कुशल प्रशासक भी थीं सुषमाजी, विदेश को स्वदेश मंत्रालय में बदल डाला था

By तरूण विजय | Aug 08, 2019

जिसने भी सुना, यकीन नहीं कर पाया, बार बार सोचता, मनाता- यह खबर झूठी हो। सुषमा स्‍वराज का अचानक जाना भरी दुपहरी में अन्‍धेरे का अहसास क्‍यों करा गया? कारण है सिर्फ उनका स्‍वभाव, उनकी विद्या और वाणी का सारस्‍वत प्रभाव, उनकी निरहंकारिता।

 

मुझे गत तीस वर्ष से उनको जानने, उनके साथ काम करने, उनका स्‍नेह पाने का सौभाग्‍य मिला था। पाञ्चजन्‍य के हर समारोह में सुषमा जी के घर की सरस्‍वती प्रतिमा का आना अनिवार्य था और उस सरस्‍वती को वे आग्रह कर के फिर वापस अपनी बैठक में ले आती थीं। लद्दाख में 1996-97 में जब मैंने सिंधु उत्‍सव और दर्शन की योजना शुरू की तो उन्‍होंने दूरदर्शन को कह कर उस पर तुरंत दस कड़ियों वाली सिन्‍धु गाथा का वृत्‍तचित्र बनवाया। वे सबके लिये समान चिन्‍ता करती थीं।

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पन्‍द्रह वर्ष पूर्व वे बीमार हुईं– बहुत कष्‍ट था- कुछ मन में उदासी भी थी। मैं मिलने गया- बोलीं तरूण जी कुछ नहीं– कृष्‍णेच्‍छा है- कृष्‍ण जी जैसा चाहें। कुछ सप्‍ताह बाद ठीक हो गयीं- फिर एक अन्‍तराल के बाद केन्‍द्रीय मंत्री बनीं- उसी संयम, शालीनता से बोलीं- तरूण जी- कृष्‍ण कृपा है। जैसा कृष्‍ण जी चाहें।

 

वे किसी का दु:ख नहीं देख सकती थीं। किसी को आहत नहीं कर सकती थीं। कभी किसी के लिये उनसे कटु वचन, अभद्र, अशालीन, आक्रामक शब्‍द प्रयोग न लिखे गये, न सुने गये। अभी कुछ दिन पहले, देश में धर्म जागरण की अलख जगाने वाले संत समान मांगेरामजी गर्ग को श्रद्धांजलि देने वाले उनके ट्वीट पर एक घृणित ट्वीट किसी ने भेजा- उनकी मृत्‍यु की प्रतीक्षा का, उसका भी सुषमा जी ने इतना शालीन, भद्र उत्‍तर दिया कि दुनिया भर में चर्चा हो गयी।

 

भद्रता बहुत दुर्लभ गुण है। बड़ा होना आसान होगा, पर भद्र होना कठिन है। सुषमा स्‍वराज भद्रता का प्रतिरूप थीं। इसीलिये उन्‍हें अटल जी के समान अजातशत्रु कहा गया। आपातकाल में उन्‍होंने संघर्ष किया- जे.पी. आंदोलन में वे सबसे कम आयु की युवा नेता थीं। राष्‍ट्र सेविका समिति की सेविका के नाते शिविरों में जाना, समिति के अधिकारियों- शन्‍ता अक्‍का, प्रमिला ताई के साथ सतत् सम्‍यक, प्रखर हिन्‍दू धर्म की ध्‍वजवाहिका, हर तीज त्‍यौहार को राष्‍ट्रीय उत्‍सव की तरह मनाना– ये सब साधारण कार्यकर्ताओं, संघ-भाजपा से कभी न जुड़े नागरिकों के मन को गहरे छू जाता था।

 

करवाचौथ पर उनके यहाँ जो समागम और व्रत निभाने का उत्‍सव होता था वह भारतीय परम्‍परा का शानदार समारोह माना जाता था। रक्षाबन्‍धन पर एक बार मेरी बहन की राखी समय पर नहीं पहुँची, सुषमा जी को पता चला, तुरंत फोन किया- मैं हूँ ना- मैं बांधूंगी राखी। मैं जीवन में उनके ये शब्‍द कभी भूल न पाऊँगा।

 

विदेश मंत्रालय का कार्यक्रम हो या व्‍यक्‍तिगत समारोह– वे स्‍वयं, बिना चूके, अपने अतिथियों को फोन करती थीं। आना है- भूलना मत। दुनिया में कौन एैसा होगा जो इस फोन के बाद भी अनुपस्थित रहे। हर काम, किसी भी काम में किंचित मात्र भी भूल, लापरवाही, दूसरों पर निर्भरता उन्‍होंने सीखा ही नहीं था।

