की सख्ती देख मौलाना स्वयं तो क्वारंटाइन के बहाने अंडरग्राउंड हो गया लेकिन उसने जमात के हजारों ‘कोरोना बमों’ को उनके दिमाग में जेहादी मानसिकता ठूंसकर और जहर भरकर पूरे भारत में कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए छोड़ दिया। तब्लीगी जमात मामले में जांच में जुटी क्राइम ब्रांच को अब जो दस्तावेज मिले हैं, उनके मुताबिक मरकज में करीब 7 हजार लोग शामिल हुए थे। यही कारण है कि इन दस्तावेजों के आधार पर बाकी बचे तमाम लोगों की खोजबीन की जा रही है लेकिन समाज में ‘कोरोना कैरियर’ बनकर घूम रहे ऐसे कईयों का कोई सुराग हाथ नहीं लग पा रहा है, जिससे कोरोना संक्रमण फैलने का बड़ा खतरा बरकरार है।
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आईसीएमआर द्वारा अपने शोध के नतीजों में बताया गया है कि अगर कोरोना संक्रमित व्यक्ति लॉकडाउन के प्रतिबंधों का पालन करते हुए सामाजिक दूरी नहीं बनाता है तो ऐसा एक व्यक्ति 30 दिनों की अवधि में 406 लोगों को संक्रमित कर सकता है जबकि प्रतिबंधों का पालन किया जाए तो 30 दिनों में केवल ढ़ाई लोगों के ही संक्रमित होने का खतरा होता है। जमातियों ने जिस प्रकार पिछले कुछ दिनों के भीतर देशभर में लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाई हैं, उसी का असर है कि कुछ दिन पहले जहां कोरोना संक्रमण बढ़ने की दर बेहद कम थी, वह देखते ही देखते कोरोना विस्फोट में बदलने लगी और इन्हीं जमातियों की बदौलत हर कहीं कोहराम मच गया। एक तरफ जहां तमाम देशवासी अनेक प्रतिबंधों और आर्थिक विवशताओं के बावजूद एक-दूसरे से दूर अपने घरों में रहकर कोरोना से जंग जीतने की मुहिम में एकजुट है, वहीं कुत्सित मानसिकता वाले कुछ लोगों की भीड़ को बार-बार दी जा रही सख्त हिदायतों के बाद भी छतों या मस्जिदों से निकाला जा रहा है और उनमें से कुछ कोरोना संक्रमित भी निकल रहे हैं। यही नहीं, कोरोना से जंग जीतने के प्रयासों में जी-जान से जुटे डॉक्टरों, मेडिकल स्टाफ और पुलिस वालों पर भी जगह-जगह हमले किए जा रहे हैं।
अगर लॉकडाउन शुरू होने की तारीख 25 मार्च से लेकर 10 अप्रैल के बीच के कोरोना संक्रमितों के आंकड़े देखें तो जहां 25 से 31 मार्च के बीच देश में कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या क्रमशः 606, 694, 834, 918, 1024, 1254 और 1397 थी, वहीं 1 अप्रैल को देखते ही देखते इसमें 31 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ यह संख्या 1834 हो गई और उसके बाद 2 से 10 अप्रैल के बीच यह संख्या क्रमशः 2069, 2547, 3074, 3577, 4281, 4789, 5274, 5865 तथा 6412 दर्ज की गई। इसमें चिंता की बात यह है कि 1 अप्रैल से अभी तक कोरोना मामलों में जो बढ़ोतरी देखने को मिली है, उसकी सबसे बड़ी जड़ जमाती ही हैं, जो कोरोना से जंग लड़ने में भी लगातार बाधक बन रहे हैं। अगर तब्लीगी जमात से जुड़े संक्रमण के मामलों को छोड़ दें तो देश में लॉकडाउन के शुरूआती दौर में जहां कोरोना संक्रमण की दर करीब 17 फीसदी थी, वह अब 8 प्रतिशत तक घटकर केवल 9 प्रतिशत रह गई है अर्थात् कोरोना संक्रमण दर में काफी कमी आई है लेकिन जमातियों ने सारे किये-कराये पर पानी फेर दिया है। 