By अभिनय आकाश | Jul 19, 2022
ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत की चिंगारी भड़काने वाले बैरकपुर रेजीमेंट के सिपाही मंगल पांडे जिन्हें देश को आजाद कराने का पहला श्रेय दिया जाता है। उनकी आजादी की चिंगारी ने ही ब्रिटिश हुकूमत को इतना खौफजदा कर दिया कि निश्चित तारीख से दस दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को पश्चिम बंगाल के बैरकपुर जेल में उन्हें फांसी दे दी गई। मंगल पांडे ने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34 वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (बीएनआई) रेजिमेंट में एक सिपाही (सैनिक) के रूप में सेवा की। कारतूसों में लुब्रिकेंट के रूप में गाय और सुअर की चर्बी के इस्तेमाल की खबरों के बाद उन्होंने नई पेश की गई एनफील्ड राइफल के ग्रीस्ड कारतूसों को दांतों से हटाने से इनकार कर दिया। ‘मारो फिरंगियों को’ का हुंकार देने के साथ ही मंगल पांडे ने सिपाहियों से ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने के लिए कहा और हथियार उठा लिया था।
प्रारंभिक जीवन
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को ब्रिटिश भारत के सीडेड एंड कॉनक्वेर्ड प्रोविंस (वर्तमान में उत्तर प्रदेश में) के बलिया गांव में हुआ था। पांडे मजबूत हिंदू मान्यताओं के साथ एक उच्च जाति ब्राह्मण जमींदार परिवार से थे। 1849 में वो बंगाल सेना में शामिल हो गए। बंगाल सेना ब्रिटिश भारत की 3 प्रेसीडेंसी में से एक की सेना थी। मार्च 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (B.N.I.) रेजिमेंट की 5वीं कंपनी में एक निजी सैनिक बन गए। रेजिमेंट में कई ब्राह्मण शामिल थे।
मंगल पांडे और 1857 का विद्रोह
अंग्रेजों ने 1850 के दशक के मध्य में भारत में एक नई एनफील्ड राइफल पेश की और इसके कारतूस के सिरों को काटने के बाद ही हथियार में लोड किए जा सकते थे। अफवाहों का दौर शुरू हो गया कि कारतूस में इस्तेमाल होने वाले लुबर्टीकेंट में गाय या सुअर का चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है। हिंदुओं में गायों का मां का दर्जा दिया जाता है, जबकि मुसलमानों के लिए सूअर का मांस वर्जित है। इस वजह से भारतीय सिपाहियों में आक्रोश की भावना पैदा होने लगी। पांडे उस दौरान बैरकपुर के गैरीसन में तैनात थे। आस्था से हिंदू ब्राह्मण, पांडे भी इस मामले के बारे में जानकर क्रोधित हो गए और उन्होंने अंग्रेजों को अपनी अस्वीकृति दिखाने का संकल्प लिया। आमतौर पर यह माना जाता है कि पांडे ने अपनी रेजिमेंट के अन्य सैनिकों को ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उकसाने का प्रयास किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की योजना बनाई।
8 अप्रैल को दे दी गई फांसी
29 मार्च, 1857 को बैरकपुर में तैनात 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के एडजुटेंट इयुटेनेंट बॉघ को पता चला कि उनकी रेजिमेंट के कुछ सिपाही उत्तेजित अवस्था में हैं और एक मंगल पांडे बंदूक की कारतूस को लेकर अपने साथी को विद्रोह करने के लिए उकसा रहा है। २4 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पांडे ने रेजीमेण्ट के अफ़सर एडजुटेंट इयुटेनेंट बॉघ पर हमला कर के उसे घायल कर दिया। जनरल ने जमादार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया पर ज़मीदार ने मना कर दिया। सिवाय एक सिपाही शेख पलटु को छोड़ कर सारी रेजीमेण्ट ने मंगल पांडे को गिरफ़्तार करने से मना कर दिया। 6 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।
- अभिनय आकाश