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दुनिया में विदेश मंत्रालय, दूतावास अक्‍सर भारतीयों के ही प्रति रूखे, संवेदनहीन प्रकट होते थे। सुषमा जी ने विश्‍वव्‍यापी भारतीयों के लिये विदेश मंत्रालय को स्‍वदेश मंत्रालय में बदल दिया। कोई भी भारतीय, दुनिया के किसी भी कोने में हो, कुछ भी तकलीफ हो, वह किसी भी समय सुषमा जी को ट्वीट कर सकता था और उसका उत्‍तर भी मिलता– समाधान सहित। यह उत्‍तर पाकर अफ्रीका, रूस, यूरोप, अरब, खाड़ी के देश, पाकिस्‍तान में बैठे भारतीयों की आंखों में आंसू आ जाते। सुषमा बहन, सुषमा दीदी, आमादेर माँ। कैसे कैसे आभारी, कृतज्ञ भारतीय उन्‍हें दुआएँ देते। ईसाई पादरी, मुस्लिम बहनें, बच्चियाँ, पाकिस्‍तान की गीता, जर्मनी में सरदार जी, अमरीका जाकर सतायी गयी नयी बहू... अनंत कथा है सुषमा जी के विश्‍वव्‍यापी ‘स्‍वदेश’ मंत्रालय की।

 

कोई किसी भी पार्टी में हो, किसी भी जमात, मजहब, सम्‍प्रदाय वाला हो वह सुषमा जी से बात करना, कुछ कहना बहुत आसान और सहज मानता था, मानो वह सुषमा जी से चिर परिचित हो। बेंजामिन नेतन्‍याहू, पुतीन, शी जिंन पिंग, ओबामा, अरब देशों के शेख- सबने सुषमा स्‍वराज की शिखर ऊँचाइयों को झुक कर नमन किया और यह सुषमा जी का व्‍यक्तित्‍व था कि इन वैश्‍विक दिग्‍गज नेताओं के व्‍यवहार में सुषमा जी के समक्ष आते ही अद्भुत विनय और आदर का भाव पकट होता था।

 

सूचना प्रसारण, स्‍वास्‍थ्‍य, विदेश जैसे अनेक महत्‍वपूर्ण मंत्रालय संभालते हुये– हर जगह अपनी खास छाप, महक और रीति के चिह्न छोड़े। 25 वर्ष की आयु से मंत्रिपद पायीं सुषमा जी 67 वर्ष की आयु तक– 42 वर्ष भारतीय राजनीति में अद्भुत गरिमा के साथ दैदीप्‍यमान नक्षत्र जैसी रहीं। वे वस्‍तुत: ऐसी आकाशगंगा थीं जो बहुत ऊँचाई से भी सामान्‍य जन को शीतल, सुखद आत्‍मीयता का अहसास कराती थीं। उनकी गाथा सार्वजनिक जीवन जी रहे सभी लोगों के लिये एक बड़ा सन्‍देश देती है- ऊँचाई कितनी भी बड़ी पाओ, पर ध्‍यान रखो तुम्‍हारे साए की छाया कभी लुप्‍त न हो। वाणी की मधुरता को निभा कर सुषमा स्‍वराज भारतीय राजनीति की सरस्‍वती पुत्री बन गयीं। उनकी कोई तुलना नहीं। कोई विरोधी नहीं। निर्वैर, निर्भीक, दृढ़।

 

उनका भाषा पर अद्भुत अधिकार था, जब वह कर्नाटक गयीं तो कन्‍नड़ सीखी, गुजरात में गुजराती, तमिल में ऐसी तमिल कि लोग चकित रह गये। मुझसे अक्‍सर कहतीं- तुम तमिलनाडु में काम कर रहे हो, मुझे कुछ बताया करो- तमिल संस्‍कृति बहुत विराट, महान है। पूर्व एशिया पर उनका विशेष ध्‍यान था। लुक ईस्‍ट पॉलिसी को एक्‍ट ईस्‍ट पॉलिसी में बदलना उनका ही योगदान था। देश-विदेश, सर्व पंथ समभाव पर हिन्‍दुत्‍व का गहरा अभिमान, महिला जागृति, परंपराओं की लोक, भाषायी समृद्धि, भारत शत्रु के लिये रणचंडी, हर भारतीय के लिये माँ का प्रतिरूप। ऐसी सुषमा अब कहाँ…।।

 

-तरूण विजय

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं।)

 

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