सिख धर्म का महान व पवित्र ग्रंथ है श्री गुरु ग्रंथ साहिब, जानिये इससे जुड़ा इतिहास

By सुखी भारती | Sep 07, 2021

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब सिख धर्म का महान व पवित्र ग्रन्थ है। श्री गुरु ग्रन्थ का भाव है वह पवित्र ग्रन्थ जिसकी शिक्षाएं अजर-अमर हैं, यह वह आध्यात्मिक सत्ता है, जो हमारा पग-पग पर मार्गदर्शन करती है। गुरु साहिबानों द्वारा इसे पोथी परमेसर का थान कहकर सम्मान दिया गया। भाव श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी जागृत गुरु हैं। जिससे हम जीवन के हर पहलू पर मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं। यह संपूर्ण मानवता की सरब सांझी गुरबाणी है। जिससे प्रत्येक आध्यात्मिक पिपासु अपनी पिपासा शांत कर जीवन के श्रेष्ठ मूल्यों को धारण कर सकता है। श्री गुरु अर्जुन देव जी ने भी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी को संपूर्ण करने के पश्चात् कहा था- मैंने संसार को आध्यात्मिक भोजन रूपी थाल परोसकर दिया है। जो इस भोजन को ग्रहण करेगा व सत्य, संतोष, दया, धर्म, भक्ति-ज्ञान रूपी अनमोल रत्नों की प्राप्ति कर लेगा। संसार को इस भोजन की बहुत ही आवश्यकता है। इसके बिना मनुष्य जीवन की सफलता असंभव है।

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इसके अंदर 6 गुरु साहिबानों श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु अंगद देव जी, श्री गुरु अमरदास जी, श्री गुरु रामदास जी, श्री गुरु अर्जुन देव जी व श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी दर्ज है। श्री गुरु अर्जुन देव जी ने इस पवित्र ग्रन्थ का संकलन 1601 ईसवीं को आरम्भ किया था एवं 2 अगस्त 1604 को सम्पन्न किया। इस महान ग्रन्थ का लेखन सेवा कार्य भाई गुरदास जी ने किया। पहले इसके अंदर 5 गुरुओं की ही वाणी थी। सन 1708 को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने इसके अंदर श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की वाणी को शामिल किया। इसके अतिरिक्त 15 भक्तों, 11 भट्टों व तीन गुरु घर के सेवकों की वाणी को दर्ज किया गया है। आदि बीड़ स्थापना करते समय उन्होंने राग को मुख्य अधार बनाया। श्री राग से लेकर प्रभाती राग तक 30 रागों के सिरलेख श्री गुरु अर्जुन देव जी द्वारा दिए गए हैं। श्रीराग, गउडी, आसा, माझ, गुजरी, देवगंधारी, बिहागड़ा, वडहंस, सोरठि, धनासरी, जैतसरी, टोडी, बैराडी, तिलंग, सूही, बिलावल, गौड़, रामकली, नटनारायण, माली गउडा, मारू, तुखारी, केदारा, भैरउ, बसंत, सारंग, मल्लहार, कान्हड़ा, कल्याण व प्रभाती। राग जयजयवन्ती में रचित वाणी श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की है। जो कि दूसरी बीड़ में शामिल की गई है जिसके संपादक श्री गुरु गोबिंद सिंह जी हैं। 


वर्तमान में श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी 1430 पन्नों में उपलब्ध हैं एवं इसके अंदर सुशोभित वाणियां इसके 36 वाणीकारों की भाषा, भेष-परिवेश अलग-अलग होने के बावजूद भी अनेकता में एकता का सूत्रपात दृष्टिगोचर होता है। शब्दों, पदों, छंदों, वारों को सही तरतीब प्रदान करते हुए गुरु साहिब जी ने स्वयं इसका संपादन किया व अंक प्रबन्धन का एक ऐसा सिलसिला तैयार किया जिससे इसकी वाणियों या किसी भी भाग में किसी प्रकार की कोई मिलावट न की जा सके। एवं न ही इसके वास्तविक स्वरूप से कुछ अलग किया जा सके। श्री गुरु अर्जुन देव जी ने वाणी की संपादना करते समय संगीत के सूक्ष्म रहस्यों जैसे राग, उपराग, संयुक्त राग, ताल, घर, वारें, धुनियां, टेक व रहाउ जैसे संकेतों को दर्ज किया है। इसके अतिरिक्त लोक धारणाएँ, घोड़ियां, बारहमासे, अलाहुणियां, सद इत्यादि को ध्यान में रखा है। वाणी के अर्थ निश्चित् करने हेतु श्री गुरु अर्जुन देव जी ने शब्द जोड़ों व मात्राओं की एक विशेष प्रणाली विकसित कर दी। श्री गुरु ग्रन्थ का पहला भाग नित नेम की वाणियों (13 पन्नों) दूसरा (14-1352) राग बद्ध कृतियां हैं। अंतिम भाग छंदों, शलोकों, सव्वईयों, गाथा, चउपदों पर आधारित है। श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में गुरु साहिबानों को ‘महला’ कहकर संबोधित किया गया है। जैसे महला पहला, महला दूसरा इत्यादि। श्री गुरु अर्जुन देव जी को उच्च कोटि के संपादक कहना कोई अतिकथनी नहीं होगा। निःसन्देह उन्होंने अपने नाना श्री गुरु अमरदास के वचनों को सार्थक किया था। या यों कह सकते हैं कि पूर्ण गुरु के वचन कभी मिथ्या नहीं होते। उन्होंने बचपन में श्री गुरु अर्जुन देव जी को ‘दोहिता वाणी का बोहिथा’ कहकर संबोधित किया था। उनके वचन कैसे पलट सकते थे, क्योंकि 'संत वचन पलटे नहीं पलट जाए ब्रह्माण्ड’ भाव महापुरुषों के वचन अटल हुआ करते हैं।

