By अभिनय आकाश | Apr 04, 2025
श्रीलंका से भारत के संबंध इतने गहरे क्यों हैं, इसे समझने के लिए अलग से एक पूरा एमआरआई स्कैन करना पड़ेगा। लेकिन संक्षेप में कहे तो श्रीलंका भारत से बिल्कुल सटा है। सदियों से दोनों देशों के लोगों के बीच संबंध हैं। जब भारत और श्रीलंका दोनों अंग्रेजों के गुलाम थे तो भारत से तमिल समुदाय के लोग श्रीलंका में जाकर बसे। आधुनिक समय में इन्हीं तमिल समुदाय के लोगों के चलते श्रीलंका का भविष्य भारत के साथ नत्थी हुआ। तमिल समस्या को लेकर भारत ने श्रीलंका में शांति सेना भेजी थी। इसी शांति सेना के डर से एलटीटी ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की थी। आज भी तमिलनाडु में हजारों श्रीलंकन तमिल शरणार्थी रहते हैं। 2007 के बाद जब श्रीलंका की सेना ने उग्रवादियों के खिलाफ अभियान तेज किया तब भारत ने श्रीलंका की मदद की और लड़ाई अपने अंजाम तक पहुंची। इसके बाद से भारत लगातार श्रीलंका की मदद करता आया है। खासकर तमिल इलाकों में भारत सरकार के सहयोग से योजनाएं चलाई जा रही हैं। लेकिन भारत के पैरों तले जमीन धीरे धीरे खिसकने लगी थी। श्रीलंका चीन की तरफ होता जा रहा था। लेकिन अब हिंद महासागर में अपनी सुरक्षा चाक चौबंद करने के लिए भारत न सिर्फ अपनी नौसेना बल्कि अपनी सामरिक शक्ति को मजबूत करने में पूरी तरह से जुट गया है। नौसेना को हथियारों से लैस करने से लेकर समुद्र में अपनी ताकत को और बढ़ाने के लिए अपने साझेदारों के साथ मिलकर भारत आगे बढ़ रहा है। भारत एक ऐसा कदम श्रीलंका के साथ मिलकर भी उठाने वाला है। भारत और श्रीलंका मिलकर एक ऐसा रक्षा समझौता करने वाले हैं, जो अब तक कभी नहीं हुआ। एक ऐसा समझौता जो भारत के लिए फायदेमंद साबित होगा। साथ ही समुद्र में भारत की शक्ति को और मजबूत करेगा।
इसलिए खास है पीएम मोदी का श्रीलंका दौरा
भारत और श्रीलंका के बीच एक ऐसा अहम रक्षा समझौता होने जा रहा है, जिसका इंतजार भारत को लंबे समय से था। हिंद महासागर में अपनी सुरक्षा को चाक चौबंद करने में जुटे भारत के लिए इसकी तैयारी अंतिम दौर में है। जानकारी मिल रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के श्रीलंका दौरे के दौरान ही फाइनल हो जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी बैंकॉक में हैं। वो बिम्सटेक सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए थाइलैंड के दौरे पर गए है। वहां से पीएम मोदी 4 अप्रैल यानी शुक्रवार की रात आठ बजे कोलंबो पहुंचेंगे और वह कोलंबो के ताज समुद्र होटल में रुकेंगे, जहां उनकी सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। पीएम मोदी 6 अप्रैल तक श्रीलंका में होंगे। भारत अपने पड़ोसी देशों को लेकर कितना गंभीर है, इसका अंदाजा आप इस मुलाकात से लगा सकते हैं। लेकिन इस बार सौदा रक्षा क्षेत्र को लेकर होना है।
रक्षा सहयोग पर समझौता
पीएम मोदी की इस यात्रा के बारे में जानकारी देते हुए विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने बताया कि रक्षा सहयोग पर समझौता संभावित है। ये दोनों देशों के बीच इस तरह का पहला समझौता होगा। इस बयान से ही अंदाजा लगाया जा रहा है कि ये पहला और सबसे ऐतिहासिक समझौता होगा जो दोनों देशों के हितों को साधने के लिए सबसे कारगर साबित होगा। अब तक ये साफ नहीं हुआ है कि ये समझौता किस स्तर पर और किस चीज से जुड़ा हुआ होगा। पिछले साल राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके (एकेडी) के सत्ता संभालने के बाद यह उनकी पहली यात्रा होगी। पीएम मोदी राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के निमंत्रण पर श्रीलंका जा रहे हैं। पिछले साल ही दिसानायके श्रीलंका के राष्ट्रपति बने। फिर वो भारत आए और भारत में दोनों देशों के बीच संबंधों को और मजबूत करने को लेकर बात हुई। बड़ी बात ये है कि चार महीनों के भीतर ये दोनों देशों के बीच दूसरी बड़ी मीटिंग रहने वाली है।
