वह इतने नहीं बलिक कितने बरस से सोच रहे थे कि कहानी पर एक संजीदा वर्कशॉप आयोजित की जाए ताकि कहानी की कहानी को और समझा जाए। नए उगते लेखकों को समझाया, बताया, सिखाया जाए कि क्या होती है कहानी। कैसे सोची, लिखी और छपवाई जाती है। कहानी बड़ी ज़रूरी वस्तु होती है, ज़िंदगी के लिए, फिल्मों के लिए, नानी दादी और बच्चों के लिए। हमारे समाज में कहानी पकाने, डालने की सांस्कृतिक परम्परा है। वैसे तो सरकारी भाषा एवं संस्कृति विभाग भी चाहता है और बैठकों में कहानी बारे गोष्ठी आयोजित करता है। वह अलग बात है कि उस गोष्ठी में कहानीकार उपस्थित नहीं होते। अधिकारी, कवि सह श्रोता ही कहानी पर अपनी चर्चाओं की कहानियां कह सुन लेते हैं।
पहले कहानी पर चर्चा बारे किए गए आयोजन की कहानी पर चर्चा ज़रूरी है। किसी भी साहित्यिक आयोजन के लिए एक ऐसा मुख्य अतिथि ज़रूरी होता है जो कुछ लोगों को उस आयोजन में खींच सके। मुख्य अतिथि के साथ विशिष्ट अतिथि, विशेष अतिथि व सहायक मुख्य अतिथि होना लाजमी होता है। किसी उच्च सरकारी अधिकारी को यह साहित्यिक अवसर मिल जाए तो वह अपनी पत्नी के साथ तशरीफ़ लाकर, सार्वजनिक रूप से खुद को धन्य समझता है और धन्यवाद भी करता है। सरकारी मदद भी आराम से स्वीकृत हो जाती है।
आयोजन हेतु सरकारी कार्यालय में जगह भी मिल जाती है। माइक इत्यादि की सुविधा के पैसे भी बच जाते हैं जो मुख्य अतिथि व अन्यों के लिए स्मृति चिन्ह खरीदने में खर्च किए जा सकते हैं। वैसे भी आजकल सभी उपस्थित साहित्य और नान साहित्य प्रेमियों को मोमेंटो देने का ट्रेंड है नहीं तो आयोजन के बाद दूसरी कहानियां वातावरण में टहलने लगती हैं। वर्कशॉप के लिए कहानीकार कम पड़ रहे हो तो कहानी गढ़ने और पढने वाले बाहर से बुलाए जा सकते हैं इस बहाने घर का जोगी जोगना बाहर का जोगी सिद्ध परम्परा कायम रहती है।
बिना कवि सम्मेलन के कहानी वर्कशॉप कतई संपन्न नहीं हो सकती क्यूंकि कवि होना आसान काम है। कहानी में ज्यादा शब्द लिखने पड़ते हैं। वैसे बीच में लघु वीडियो फ़िल्में भी दिखाई जा सकती हैं। आजकल वीडियो बनाने और दिखाने का ज़ज्बा बढ़ता जा रहा है। कार्यक्रम कैसा भी करना हो कई तरह की कहानी डालनी ही पड़ती है। कहानी पर मेहनत करने वाला लेखक संजीदा संवाद करते हुए कहता है कि कहानी की संवेदना में ज्यादा गहनता, भाषा और शैली के ड्राफ्ट ज्यादा, रोचक और समकालीन शिल्प के करीब ले जाने के लिए फ्लैशबैक का प्रयोग किया जाना चाहिए तो लेखक ईमानदारी से स्वीकारता है कि वे कहानी पर ज़्यादा परिश्रम नहीं करते।
वे गर्व से कहते हैं कि आज तक चौरासी कहानियां लिख चुके हैं परंतु एक बार लिखकर दोबारा नहीं पढ़ी। एक वरिष्ठ कवि ने सच बयान कर दिया कि कहानी पर सार्थक चर्चा हो नहीं पाई इसलिए शुभ कामनाएं देना ज़रूरी नहीं। कहानी वर्कशॉप में चाहे कहानीकार आए या नहीं फिर भी कुछ कवियों की कविताएं मुख्य अतिथि के कानों से वंचित रह गई। कुछ भी हो आयोजकों को दिल से लगा कि इस आयोजन से उन्हें और कहानी को बहुत फायदा पहुंचा है। वैसे भी इस आयोजन का उद्देश्य यही तो था।
- संतोष उत्सुक