By अभिनय आकाश | Jul 28, 2022
मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कई मायने निकाले जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट को एक तरह से सरकार के लिए बड़ी राहत और विपक्ष के लिए झटका बताया जा रहा है। माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कई नेताओं की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं। वहीं कुछ हाई-प्रोफाइल मनी लॉन्ड्रिंग आरोपियों के मामले में भी मंद पड़ी कार्रवाई रफ्तार पकड़ सकती है। जिसमें कांग्रेस के लोकसभा सांसद कार्ति चिदंबरम, उनके पिता पी चिदंबरम, जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती, उद्योगपति शिविंदर मोहन सिंह के अलावा अन्य राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों शामिल हैं जिनके जांच में तेजी आ सकती है।
इनमें से कई मामलों में जांच और सुनवाई लगभग रुक गई थी क्योंकि एजेंसी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा कर रही थी जिसमें उसके कई प्रावधानों को चुनौती दी गई थी। इसके अंतर्गत गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती की अपनी शक्तियों से निपटने और केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर)की प्रति साझा करने से संबंधित थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी तर्कों को खारिज कर दिया और ईसीआईआर की प्रति प्रदान नहीं करने के लिए पीएमएलए के तहत प्रवर्तन निदेशालय की संवैधानिक शक्तियों को मान्य किया। कुछ आरोपियों ने हलफनामा दाखिल करने से छूट की मांग की थी।
मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों का सामना कर रहे न्यूज पोर्टल न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ ने एजेंसी के अपने ईसीआईआर को पुलिस प्राथमिकी के बराबर साझा नहीं करने के फैसले को चुनौती दी थी। अदालत ने नोट किया कि ईडी ने अभी तक संबंधित पक्षों को प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) की प्रति नहीं दी है। इस मामले में दर्ज ईसीआईआर की एक प्रति मांगने वाली न्यूज पोर्टल की याचिका पर ईडी को नोटिस भी जारी किया था।
शीर्ष अदालत ने माना कि ईडी के निदेशक के पास वही शक्तियां हैं जो सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत एक दीवानी अदालत में निहित हैं। जिसमें अभिलेखों का, हलफनामों पर साक्ष्य प्राप्त करना, गवाहों और दस्तावेजों की जांच के लिए कमीशन जारी करना शामिल हैं। ईडी ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन और आईएनएक्स-मीडिया मामलों में कार्ति चिदंबरम और उनके पिता पी चिदंबरम के खिलाफ कई आरोप पत्र दायर किए थे। एजेंसी द्वारा स्थापित कथित मनी ट्रेल अदालतों के समक्ष दायर अभियोजन शिकायत का हिस्सा है जिसने आरोपों का संज्ञान लिया था और मुकदमे का आदेश दिया था।
ईडी के सूत्रों ने कहा कि हालांकि, आरोपियों द्वारा मुकदमे की प्रक्रिया को रोकने के लिए उच्च न्यायालयों में अपील दायर की गई थी, जो कुछ मामलों में दो साल से अधिक समय से लंबित है। प्रत्येक मामले में संबंधित व्यक्ति को ईसीआईआर की एक प्रति की आपूर्ति अनिवार्य नहीं है, यदि गिरफ्तारी के समय ईडी ऐसी गिरफ्तारी के आधार का खुलासा करता है तो यह पर्याप्त है।