30 मार्च को कुल 6 जमाती कोरोना संक्रमित मिले थे लेकिन उसके बाद प्रतिदिन जिस तेजी से संक्रमित जमातियों की संख्या दर्ज होती गई, उससे हर किसी के होश उड़ गए। 31 मार्च से 9 अप्रैल के बीच के आंकड़े देखें तो देश में कोरोना संक्रमितों में क्रमशः 18, 29, 129, 259, 301, 320, 329, 333, 426, 430 जमाती प्रतिदिन जुड़े अर्थात् सिर्फ 10 दिनों में ही कुल 2571 जमातियों के मामले सामने आए और आने वाले दिनों में जमातियों के संक्रमण का यह आंकड़ा कहां तक जाएगा, कोई नहीं जानता। इतना ही नहीं, इनका जिस तरह का व्यवहार है, उससे कई इलाकों में कोरोना के सामुदायिक संक्रमण का भी खतरा बरकरार है।
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जमातियों और जमात समर्थकों द्वारा न केवल देश में हर जगह लॉकडाउन की सरेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं बल्कि इन्होंने अस्पतालों में भी ऐसी-ऐसी शर्मनाक हरकतें की हैं, जिन्हें देखकर आज इंसानियत भी शर्मसार है। यही वजह है कि आज पूरे देश में जमातियों के प्रति गुस्सा पूरे उफान पर है। अगर जमात के ‘कोरोना बम’ इस कदर पूरे देश में नहीं फैलते तो निश्चित रूप से भारत द्वारा कोरोना से लड़ी जा रही यह जंग बहुत आसानी से अगले चंद दिनों के भीतर जीती जाने की पूरी-पूरी संभावना थी। दिल्ली में 8 अप्रैल को कोरोना के कुल 93 मामले सामने आए और इन पर गौर फरमाएं तो ये सारे के सारे मामले तब्लीगी जमात से जुड़े जमातियों के ही थे। उत्तर प्रदेश का भी कमोवेश यही हाल है और यही कारण है कि उत्तर प्रदेश तथा दिल्ली में अचानक कोरोना के हॉटस्पॉट बनकर सामने आए कुछ इलाकों को पूरी तरह सील करने पर मजबूर होना पड़ा। दरअसल विशेषज्ञों का मानना है कि 14 दिनों के भीतर संक्रमण चक्र जिस तरीके से बढ़ता है, उससे यह संक्रमण तेजी से फैलता है और कम्युनिटी ट्रांसफर का खतरा उत्पन्न होता है।
दिल्ली में नरेला स्थित आइसोलेशन सेंटर में 7 अप्रैल को जमातियों ने कॉरीडोर में ही मल-मूत्र का त्याग कर अपनी घिनौनी मानसिकता और कुत्सित इरादों का स्पष्ट परिचय दिया। उसके अगले दिन नॉर्थ दिल्ली के द्वारका इलाके में क्वारंटाइन सेंटर में रह रहे जमातियों ने सेंटर के बाहर मल-मूत्र फैंकना शुरू कर दिया। 8 अप्रैल को एक क्वारंटाइन सेंटर के बाहर जमातियों द्वारा फैंकी गई पेशाब से भरी कुछ बोतलें मिली भी थी। गाजियाबाद की घटना तो सर्वविदित है ही, जहां जमातियों ने उन्हीं का जीवन बचाने में जुटी ईश्वर तुल्य नर्सों के सामने अश्लीलता की सारी हदें पार कर दी थी। वहां वे न केवल स्वास्थ्यकर्मियों पर थूकने के अलावा दीवारों, रेलिंग इत्यादि पर थूक पोत रहे थे बल्कि नर्सों के सामने जानबूझकर निर्वस्त्र होने जैसी बेहद शर्मनाक हरकतें दिखाकर उन्होंने साबित कर दिया था कि जमात में इनके दिलोदिमाग में