PM Modi faces no-trust vote: महत्वपूर्ण बहुमत नहीं चर्चा है, ठीक 1963 की तरह, कहानी देश के पहले अविश्वास प्रस्ताव की, कृपलानी के सवाल, नेहरू के जवाब

By अभिनय आकाश | Aug 08, 2023

19 अगस्त 1963 की तारीख जब 75 साल का एक वयोवृद्ध नेता सदन के पटल पर खड़ा होता है और कहता है- "सरकार की विदेश नीति विफल रही है। वो अपने घर में विफल रही है। देश मंदी में है। और ये ना समझा जाए कि मैं सिर्फ 73 सांसदों का प्रतिनिधित्व करने के लिए सदन में खड़ा हूं। कांग्रेस के पास जितनी वोटिंग स्ट्रेंथ है उससे ज्यादा मेरे पास है। चुनाव में 45.27 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिले थे। जबकि विपक्ष को 54.76 प्रतिशत कम्यूनिस्ट भी हमारे साथ हैं। उन्हें भी इस सरकार पर भरोसा नहीं है। वो भी चाहते हैं कि सत्ता में बैठे लोग कुर्सी से उतरें।" ये बयान था जेबीकृपलानी का जो प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सांसद थे। ठीक एक साल पहले 1962 में भारत को अपने पड़ोसी चीन के हाथों अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था। इस बीच, कांग्रेस को भी चुनावी उलटफेर का स्वाद चखना पड़ा। इससे मीनू मसानी, आचार्य जेबी कृपलानी और राम मनोहर लोहिया सहित विपक्षी नेताओं को संसद में प्रवेश पाने की अनुमति मिल गई। आचार्य जेबी कृपलानी ही थे जिन्होंने तीसरी लोकसभा में नेहरू शासन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था। कृपलानी पूर्व कांग्रेस नेता और उस समय प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सांसद थे। तत्कालीन अध्यक्ष हुकम सिंह को भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के सदस्यों उमाशंकर त्रिवेदी (मंदसौर) और रामचंद्र बड़े (खरगोन) सहित नेहरू सरकार के खिलाफ कई अविश्वास प्रस्ताव प्राप्त हुए। एक अन्य प्रस्ताव सीपीआई सांसद रेनू चक्रवर्ती और एसएम बनर्जी द्वारा पेश किया गया था, लेकिन आवश्यक पर्याप्त समर्थन प्राप्त करने में विफल रहा। सोशलिस्ट पार्टी के सांसद राम सेवक यादव (बाराबंकी) और मनीराम बागरी (हिसार), हिंदू महासभा के सांसद बिशन चंद्र सेठ (एटा), और पीएसपी सांसद सुरेंद्रनाथ द्विवेदी (केंद्रपाड़ा) ने भी अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। हालांकि ये सब जानते थे कि अविश्वास प्रस्ताव ही गिरेगा नेहरू सरकार नहीं। लेकिन तब भी आचार्य कृपलानी लोकसभा में ये प्रस्ताव लाकर रहे। ये देश में लाया गया पहला अविश्वास प्रस्ताव था। कट टू 8 अगस्त 2023 का यानी आज का दिन अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में बहस की शुरुआत का दिन। कांग्रेस की तरफ से मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। यानी नरेंद्र मोदी सरकार को लोकसभा में चर्चा के  बाद बहुमत साबित करना होगा। यहां पर महत्वपूर्ण बहुमत नहीं चर्चा है। ठीक 1963 की तरफ यहां पर चर्चा ही मेन कीवर्ड है। विपक्ष की वर्किंग थ्योरी है कि वो अविश्वास प्रस्ताव के बहाने प्रधानमंत्री को सदन में आने और बयान देने पर मजबूर कर सकती है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री का 5 साल पुराना बयान भी सोशल मीडिया पर तैर रहा है कि 2023 में भी आप इसी तरह प्रस्ताव लाएंगे। संकेत यही की विपक्ष वास्तविकता से कट चुका है और उसके पास लकीरें पीटने के अलावा कोई चारा नहीं है। ऐसे में आज आपको देश के पहले अविश्वास प्रस्ताव की कहानी बताते हैं। 

