By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Mar 26, 2025
उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को उन भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया, जो ‘‘समाज को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं’’।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि राज्य सरकारों को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे आम जनता औषधि एवं जादुई उपचार अधिनियम, 1954 के तहत प्रतिबंधित आपत्तिजनक विज्ञापनों के बारे में शिकायत दर्ज करा सके।
पीठ ने कहा, ‘‘हम राज्य सरकारों को आज से दो महीने की अवधि के भीतर उचित शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने और नियमित अंतराल पर इसकी मौजूदगी का पर्याप्त प्रचार करने का निर्देश देते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने राज्यों को 1954 के अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन के संबंध में पुलिस तंत्र को संवेदनशील बनाने का निर्देश दिया। भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाते हुए उच्चतम न्यायालय ने 7 मई, 2024 को निर्देश दिया था कि किसी भी विज्ञापन को जारी करने की अनुमति देने से पहले, केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 की तर्ज पर विज्ञापनदाताओं से स्व-घोषणा प्राप्त की जाए।
ऐसे विज्ञापनों का मुद्दा तब उठा था जब शीर्ष अदालत 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पतंजलि और योग गुरु रामदेव पर कोविड रोधी टीकाकरण अभियान और आधुनिक चिकित्सा पद्धति को बदनाम करने का अभियान चलाने का आरोप लगाया गया था।