आज के समय में दादी-नानी की कहानी बीते युग की बात लगती है। फ़ेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप्प के ज़माने में अगर आपको ठहराव चाहिए तो कुछ पल मालती जोशी के क़िस्सों में डूबकर देखिये, होठों पर एक प्यारी सी मुस्कान और मन का सुकून मिलना लाज़मी है। पद्मश्री सम्मानित कथाकार मालती जोशी के पास कहानियों का अनुमप संसार है। हाथों में माइक पकड़कर जब वो अपनी कहानियाँ सुनाना शुरू करती हैं तो ऐसा लगता है मानो आपबीती सूना रही हों – हमारे-आपके जैसे पात्र जीवन के छोटे-बड़े उलझनों और अनुभवों को बाँटते से प्रतीत होते हैं। क़िस्सागोई की धरोहर संभाले मालती जोशी पिछले पाँच दशकों से हज़ारों कहानियों का सृजन कर चुकी हैं। मूलतः हिन्दी लेखन में सक्रिय मालती मराठी में भी तेरह पुस्तकें प्रकाशित कर चुकी हैं। हिन्दी में अबतक उनकी 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कहानियों को अन्य भारतीय भाषाओं जैसे मराठी, उर्दू, बांग्ला, तमिल, तेलगू, पंजाबी, मलयालम तथा कन्नड़ में अनुवाद किया गया है। कुछ विदेशी भाषाओँ जैसे अंग्रेज़ी, रूसी तथा जापानी में भी इनकी कहानियाँ अनूदित हुई हैं।
गौरतलब है कि मालती जोशी वैश्विक मँच पर भी एक जाना-माना नाम हैं।
मालती जोशी का जन्म 4 जून 1934 को औरंगाबाद में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता कृष्णराव दिघे तत्कालीन ग्वालियर रियासत में जज थे और मराठी, संस्कृत और अंग्रेज़ी के विद्वान् थे। माँ सरला देवी को मराठी पत्रिकाओं से बेहद लगाव था। माता-पिता का पुस्तक प्रेम मालती जोशी में स्वतः संचारित हुआ और मन के भाव कविता और गीत के रूप में निकलने लगे। पिता के स्थानान्तरण के फलस्वरूप मध्य-प्रदेश के छोटे-छोटे कस्बों-गावों से होते हुए वे इंदौर पहुँचीं और कॉलेज के ज़माने में कवि-सम्मेलनों में खासी लोकप्रियता बटोरी। मीरा और महादेवी से अनुप्राणित उनकी रचनाओं को सुनकर शिवमंगल सिह ‘सुमन’ ने उन्हें ‘मालवा की मीरा’ से संबोधित किया। ‘मालवा की मीरा’ से कथाकार मालती जोशी तक के सफ़र में कई पड़ाव आये – व्यंग्य-वार्ता, बाल कथाएँ, रेडियो के लिए झलकियाँ आदि विधाओं में कलम चलाने के बाद कथा-संसार में उनका पदार्पण हुआ। एक के बाद एक कहानियाँ तत्कालीन दैनिक समाचार पत्रों के रविवारीय विशेषांक तथा धर्मयुग, सरिता, मनोरमा, कादम्बिनी, मुक्ता, निहारिका आदि में प्रकाशित होने लगी। हिन्दी कथा-संसार में मालती का मन ऐसा रमा कि देखते ही देखते वे देश की प्रतिष्ठित लेखकों में शुमार हो गयीं। आज भी उनकी रचनाएँ नवनीत, कथाबिम्ब, मधुरिमा और समावर्तन जैसी पत्रिकाओं में छप रहीं हैं।
मालती जोशी की भाषा-शैली बेहद सरल, सुगम और सहज है। उनके सभी पात्र आम जीवन से प्रेरित हमारे-आपके बीच के क़िरदार हैं। अधिकतर कहानियाँ स्त्री-प्रधान हैं किन्तु न तो वे दबी-कुचली अबला नारी होती है और ना ही शहरी, ओवरस्मार्ट कामकाजी लडकियाँ - उनके सभी पात्र यथार्थ के धरातल से निकले वास्तविक-से प्रतीत होते हैं। उनकी कथाओं से सकारात्मकता का संचार होता है जो स्वतः ही दिल की गहराइयों में उतरता चला जाता है। पुरुष पात्रों को भी निरंकुश या अहंकारी नहीं बनाकर उन्होंने कई दफ़े उनके सकारात्मक पक्षों को उजागर किया है। मध्यम-वर्गीय परिवारों की आम समस्याएँ, दैनिक जद्दोजहद और मन के भावों को बहुत संवेदनशील अंदाज़ में संवाद रूप में प्रस्तुत करना मालती जोशी की ख़ासियत है। उनका यही अनूठापन उन्हें पाठकों के मन पर अंकित कर देता है और पाठक उन्हें बार-बार पढ़ना चाहता है। मालती जोशी अपने सभी दायित्वों का निर्वहन पूरी निष्ठा और ईमानदारी से करती रही हैं इसीलिए उन्हें अन्नपूर्णा, सुपर मॉम, सुपर फ्रेंडली ताई, अमज़िंग दादी और सर्वश्रेष्ठ कहानीकार कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा। मालती जी, आप दीर्घायु हों! माँ सरस्वती और माता अन्नपूर्णा की कृपा आप पर यों ही बनी रहे! जन्मदिन की अशेष शुभकामनाएँ!