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विपक्ष का आरोप

कृपलानी ने नेहरू शासन पर चीन के खिलाफ सतर्क न रहने का आरोप लगाया। कृपलानी ने दावा किया कि नेफा (नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) में फील्ड अधिकारियों से परामर्श किए बिना राजधानी में सैन्य निर्णय लिए गए। चीनियों के साथ बातचीत के लिए इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं है और भारत को आक्रामक को खदेड़ने के लिए शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों तरह से तैयार रहना चाहिए। उन्होंने भारत और चीन के बीच पंचशील समझौते को भी 'बकवास' बताया और बीजिंग के साथ संबंध तोड़ने का आह्वान किया।

भ्रष्टाचार को लेकर भी नेहरू सरकार की आलोचना 

कृपलानी ने कहा कि एक फ़ारसी कहावत है कि जब किसी देश का शासक बिना भुगतान के एक चुटकी नमक लेता है, तो उसके अधिकारी पूरे देश को लूट लेते हैं। यदि कोई मंत्री यह सोचता है कि वह जो कुछ भी गुप्त रूप से करता है उसके बारे में उसके कर्मचारियों को पता नहीं चलता है, तो वह मूर्खों के स्वर्ग में रह रहा है... सरकार अपनी विदेश नीति में विफल रही है; यह अपनी गृह नीति में विफल रही है। यह मत समझिए कि मैं इस सदन के केवल 73 सदस्यों का प्रतिनिधित्व करने के लिए यहां खड़ा हूं। मेरे पास वोट देने की ताकत कांग्रेस के पास वोट देने की ताकत से ज्यादा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को केवल 45.27 प्रतिशत वोट मिले थे; विपक्ष के पास 54.76 प्रतिशत था... यह आवश्यक नहीं है कि इस सदन में किसी एक दल के पास पर्याप्त ताकत हो। अगर कुछ पार्टियां होंगी तो भी वे एकजुट हो सकती हैं, जैसे इस बार हम एकजुट हुए हैं.' याद रखें, जहां तक ​​देश की सरकार का सवाल है, वहां कोई शून्यता नहीं हो सकती।

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नेहरू का जवाब

नेहरू ने कहा कि वह इस प्रस्ताव और बहस का 'स्वागत' करते हैं। नेहरू ने उत्तर दिया, “अविश्वास प्रस्ताव का उद्देश्य सरकार में पार्टी को हटाना और उसकी जगह लेना है। वर्तमान उदाहरण में यह स्पष्ट है कि ऐसी कोई अपेक्षा या आशा नहीं थी। ने महसूस किया है कि अगर हम समय-समय पर इस तरह के परीक्षण करते रहें तो यह अच्छी बात होगी। तीन माननीय सदस्य, तीन नवागंतुक, जिनके भाषणों को मैंने बहुत रुचि और ध्यान से सुना आचार्य कृपलानी, एमआर मसानी और डॉ. लोहिया, शायद उप-चुनावों में अपनी जीत से अभी भी थोड़े उत्साहित हैं। वे इस सरकार और इसका हिस्सा बनने वाले सभी लोगों पर सीधा हमला कर सकते हैं। डॉ. लोहिया ने बार-बार मेरा जिक्र करके मुझे गौरवान्वित किया। नेहरू ने कहा कि मैं अपने बारे में बहस नहीं करना चाहता; यह मेरे लिये अशोभनीय है; किसी भी तरह ऐसा करना गलत होगा। लेकिन इसने बहस को बाज़ार के बेहद निचले स्तर पर ला दिया। तीन माननीय सदस्य, तीन नवागंतुक, जिनके भाषण मैंने बहुत रुचि और ध्यान से सुने, आचार्य कृपलानी, श्री एमआर मसानी और डॉ. लोहिया, शायद, उप-चुनावों में अपनी जीत से अभी भी थोड़े उत्साहित थे और सोचने लगे थे कि वे इस सरकार और इसका हिस्सा बनने वाले सभी लोगों पर सीधा हमला कर सकें। डॉ. लोहिया ने बार-बार मेरा जिक्र करके मुझे गौरवान्वित किया। मैं अपने बारे में बहस नहीं करना चाहता; यह मेरे लिये अशोभनीय है; किसी भी तरह ऐसा करना गलत होगा। लेकिन इससे बहस बाज़ार के निचले स्तर पर आ गई।

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