Prabhasakshi NewsRoom: Karnataka Hijab विवाद से जुड़ा हर वो पहलू जो आपके लिए जानना है जरूरी

By नीरज कुमार दुबे | Oct 13, 2022

उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पहनने पर लगा प्रतिबंध हटाने से इंकार करने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर खंडित फैसला सुनाया है। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं खारिज कर दीं, जबकि न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने उन्हें स्वीकार किया। न्यायमूर्ति गुप्ता ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘इस मामले में मतभेद हैं।’’ पीठ ने खंडित फैसले के मद्देनजर निर्देश दिया कि कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली इन याचिकाओं को एक उचित वृहद पीठ के गठन के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाए।


इस बीच, वकीलों ने बताया है कि अभी हाई कोर्ट का फैसला लागू रहेगा क्योंकि एक जज ने याचिका को खारिज किया है और दूसरे ने उसे खारिज नहीं किया है। वकील वरूण सिन्हा ने कहा है कि अब हाई कोर्ट का फैसला तब तक जारी रहेगा जब तक किसी बड़े बेंच का फैसला नहीं आ जाता है।

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उधर, इस मामले में जहां न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता ने उच्च न्यायालय के निर्देश के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया वहीं न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कहा है कि उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं स्वीकार की हैं। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि उन्होंने अपने निर्णय में अनिवार्य धार्मिक प्रथा की अवधारणा पर मुख्य रूप से जोर दिया, जो विवाद का मूल नहीं है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने कहा कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गलत रास्ता अपनाया और हिजाब पहनना अंतत: पसंद का मामला है, इससे कम या ज्यादा कुछ और नहीं।


हम आपको बता दें कि न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने 10 दिनों तक मामले में दलीलें सुनने के बाद 22 सितंबर को याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह मामला तब सुर्खियों में आया था जब कर्नाटक उच्च न्यायालय ने 15 मार्च को राज्य के उडुपी में गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की मुस्लिम छात्राओं के एक वर्ग द्वारा कक्षाओं के अंदर हिजाब पहनने की अनुमति देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि हिजाब पहनना इस्लाम में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।


हम आपको यह भी बता दें कि उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों ने जोर देकर कहा था कि मुस्लिम लड़कियों को कक्षाओं में हिजाब पहनने से रोकने से उनकी पढ़ाई खतरे में पड़ जाएगी क्योंकि उन्हें कक्षाओं में जाने से रोका जा सकता है। कुछ वकीलों ने इस मामले को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने की भी गुजारिश की थी। वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश वकीलों ने कहा था कि हिजाब को लेकर विवाद खड़ा करने वाला कर्नाटक सरकार का फैसला ‘‘धार्मिक रूप से तटस्थ’’ था।


जहां तक उच्चतम न्यायालय की बात है तो हम आपको यह भी याद दिलाना चाहेंगे कि कक्षा के अंदर हिजाब पहनने की जिद पर अड़ी कुछ छात्राओं की याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई से उच्चतम न्यायालय ने पहले इंकार करते हुए यह भी कहा था कि परीक्षाओं का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।


जहां तक यह मामला शुरू कब और कैसे हुआ था इसकी बात है तो आपको बता दें कि इस साल एक जनवरी को कर्नाटक के उडुपी में एक कॉलेज की छह छात्राएं ‘कैम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया’ द्वारा आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में शामिल हुई थीं और उन्होंने हिजाब पहनकर कक्षा में प्रवेश करने से रोकने पर कॉलेज प्रशासन के खिलाफ रोष व्यक्त किया था। कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति मांगने का मुद्दा तब एक बड़ा विवाद बन गया था जब कुछ हिंदू छात्र भगवा शॉल पहनकर आने लगे थे। इसके बाद शैक्षणिक संस्थानों को कुछ दिनों के लिए बंद कर दिया गया था। इसके बाद कर्नाटक सरकार ने पांच फरवरी को एक आदेश जारी कर उन वस्त्रों को पहनने पर रोक लगा दी थी जिससे स्कूल और कॉलेज में समानता, अखंडता और सार्वजनिक व्यवस्था बाधित होती है। बाद में मुस्लिम लड़कियों ने राज्य सरकार के इस आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

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अब आप समझिये कि जब यह मामला कर्नाटक उच्च न्यायालय पहुँचा तो अदालत ने क्या कहा था। कर्नाटक में तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि स्कूल की वर्दी का नियम एक उचित पाबंदी है और संवैधानिक रूप से स्वीकृत है, जिस पर छात्राएं आपत्ति नहीं उठा सकतीं। मुख्य न्यायाधीश ऋतु राज अवस्थी, न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित और न्यायमूर्ति जेएम खाजी की पीठ ने आदेश का एक अंश पढ़ते हुए कहा था, ‘‘हमारी राय है कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना इस्लाम धर्म में आवश्यक धार्मिक प्रथा का हिस्सा नहीं है।’’ पीठ ने यह भी कहा था कि सरकार के पास पांच फरवरी, 2022 के सरकारी आदेश को जारी करने का अधिकार है और इसे अवैध ठहराने का कोई मामला नहीं बनता है।

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