मालती जोशी की प्रमुख कृतियाँ
हिंदी साहित्य
कहानी संग्रह– पाषाण युग, मध्यांतर, समर्पण का सुख, मन न हुए दस बीस, मालती जोशी की कहानियाँ, एक घर हो सपनों का, विश्वास गाथा, आखीरी शर्त, मोरी रंग दी चुनरिया, अंतिम आक्षेप, एक सार्थक दिन, शापित शैशव, महकते रिश्ते, पिया पीर न जानी, बाबुल का घर, औरत एक रात है, मिलियन डालर नोट, छोटा सा मन बड़ा सा दुःख, हादसे और हौसले,
बालकथा संग्रह– दादी की घड़ी, जीने की राह, परीक्षा और पुरस्कार, स्नेह के स्वर, सच्चा सिंगार
उपन्यास– पटाक्षेप, सहचारिणी, शोभा यात्रा, राग विराग
व्यंग्य– हार्ले स्ट्रीट
गीत संग्रह– मेरा छोटा सा अपनापन
अन्य संकलन– मालती जोशी की सर्वश्रेष्ठ कहानियाँ, आनंदी, परख, ये तेरा घर ये मेरा घर, दर्द का रिश्ता, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, अपने आँगन के छींटे, रहिमन धागा प्रेम का
मराठी साहित्य- पाषाण, परत फ़ेड, ऋणानुबंध, हद्द पार, कथा मालती, कन्यादान, शुभमंगल, शोभायात्रा, कळत नकळत, पारख, रानात हरवला सूर, आपुले मरण पाहिले म्यां डोळा
उपलब्धियाँ
1. वर्ष 1983 में रचना संस्था ने 5 हज़ार रूपये का पुरस्कार देकर यथोचित सम्मान दिया। उस समय उक्त संस्था द्वारा पुरस्कृत होने वाली वह पहली महिला साहित्यकार थीं।
2. वर्ष 1984 में मराठी कहानी संग्रह ‘पाषाण’ को महाराष्ट्र सरकार ने पुरस्कृत किया गया जो उनके द्वारा हिंदी में रचित हिंदी लघु उपन्यास ‘पाषाणयुग’ का अनुवाद है।
3. वर्ष 1999 में उन्हें मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा भवभूति अलंकरण सम्मान से विभूषित किया गया।
4. वर्ष 2006 में मध्यप्रदेश शासन का साहित्य शिखर सम्मान
5. वर्ष 2009 में प्रभाकर माचवे सम्मान
6. वर्ष 2011में दुष्यंत कुमार साहित्य साधना सम्मान
7. वर्ष 2011 में ओजस्विनी सम्मान
8. वर्ष 2013 में मप्र राजभाषा प्रचार समिति द्वारा सम्मान
9. वर्ष 2016 में कमलेश्वर स्मृति कथा पुरस्कार
10. वर्ष 2017 में वनमाली कथा सम्मान
11. वर्ष 2018 में साहित्य में योगदान हेतु भारत के राष्ट्रपति द्वारा उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
- दीपा लाभ
भारतीय संस्कृति की अध्येता