ऊर्जा क्षेत्र में प्रोजेक्ट पर हो रहा काम
श्रीलंका भारत की दक्षिणी सीमा पर समुद्री रणनीति का मुख्य आधार है। भारत के एजेंडे में ऊर्जा सहयोग भी एक मुख्य विषय होगा। प्रधानमंत्री मोदी त्रिंकोमाली में सामपुर सौर ऊर्जा परियोजना समझौते पर हस्ताक्षर करने के अवसर पर उपस्थित रहेंगे। भारत के राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम और श्रीलंका के सीलोन विद्युत बोर्ड के बीच 120 मेगावाट का यह संयुक्त उद्यम न केवल श्रीलंका की ऊर्जा सुरक्षा चिंताओं को संबोधित करता है, बल्कि भारत को इसके हरित परिवर्तन में एक पसंदीदा भागीदार के रूप में भी स्थापित करता है। इसका अंतिम लक्ष्य व्यापार और निवेश संबंधों को बढ़ाने के लिए बिजली ग्रिड कनेक्टिविटी और एक बहु-उत्पाद पेट्रोलियम पाइपलाइन स्थापित करना है। प्रधानमंत्री मोदी अनुराधापुरा भी जाएंगे, जहां भारत विकास परियोजनाओं को क्रियान्वित कर रहा है। इस प्रकार भारत श्रीलंका के प्राथमिक और अपरिहार्य विकास भागीदार के रूप में अपनी भूमिका की पुष्टि करना चाहेगा।
मछुआरों की समस्या
तमिलनाडु के मछुआरों की समस्या जो श्रीलंकाई जलक्षेत्र में भटक जाते हैं, वह लंबे समय से चली आ रही है। भारत को इस बात का आश्वासन चाहिए कि उनके साथ मानवीय व्यवहार किया जाएगा। गहरे समुद्र में मछली पकड़ने जैसे व्यवहार्य समाधान पर भी गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। चर्चाओं में त्रिंकोमाली तेल टैंक फार्म भी शामिल हो सकता है। टैंकों के प्रबंधन के लिए एक संयुक्त उद्यम स्थापित करने के लिए बातचीत चल रही है। इसका उद्देश्य मौजूदा सुविधाओं को उन्नत करना, कच्चे तेल को परिष्कृत करना और इसे वैश्विक बाजार के लिए संग्रहीत करना है, जिसका उद्देश्य श्रीलंका को अंतर्राष्ट्रीय तेल व्यापार में एक प्रमुख खिलाड़ी बनाना है।
ये दौरा दोनों देशों के लिए बहुत अहम
भारत और श्रीलंका को आपसी और क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले में पूरी तरह एकमत होना चाहिए। अपनी यात्रा के दौरान दिसानायके ने आश्वासन दिया कि श्रीलंका अपनी ज़मीन का इस्तेमाल भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए किसी भी तरह से हानिकारक तरीके से नहीं होने देगा, यह एक गंभीर प्रतिबद्धता है जिसका भारत स्वागत करता है और इसे गंभीरता से लेता है। यह दोनों पड़ोसियों के बीच रणनीतिक साझेदारी को बनाए रखने में महत्वपूर्ण होगा।
चीन के कान खड़े हो गए हैं
इस खबर के आने के बाद चीन के कान खड़े हो गए हैं। पिछले कुछ समय में चीन ने श्रीलंका को लेकर हिंद महासागर में काफी हरकतें करने की कोशिश की हैं। चाहे वो जासूसी जहाज की मदद से हो या फिर व्यापार के नाम पर श्रीलंका तक अपनी पहुंच को बढ़ाने का जरिया मात्र। लेकिन भारत और श्रीलंका के संबंध कितने पक्के हैं इसका अंदाजा अब चीन को जल्द हो जाएगा। बता दें कि इससे पहले जब श्रीलंका पर आर्थिक संकट आया था। तब भारत ने ही इस आर्थिक संकट से श्रीलंका को निकालने में मदद की थी।