By अभिनय आकाश | Oct 29, 2024
भारत की आबादी कितनी है? इस सवाल का जवाब आपको गूगल पर मिल जाएगा। लेकिन इस अगला सवाल आएगा कि इंटरनेट पर मौजूद इस जानकारी को आप सत्यापित कैसे करेंगे। संदर्भ किसका देंगे। तब आपको भारत के आधिकारिक जनगणना के आंकड़ों की जरूरत पड़ेगी। सोचिए कि अगर आपको एक साधारण से सवाल के जवाब के लिए इस रिपोर्ट की आवश्यकता है तो 140 करोड़ लोगों के जीवन के हर पहलू के लिए जिम्मेदार सरकार को कितने महीन आंकड़ों की जरूरत पड़ती होगी। हम सब की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, आवास आदि के लिए जो नीतियां बनाई जाती हैं, वो जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही तैयार की जाती है। भारत में 12 बरस से जनगणना हुई ही नहीं। केंद्र सरकार ने जनगणना कराने का फैसला कर लिया है। ये 2025 में शुरू होकर 2026 तक चलेगी। अब सरकार इसमें जातिगत जनगणना कराएगी या नहीं ये कंफर्म नहीं है। विपक्ष ने इसे लेकर सरकार से सवाल भी पूछे हैं। जनगणना वास्तव में कैसे की जाती है, इसका परिसीमन, महिला संसद कोटा से संबंध है। जाति जनगणना लोगों की जरूरत है या फिर इसकी मांग सिर्फ और सिर्फ एक सियासी या चुनावी जिद है। तमाम सवालों के जवाब आइए इश रिपोर्ट के जरिए आपको देते हैं।
जनगणना का शेड्यूल क्या है
सरकारी सूत्रों के मुताबिक जनगणना 2025 में शुरू होकर 2026 तक चलेगी। इस जनगणना में लोगों से संप्रदाय भी पूछा जा सकता है। लोकसभा सीटों का परिसीमन जनगणना के बाद होगा। जाति जनगणना के बारे में केंद्र ने अभी कोई फैसला नहीं लिया है।
जनगणना में जाति कैसे आई?
भारत में जनगणना के बीच जाति जनगणना का बीज अंग्रेजों ने बोया था। फूट डालों और राज करो उन्हीं की नीति थी। समझ लीजिए कि जाति जनगणना उसी पॉलिसी की टूल किट थी। बहुत संक्षेप में हम 1881 से 2024 तक आते हैं। 1881 से 1931 तक अंग्रेजों ने छह बार जाति जनगणना करवाई। 1941 में भी जाति की गिनती हुई लेकिन डेटा प्रकाशित नहीं किया गया। 1951 में स्वतंत्र भारत की पहली सरकार ने एससी-एसटी को छोड़कर बाकी जाति की गिनती रोक दी। 2011 में केंद्र ने जाति जनगणना को मंजूरी दी, लेकिन डेटा जारी नहीं किया। 2011 की जनगणना में 46 लाख जातियों और उपजातियों का पता चला था। तब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-2 की सरकार थी। आज के इंडिया अलायंस के कई सहयोगी तब अड़े हुए थे। लेकिन तब मनमोहन सिंह की सरकार ने जातियों की गिनती को सार्वजनिक नहीं किया। 2021 में कोविड की वजह से जनगणना नहीं हो पाई। विडंबना देखिए कि 2024 के चुनाव और उसके बाद से कांग्रेस उसी जाति जनगणना के लिए बैटिंग कर रही है, जिसके आंकड़े उसने खुद 2011 में जारी नहीं किए थे।
क्या क्या जानकारी मांगी जाएगी
जनगणना के दौरान लोगों से पूछे जाने वाले सवाल तैयार कर लिए गए हैं। इनमें क्या परिवार का मुखिया या अन्य सदस्य अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति से संबंधित हैं। परिवार के सदस्यों की कुल संख्या, परिवार की मुखिया महिला है या नहीं? परिवार के पास कितने कमरे हैं? परिवार में कितने विवाहित जोडे़ हैं? क्या परिवार के पास टेलीफोन, इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल, दोपहिया, चारपहिया वाहन है या नहीं आदि सवाल शामिल किए गए हैं।
दक्षिण के राज्य टेंशन में क्यों आए?
