Ramakrishna Paramahamsa Jayanti: मां काली के परम भक्त थे स्वामी रामकृष्ण परमहंस, बेहद कम उम्र में हुआ था आध्यात्मिक ज्ञान

By अनन्या मिश्रा | Mar 12, 2024

हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को स्वामी रामकृष्ण परमहंस जयंती मनाई जाती है। इस बार 12 मार्च 2024 को स्वामी जी की जयंती है। बता दें कि रामकृष्ण परमहंस भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। वह मां काली के प्रति गहरी आस्था रखते थे। साथ ही परमहंस ने धर्मों की एकता पर भी जोर दिया। बेहद कम उम्र से ही इन्होंने ईश्वर दर्शन की इच्छा से कठोर साधना और भक्ति शुरूकर दी थी। बताया जाता है कि परमहंस को मां काली के साक्षात दर्शन भी हुए थे। 


जन्म

बंगाल प्रांत के कामारपुकुर गांव में फाल्गुन शुक्ल की द्वितीया तिथि 18 फरवरी 1836 को रामकृष्ण परमहंस का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को परमहंस की जयंती मनाई जाती है। इस साल यानी की 2024 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस की 189वीं जयंती मनाई जा रही है। इनके बचपन का नाम गदाधर चट्टोपाध्याय था। लेकिन इन्होंने कम उम्र से आध्यात्मिक मार्ग पर चलना शुरू कर दिया था और इन्होंने अस्तित्व संबंधी परम तत्व यानी परमात्या का ज्ञान प्राप्त किया। जिस कारण इनको परमहंस कहा गया।

इसे भी पढ़ें: Sambhaji Maharaj Death Anniversary: राजनीति के ज्ञाता थे संभाजी महाराज, मराठा साम्राज्य की रक्षा के लिए न्योछावर कर दिए प्राण

पहला आध्यात्मिक अनुभव

प्राप्त जानकारी के मुताबिक जब रामकृष्ण परमहंस जब महज 6-7 साल के थे। तब उनको पहला आध्यात्मिक अनुभव हुआ था। एक बार वह सुबह के समय धान के खेत में संकरी पगडंडियों पर टहल रहे थे। उस दौरान मौसम ऐसा था, जैसे घनघोर वर्षा होने वाली हो। तभी उन्होंने देखा कि बादलों की चेतावनी के खिलाफ भी सारस पक्षियों का एक झुंड भी उड़ान भर रहा था। वहीं आसमान में चारों ओर काली घटा छा गई।


उस प्राकृतिक मनमोहक दृश्य की सारी चेतना रामकृष्ण परमहंस के मन में समा गई और उनको खुद की कोई सुध नहीं रही। ऐसे में परमहंस अचेत होकर जमीन पर गिर पड़े। कहा जाता है कि यह उनका पहला आध्यात्मिक अनुभव था। जिसके बाद उनके आगे की आध्यात्मिक दिशा तय हुई। इस तरह से बेहद कम उम्र में परमहंस का झुकाव आध्यात्म और धार्मिकता की तरफ हुआ।


मां काली के परम भक्त थे परमहंस

महज 9 साल की उम्र में परमहंस का जनेऊ संस्कार हो गया था। फिर वैदिक परंपरा के मुताबिक वह पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान कराने योग्य हो गए थे। कोलकाता के बैरकपुर में हुगली नदी के किनारे रानी रासमणि द्वारा दक्षिणेश्वर काली मंदिर बनवाया गया। इस मंदिर के देखभाल की जिम्मेदारी परमहंस के परिवार के पास थी। इस तरह से वह भी मां काली की पूजा-सेवा करने लगे। फिर साल 1856 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस को मां काली के इस मंदिर का मुख्य पुजारी नियुक्त किया गया। इसके बाद वह मां काली की साधना में पूरी तरह से रम गए। जिसके बाद कहा जाता है कि उनको मां काली के साक्षात दर्शन हुए थे।

प्रमुख खबरें

Vivo x200 Series इस दिन हो रहा है लॉन्च, 32GB रैम के अलावा जानें पूरी डिटेल्स

Kuber Temples: भारत के इन फेमस कुबेर मंदिरों में एक बार जरूर कर आएं दर्शन, धन संबंधी कभी नहीं होगी दिक्कत

Latur Rural विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने किया दशकों तक राज, बीजेपी को इस चुनाव में अपनी जीत का भरोसा

भारत ने किया पाकिस्तान को चारों खाने चित, क्रिकेट के बाद अब इस खेल में भी नहीं होगा दोनों का मुकाबला