By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 27, 2019
पणजी। सीरिया में आईएसआईएस द्वारा पकड़े गए एक फोटोग्राफर के बारे में एक सच्ची कहानी पर आधारित फिल्म डेनियल के निर्देशक नील आर्डेन ओपलेव का मानना है कि स्ट्रीमिंग सर्विसेज धीरे-धीरे बड़े स्टूडियो का वर्चस्व तोड़ देंगी और छोटे फिल्म निर्माताओं के लिए फायदेमंद साबित होंगी। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि स्ट्रीमिंग स्थानीय फिल्म निर्माण की लागत बढ़ा रही हैं। ओपलेव ने गोवा के पणजी में 50वें अंतरराष्ट्रीय भारतीय फिल्म महोत्सव : इफ्फी: 2019 में मीडिया से बातचीत में यह विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि अमेरिकी फिल्म-निर्माण बड़े स्टूडियो द्वारा संचालित है जबकि यूरोप फिल्म-निर्माण के स्वतंत्र स्वरूप को अपनाता है।
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भारतीय फिल्म-निर्माण काफी हद तक अमेरिकी फिल्म निर्माण की तरह है और यह यूरोप की तुलना में ज्यादा तेजी से लास एंजेलिस में फिल्म निर्माण की ओर बढ़ेगा। यूरोपीय फिल्मों को छोटे पैमाने पर फिल्माया जाता है और वे मध्यम बजट की फिल्में होती हैं और कभी-कभी फिल्म निर्माताओं को फिल्म के लिए धन पाने के लिए यूरोपीय संघ, सरकारों पर निर्भर रहना पड़ता है।
डेनियल के बारे में उन्होंने कहा कि यह इतना दमदार विषय था कि मैं वापस लौटने और उसके आधार पर एक फिल्म बनाने के लिए मजबूर हो गया था। यह फिल्म मास्टर फ्रेम्स श्रेणी के तहत प्रदर्शित की गई, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुशल फिल्म निर्माताओं की फिल्मों को दिखाया जाता है। यह कहानी हाल के दौर की सबसे असाधारण अपहरण की घटनाओं में से एक है। इसका नायक एक नौजवान डेनिस फोटो पत्रकार डेनियल रे है, जिसे आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट द्वारा सीरिया में अमरीकी पत्रकार जेम्स फोले सहित अन्य विदेशी नागरिकों के साथ 398 दिनों तक बंधक बना कर रखा गया था। इस फिल्म की कहानी खुद को बचाने के डेनियल के संघर्ष, जेम्स के साथ उसकी दोस्ती तथा डेनमार्क में रे के परिवार के इस दु:स्वप्न के साथ आगे बढ़ती है कि शायद वे अपने बेटे को दोबारा कभी जीवित नहीं देख पाएंगे।
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एक सवाल के जवाब में ओपलेव ने कहा कि अमेरिका विदेशी फिल्मों के लिए पारंपरिक रूप से खराब बाजार है। उनकी फिल्म “वी शैल ओवरकम” भारत में वितरित की गई थी। उन्होंने कहा कि विदेशी फिल्म खरीदना वितरकों के लिए जोखिम भरा काम होता है। यूरोपीय फिल्म निर्माता चीनी बाजार में संभावनाएं तलाशने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पुरस्कारों को लेकर अतिरंजित धारणा रहती है हालांकि विदेशों में फिल्म बनाने की कोशिश करने वालों को इनसे मदद मिलती है। महोत्सव में आईसीएफटी- यूनेस्को गांधी पदक के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाली इतालवी फिल्म रवांडा के निर्देशक रिकार्डो साल्वेती भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे। उन्होंने कहा कि हमारी फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है।
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चूंकि यह फिल्म अफ्रीका पर केंद्रित है, इसलिए इसमें किसी की भी दिलचस्पी नहीं थी और हमें अपने देश में बहुत प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। कम बजट के कारण हमने इटली में अपने घर के पास शूटिंग की। हालांकि, स्थान में इतनी समानता थी कि शूटिंग की जानकारी मिलने पर रवांडा के कई लोगों को लगा कि हम रवांडा में ही कहीं हैं। उन्होंने कहा कि सबसे मुश्किल हिस्सा पटकथा से अपनाना था। उन्होंने कहा कि मैंने इस फिल्म में थिएटर और फिल्म के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश की है। मैंने शैलियों और भाषाओं को मिलाने की कोशिश की। हम इस फिल्म को नेटफ्लिक्स पर डालने की कोशिश कर रहे हैं और ऑनलाइन अनुरोध के आधार पर स्क्रीनिंग की व्यवस्था भी कर रहे हैं।