जनगणना में संप्रदाय के बारे में भी पूछा जाएगा। मान लीजिए कर्नाटर राज्य जहां वोक्कालिंगा और लिंगायत समुदाय है उसके बारे में पूछा जाएगा। दक्षिण की विभिन्न राज्य सरकारों ने सार्वजनिक रूप से इसजनगणना के दौरान लोगों से पूछे जाने वाले सवाल तैयार कर लिए गए हैं. इनमें क्या परिवार का मुखिया या अन्य सदस्य अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति से संबंधित हैं. परिवार के सदस्यों की कुल संख्या, परिवार की मुखिया महिला है या नहीं? परिवार के पास कितने कमरे हैं? परिवार में कितने विवाहित जोडे़ हैं? क्या परिवार के पास टेलीफोन, इंटरनेट कनेक्शन, मोबाइल, दोपहिया, चारपहिया वाहन है या नहीं आदि सवाल शामिल किए गए हैं चिंता को उठाया है। इसमें आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और एनडीए की सहयोगी टीडीपी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू का भी नाम शामिल है। उन्होंने राज्य के लोगों से आबादी के प्रभाव का जिक्र है। इसके साथ ही अधिक बच्चे पेदा करने के लिए प्रोत्साहित किया है। इस मामले में सरकार के सूत्रों ने कहा कि वे इस चिंता से अवगत हैं और कोई भी उपाय जो दक्षिणी राज्यों को नुकसान पहुंचा सकता है, उससे बचा जाएगा।
जनगणना जल्दी पूरी करने के 2 बड़े कारण
पहला- साल 2026 में गठित होने वाले डिलिमिटेशन कमिशन के आधार पर लोकसभा और विधानसभा सीटों का नए सिरे से सीमांकन होना है। 2026 तक लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या पर फ्रीज लगा था। आबादी के नए आंकड़ों के हिसाब से इन निर्वाचन क्षेत्रों का नए सिरे से सीमांकन होगा। संसद की सीटों की संख्या भी बढ़ेगी।
दूसरा- इन बढ़ी सीटों के हिसाब से महिलाओं के लिए लोकसभा व विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित की जाएंगी। इसके लिए ऐतिहासिक विधेयक सितंबर 23 में पारित किया जा चुका है।
जनगणना का नया चक्र शुरू होगा, अगली 2035, फिर 2045 में होगी
2025 की जनगणना से नया सेंसस चक्र शुरू हो जाएगा। नई साइकिल 2025 के बाद 2035 और इसके बाद 2045 की होगी। 1881 से हर दस साल बाद होने वाली जनगणना 2021 में होनी थी, जो 3 साल से अधिक देरी से शुरू होने की संभावना है। सूत्रों ने कहा, पूरी कवायद 2 से ढाई साल में पूरी होगी। ऐसे में इस डेटा को सिर्फ 2031 तक सीमित रखना तार्किक नहीं होगा। इस बार की जनगणना डिजिटल होगी और सेल्फ इन्यूमिरेशन ऐप का सहारा भी लिया जाएगा। ताकि, जनगणना कम समय में पूरी की जा सके। जनगणना की जो कवायद 3 साल में फैली होती है, उसे 18-24 महीनों में पूरा करने का प्रयास किया जाएगा। जनगणना वर्ष में जनसंख्या गणना फरवरी के दूसरे और चौथे सप्ताह के बीच होती है। सामने आए आंकड़े जनगणना वर्ष में 1 मार्च की आधी रात तक भारत की जनसंख्या को दर्शाते हैं। फरवरी में गणना अवधि के दौरान जन्म और मृत्यु का हिसाब देने के लिए, गणनाकार संशोधन करने के लिए मार्च के पहले सप्ताह में घरों में लौटते हैं।
महिला आरक्षण का एंगल भी है खास
84वें संविधान संशोधन की भाषा कहती है कि परिसीमन केवल वर्ष 2026 के बाद ली गई पहली जनगणना के आंकड़ों पर ही हो सकता है। इससे पता चलता है कि जनगणना का जनसंख्या गणना भाग 2026 के बाद किया जाना है। इसलिए, यदि जनगणना अभ्यास अगले साल शुरू होना है और सरकार 2029 के लोकसभा चुनावों के लिए परिसीमन प्रक्रिया शुरू करना चाहती है। मौजूदा प्रावधान में संशोधन की आवश्यकता हो सकती है। 16वें वित्त आयोग की सिफारिशें यहां एक महत्वपूर्ण तत्व हो सकती हैं। वित्त आयोग, हर पांच साल में गठित एक निकाय, केंद्र और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के हस्तांतरण की सिफारिश करता है। 16वें वित्त आयोग को अगले साल के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। इसके अलावा, संसद ने पिछले साल 128वें संविधान संशोधन को मंजूरी दी, जिसमें महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं। हालाँकि, यह परिसीमन अभ्यास के बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की सीटों में संशोधन के बाद ही प्रभावी होगा।
जातीय जनगणना की मांग
ऐसी भी उम्मीद है कि अगली जनगणना में अलग जाति जनगणना की आवश्यकता को खत्म करने के लिए जाति डेटा भी एकत्र किया जा सकता है, जिसकी हाल के वर्षों में कुछ राजनीतिक दलों द्वारा मांग की गई है। जनगणना में जाति संबंधी आंकड़ों का संग्रह अभूतपूर्व नहीं होगा। 1941 की जनगणना तक जाति से संबंधित कुछ जानकारी प्राप्त की गई थी और यह प्रथा स्वतंत्र भारत में ही बंद कर दी गई थी। पहले के कुछ वर्षों में जनगणना में सभी धर्मों के लोगों की जाति या संप्रदाय की जानकारी प्राप्त की जाती थी। अन्य वर्षों में, केवल हिंदुओं का जाति डेटा एकत्र किया गया था। 1951 की जनगणना के बाद से यह प्रथा बंद कर दी गई और तब से केवल अनुसूचित जाति या जनजाति पर डेटा एकत्र किया गया है।