कितना जहर और कितनी नीचता के भाव भरे गए हैं। जिस इंसान का जहां इलाज किया जा रहा हो, अगर वह वहीं मल-मूल का त्याग कर गंदगी फैलाये तो क्या ऐसे इंसान को इंसानों की श्रेणी में रखा जा सकता है? ऐसी दूषित मानसिकता वाले इंसानों और जानवरों में कोई फर्क नहीं है। दरअसल इन लोगों की मानसिकता ही इतनी जहरीली बना दी गई है कि इन्हें अपना ही भला नजर नहीं आ रहा है, फिर दूसरों के भले के बारे में भला ये कैसे सोच सकते हैं? यही कारण है कि इनके द्वारा हर कहीं जाहिलाना हरकतें की जा रही हैं।
फिलहाल देश के कई राज्य ऐसे हैं, जहां सैंकड़ों कोरोना संक्रमितों में से बहुत बड़ी संख्या जमातियों की ही है और इसके बावजूद जमाती कमोवेश हर जगह ऐसी हरकतें कर रहे हैं, जिन्हें देखकर यही प्रतीत होने लगा है कि इनका मंतव्य ही पूरे देश को कोरोना हॉटस्पॉट बना देने का है। आश्चर्य की बात है कि कई जगहों पर जमातियों पर मामले दर्ज होने के बावजूद ये लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे। देश के विभिन्न राज्यों में अस्पताल कर्मियों को परेशान करने, उनके साथ गाली-गलौज करने, उन पर थूकने, खाने में प्रतिबंधित मांस परोसने, इलाज में व्यवधान उत्पन्न करने जैसी जमातियों की हरकतें लगातार सामने आ रही हैं। तमाम राज्य सरकारों द्वारा सख्त रवैया दिखाए जाने के बावजूद अभी भी कई जमाती ऐसे हैं, जो अपने-अपने मोबाइल फोन बंद कर ‘कोरोना बम’ बनकर यहां-वहां छिप गए हैं और न जाने मानवता के ये दुश्मन कितने और लोगों को कोरोना बांटकर उन्हें भी मौत के करीब ले जाएंगे। फिलहाल जमातियों का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है, जहां तब्लीगी जमात पर प्रतिबंध लगाने की मांग की जा चुकी है।
दुनिया में कोई भी धर्म प्रेम, सद्भाव और भाईचारे का ही संदेश देता है लेकिन जिस जमात में सीख ही जेहाद, नफरत और प्रतिशोध की मिलती हो, वहां से निकले जमातियों से समाज के भले की उम्मीद की भी नहीं जा सकती। भारत में बहुत बड़े ‘कोरोना कैरियर’ के रूप में उभरे ऐसे जाहिल और निकृष्ट मानसिकता वाले लोगों को इस बात से कोई सरोकार नहीं कि उनकी करतूतों की वजह से बढ़ने वाले लॉकडाउन के कारण कितने लोगों की रोजी-रोटी पर संकट मंडरा जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट में ही यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करीब 40 करोड़ असंगठित मजदूरों की रोजी-रोटी खतरे में पड़ सकती है। एक ओर जहां डॉक्टर, नर्स, पुलिस जैसे हमारे कोरोना योद्धा अपनी जान पर खेलकर कोरोना से जंग जीतने की हरसंभव कोशिशों में जुटे हैं, वहीं जमातियों सरीखे समाज विरोधी तत्व जिस प्रकार इन प्रयासों में हर कदम पर बाधा पहुंचा रहे हैं, ऐसे अपराध के लिए ऐसे लोगों को इतना कड़ा दण्ड दिए जाने की जरूरत है कि उसे देख इनके परिजनों की भी रूह कांप उठे और इनकी सात पुश्तें भी ऐसा करने के बारे में सपने में भी न सोच सकें।
-योगेश कुमार गोयल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं)