By इंडिया साइंस वायर | Oct 29, 2020
कोरोना वायरस के संक्रमण से सुरक्षा के लिए रासायनिक सैनिटाइजर अथवा साबुन से बार-बार हाथ धोना दैनिक जीवन का एक अंग बनता जा रहा है। हालांकि, बार-बार ऐसा करने से न केवल हाथ रूखे हो जाते हैं, बल्कि हाथों में खुजली भी होने लगती है। सब कुछ ठीक रहा तो कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए पेश की जा रही भारत की स्टार्टअप कंपनियों की अभिनव तकनीकों के जरिये इस समस्या का समाधान मिल सकता है। वास्तव में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग एवं देश के अन्य वैज्ञानिक संस्थानों द्वारा समर्थित विभिन्न स्टार्टअप कंपनियां कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए अब अधिक सुरक्षित विकल्प पेश कर रही हैं।
नये रोगाणुनाशियों का विकास राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी उद्यमिता विकास बोर्ड (NSTEDB) एवं सोसाइटी फॉर इनोवेशन ऐंड एंटरप्रेन्योरशिप (एसआईएनई) की संयुक्त पहल पर आधारित है। ये तकनीकें दस कंपनियों ने मुहैया करायी हैं, जिन्हें सेंटर फोर ऑगेमेंटिंग वॉर विद कोविड-19 हेल्थ क्राइसिस (सीएडब्ल्यूएसीएच) के तहत रोगजनक सूक्ष्मजीवों एवं वायरस के शोधन और सैनिटाइजेशन के लिए अनुदान दिया गया था। इन तकनीकों में, बायोमेडिकल कचरे के शोधन और सतह को रोगाणुओं से मुक्त करने के लिए नैनो मैटेरियल और रासायनिक प्रक्रिया पर आधारित नवाचार शामिल हैं। NSTEDB भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत कार्यरत एक निकाय है, जबकि एसआईएनई का संबंध भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई से है।
इस पहल के अंतर्गत, मुंबई की स्टार्टअप कंपनी इनफ्लोक्स वाटर सिस्टम्स ने कोरोना वायरस से लड़ने के लिए प्रदूषित जल शोधन की अपनी तकनीकों में बदलाव किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि उनकी ‘वज्र’ नामक तकनीक सतह और उपकरणों को संक्रमण रहित करने में उपयोगी है। ‘वज्र’ श्रृंखला की तकनीकों में ‘वज्र कवच-ई (केई)’ शामिल है, जो ओजोन पैदा करने वाले इलेक्ट्रोस्टैटिक डिस्चार्ज और यूवीसी लाइट स्पेक्ट्रम के प्रभावों के उपयोग से रोगजनकों की शोधन प्रक्रिया को अंजाम देती है। वज्र कवच-ई तकनीक पीपीई पर मौजूद वायरस, बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्मजीव उपभेदों को निष्क्रिय करने के लिए उन्नत ऑक्सीकरण, इलेक्ट्रोस्टैटिक और यूवीसी प्रकाश स्पेक्ट्रम का उपयोग करती है। यह पीपीई, मेडिकल और नॉन-मेडिकल गियर को दोबारा उपयोग योग्य बना सकती है। इनफ्लोक्स वाटर सिस्टम्स की शुरुआत जल शोधन के क्षेत्र में नवाचारों के लिए डीएसटी (आईआईटी बॉम्बे के माध्यम से) के ‘निधि प्रयास’ अनुदान की मदद से हुई थी। इस स्टार्टअप कंपनी की यह पहल डीएसटी से मिले सीएडब्ल्यूएच (कवच) अनुदान पर आधारित है। कंपनी सतह को संक्रमण मुक्त करने की 25 प्रणालियों का उत्पादन हर महीने कर सकती है और आने वाले महीनों में प्रत्येक माह उत्पादन क्षमता में 25 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद की जा रही है। इन प्रणालियों का परीक्षण आईआईटी, मुंबई और सेंटर फॉर सेल्युलर ऐंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी), हैदराबाद के वायरोलॉजी लैब के सहयोग से किया जा रहा है।
कोयंबटूर की कंपनी एटा प्यूरिफिकेशन भी रोगजनक सूक्ष्मजीवों एवं वायरस से निजात दिलाने की तकनीक प्रदान करती है। इन तकनीकों में पर्यावरण की दृष्टि से उन्नत माइक्रो-कैविटी प्लाज्मा प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है। इस अभिनव तकनीक में विसंक्रमित करने वाले तत्व सीधे हवा या ऑक्सीजन से उत्पन्न होते हैं, जो पारंपरिक रासायनिक शोधन की तकनीकों का एक व्यावहारिक विकल्प प्रदान कर सकते हैं। एक अन्य प्रणाली, कंप्लीट स्टर्लाइजेशन बाय माइक्रो-प्लाज्मा ऑक्सिडेशन (COSMO) है, जो क्वारेंटाइन स्थलों, एंबुलेटरी केयर और उपकरण सतहों सहित कोरोना वायरस से संक्रमित क्षेत्रों को तेजी से संक्रमण-रहित कर सकती है। यह अभिनव माइक्रो-प्लाज्मा रोगाणुनाशी प्रणाली कॉम्पैक्ट और स्केलेबल मॉड्यूलर इकाइयां प्रदान करती है, जो मजबूत, लचीली और ऊर्जा बचाने वाली है।
चेन्नई की स्टार्टअप कंपनी माइक्रोगो ने एक मैकेनिकल हैंड सैनिटाइजिंग डिस्पेंसर मशीन बनायी है। यह संपर्क रहित मशीन है, जो रियल-टाइम मॉनिटरिंग के जरिये डैशबोर्ड के माध्यम से हैंड सैनिटाइजेशन के चरणों को निर्धारित करती है। संक्रमण से बचाव से जुड़ी तकनीकों की इस श्रृंखला में पुणे की वीनोवेट बायोसॉल्यूशन्स ने गैर-अल्कोहल तरल सैनिटाइजर आधारित सिल्वर नैनो कण विकसित किए हैं। उनकी यह तकनीक आरएनए की प्रतिकृति बनने की प्रक्रिया को रोकती है और वायरस के प्रसार को नियंत्रित करने में मदद करती है। यह तकनीक सतह पर ग्लाइकोप्रोटीन को अवरुद्ध करती है, जिससे वायरस निष्क्रिय हो जाता है।
लखनऊ की मेसर टेक्नोलॉजी ने बायोमेडिकल अपशिष्ट के शोधन और लिनन एवं पीपीई को दोबारा इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए त्वरित माइक्रोवेव-आधारित हैंडहेल्ड स्टर्लाइजर ‘अतुल्य’ और एक माइक्रोवेव-असिस्टेड कोल्ड स्टर्लाइजेशन उपकरण ‘ऑपटिमेसर’ पेश किया है। यह सौ बार दोबारा उपयोग की क्षमता सुनिश्चित करने के लिए पीपीई किट और मास्क से रोगजनक सूक्ष्मजीवों एवं वायरस के शोधन में मदद करता है। वहीं, ‘अतुल्य’ हाथ से चलने वाला इंस्टेंट माइक्रोवेव आधारित रोगाणुनाशक है, जो यूवी ट्यूब-आधारित स्टर्लाइजर, सैनिटाइजिंग स्प्रे और रोगाणुनाशी एवं सुरक्षा के सभी संभव तरीकों से बेहतर बताया जा रहा है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा है कि “कोविड-19 से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण उत्पादों और प्रौद्योगिकियों के ऐसे महत्वपूर्ण उदाहरणों से ज्ञान सृजन और उसके उपभोग का मार्ग प्रशस्त करने वाली भारतीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी की मजबूत नींव का पता चलता है। इन असाधारण उपलब्धियों को संभव बनाने वाली संरचनाओं और प्रक्रियाओं को नयी विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति-2020 में शामिल किया जा रहा है।”
इन प्रौद्योगिकीयों को विकसित करने में आईआईटी, मुंबई, आईआईटी, दिल्ली, आईआईटी, कानपुर, आईआईटी, मद्रास, पुणे वेंचर सेंटर, पुणे, आईकेपी नॉलेज पार्क, हैदराबाद और केआईआईटी-टीबीआई, भुवनेश्वर जैसे इनक्यूबेटर्स के तकनीकी परामर्श और दिशा-निर्देशों की भूमिका अहम रही है।
(इंडिया साइंस वायर)