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श्री गुरु अर्जुन देव जी से पूर्व भी, गुरु साहिबानों के पवित्र वचनों वाली पोथियां गुरमुखी में मौजूद थीं। भाई गुरदास की एक वार (1-32) में इसके बारे में स्पष्ट प्रमाण मिलता है। जो बताती है कि जिस समय श्री गुरु नानक देव जी विश्व भ्रमण, भाव चार उदासियों के लिए निकले तो उनके पास एक पुस्तक थी, जो उनकी अपनी स्वयं की ही रचनाएं थीं। पुरातन जन्म साखी के अनुसार उन्होंने ऐसी ही एक हस्त लिखित पुस्तक श्री गुरु अंगद देव जी को अपना आध्यात्मिक उत्तराधिकार सौंपते समय भी प्रदान की थी। वाणी भाव धुर से आए अकाल पुरख के हुकम का उस समय पर भी सिख बहुत सम्मान करते थे ‘वाणी गुरु गुरु है वाणी’ श्री गुरु रामदास जी का राग नट नारायण में फुरमान है। श्री गुरु नानक देव जी भी उच्चारण करते हैं- वाहु वाहु बाणी निरंकार है तिसु जेवड अवरु न कोई।।


जब श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का संपादन व लेखन संपूर्ण हो गया तो श्री गुरु अर्जुन देव जी ने बाबा बुढ़ढा जी से पूछा, कि श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का प्रकाश कहाँ पर किया जाए तो उन्होंने कहा- हे गुरूदेव! आप अन्तर्यामी हैं, परंतु श्री हरिमंदिर साहिब जी से उचित कोई स्थान नहीं है। गुरु साहिब उनकी बात सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुए। श्री आदि ग्रन्थ जी का हरिमंदिर साहिब जी में 1 सितंबर 1604 को विधिवत् प्रकाश किया गया व उन्होंने बाबा बुढ़ढा जी को ही पहला ग्रन्थी सिंह स्थापित किया। 


श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की वाणी आध्यात्मिकता की कुंजी है। यह केवल नैतिक व मानसिक ही नहीं अपितु शुद्ध श्रद्धा भावना को समेटे हुए है। यह संपूर्ण मानवता के लिए जीता जागता मार्गदर्शक है। यह मानव की भक्ति का आधार है। यह नैतिक मूल्यों को अलौकिक खज़ाना है, जो इसके अनुसार अपने जीवन को चलाता है, वह श्रेष्ठता के शिखर को छूता है। हमारे जीवन में जो भी बेसुरा, बेताला, बेजोड़ है, उसे संवार कर संपूर्णता के आकाश में स्वछन्द उड़ान भरने के लिए हमें पंख इसी पवित्र ग्रन्थ की शिक्षाओं से मिलते हैं।

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श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी वास्तव में समस्त मानवता के गुरु हैं। संसार के जिन चिंतकों व विद्वानों ने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की वाणी का अध्ययन किया, वे एक सुर में उपरोक्त बात ही बोलते हैं। नोबल पुरस्कार विजेता मिस पर्ल-एस बक लिखती हैं- ‘मैंने दुनिया के बहुत सारे धार्मिक ग्रन्थों का गूढ़ता से अध्ययन किया है। परंतु मन को छूने वाली शक्ति मुझे कहीं पर भी प्राप्त नहीं हुई जो श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के माध्यम से प्राप्त हुई है। इसके अंदर मानवी मन का गहराई से चित्रण किया गया है। परमात्मा का गहनता पूर्वक वर्णन इसी ग्रन्थ में मिलता है। कोई भी व्यक्ति चाहे वो किसी भी धर्म व सम्प्रदाय से संबंध रखता हो। इसकी वाणी सबके लिए अमृत है। क्योंकि इसके भीतर मानवी मन को रोग-शोक मुक्त करने की अद्भुत क्षमता है।’


विश्व इतिहास लिखने वाले विद्वान आर्नोल्ड टॉयनबी लिखते हैं- मानवता का धार्मिक भविष्य धुंधला हो चुका हो, तो सिखा के पवित्र धार्मिक शास्त्र श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के पास संसार के सभी धर्मों को कहने के लिए बहुत कुछ है। संपूर्ण मानव जाति के लिए यह किसी दैवीय वरदान से कम नहीं है। आर्नोल्ड टॉयनबी का यह कहना गुरुओं द्वारा उद्घाटित ‘गुरवाणी जग महि चानण’ को कथन का उद्मोदन करता है।

 

इस लिए प्रत्येक मनुष्य को गुरवाणी की शिक्षाओं को अपने अंदर समाहित करना चाहिए। अंत में आप सभी को मानवता के पथ प्रदर्शक श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की जयन्ती की हार्दिक मंगल कामनाएं।


-सुखी भारती

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