वित्त मंत्री को बजट में बैंकों की मजबूती पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए

By प्रह्लाद सबनानी | Jan 29, 2020

भारत की 60 प्रतिशत आबादी ग्रामों में निवास करती है एवं यह आबादी अपने रोज़गार हेतु विशेष रूप से कृषि क्षेत्र पर निर्भर है जो सकल घरेलू उत्पाद में मात्र 15 प्रतिशत का योगदान करती है। अतः केंद्र सरकार का प्रयास है कि इस आबादी को कृषि क्षेत्र से हटाकर इन्हें विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार उपलब्ध कराया जाये ताकि इस आबादी की आय में वृद्धि हो एवं इनके जीवन स्तर में सुधार किया जा सके। विनिर्माण क्षेत्र के तीव्र गति से विकास हेतु बुनियादी ढाँचे को विकसित करना ज़रूरी है। इसके बिना देश का विनिर्माण क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी नहीं बन पाएगा। अतः आज समग्र तरीक़े से सोचने की आवश्यकता है और इसलिए हाल ही में केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि वर्ष 2025 तक देश में बुनियादी ढाँचे को विकसित करने हेतु कुल 103 लाख करोड़ रुपए का निवेश किया जाएगा। इस निवेश में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों एवं कॉरपोरेट जगत की भागीदारी होगी। कॉरपोरेट जगत की भागीदारी के चलते बैंकिंग क्षेत्र को भी अपना योगदान देना होगा।         

 

बुनियादी ढाँचे का तार्किक रूप से एवं योजनाबद्ध तरीक़े से विकास करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने एक आधिकारिक संरचना पाइप लाइन बनाई है, इस योजना के अनुसार बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु किए जा रहे कुल 103 लाख करोड़ रुपए के निवेश में केंद्र सरकार का 39 प्रतिशत का हिस्सा रहेगा, 39 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकारों से आएगा एवं शेष 22 प्रतिशत हिस्सा निजी क्षेत्र निवेश करेगा। इतनी विशाल राशि का निवेश करने के लिए वित्त की व्यवस्था करना आवश्यक होगा। 

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इस समय भारतीय बैंकों एवं ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों के आस्ति-देयता में असंतुलन की स्थिति बनी हुई है। बैंकों एवं वित्तीय कम्पनियों की देयताएँ तो अल्पकालिक अवधि की हैं जबकि बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए ऋण प्रदान करने हेतु लम्बी अवधि के ऋणों की आवश्यकता होती है। अतः अब एक बार फिर यह महसूस किया जा रहा है कि बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु लम्बी अवधि के ऋण प्रदान करने हेतु या तो नए वित्तीय संस्थानों को स्थापित किया जाये जिस प्रकार पूर्व में इस तरह के संस्थान थे जैसे, IDBI, ICICI आदि या फिर लम्बी अवधि के बॉन्ड मार्केट को विकसित किया जाये। इसके बिना लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन होगा। हाँ एक उपाय और हो सकता है। वर्ष 2006 में एक इंडीयन इन्फ़्रास्ट्रक्चर फ़ाइनैन्स कम्पनी लिमिटेड (IIFCL) की स्थापना की गई थी। दिसम्बर 2019 में सरकार ने इस कम्पनी की इक्विटी को 6000 करोड़ रुपए से बढ़ा दिया है। अगर इस कम्पनी की पूँजी और भी बढ़ायी जाये तो इस कम्पनी की ऋण देने की क्षमता बढ़ाई जा सकती है और यह कम्पनी बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु लम्बी अवधि के ऋण प्रदान करने में सक्षम हो सकती है। साथ ही, विभिन पेन्शन फ़ंड एवं बीमा फ़ंड एवं सॉव्रेन संपत्ति फ़ंड आदि भी लम्बी अवधि के निवेश कर सकने में सक्षम हैं।

 

किसी भी परियोजना में निवेश हमेशा विश्वास का मामला होता है। निवेशक का उस परियोजना में विश्वास होना चाहिए कि जो पूँजी वह उस परियोजना में लगाने जा रहा है उस पर पर्याप्त मात्रा में प्रतिफल मिलेगा साथ ही उसका निवेश भी सुरक्षित रहेगा। इस समय बैंक एवं ग़ैर बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ ऋणों की समय पर अदायगी को लेकर कुछ चिंतित हैं क्योंकि पूर्व में इनके द्वारा प्रदान किए गए ऋणों की वापसी में इन्हें कठनाई महसूस हुई है। अतः ये बैंक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए ऋण प्रदान करने में उत्सुक दिखाई नहीं दे रहे हैं। इसलिए बैंकों को और अधिक सबल बनाए जाने की आवश्यकता है। इनके विश्वास को बढ़ाए जाने की आज आवश्यकता है ताकि ये बैंक बुनियादी ढाँचे के विकास से सम्बंधित परियोजनाओं को ऋण प्रदान करने में आसानी महसूस करें। देश में बॉन्ड बाज़ार उथला हुआ है इसे गम्भीर एवं गहरा बनाए जाने की भी आज आवश्यकता है। हालाँकि केंद्र सरकार इस ओर सराहनीय प्रयास कर रही है। जैसे सरकारी क्षेत्र के बैंकों का आपस में विलय किया जा रहा है, यह एक अच्छा क़दम है। शीघ्र ही अर्थव्यवस्था पर इसका अच्छा प्रभाव देखने को मिलेगा। विलय के बाद अब बैंकों का आकार काफ़ी बड़ा हो जाएगा साथ ही केंद्र सरकार द्वारा इनमें किए गए नए निवेश से भी इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि होगी। केंद्र सरकार यह भी प्रयास कर रही है कि एक विशेष कम्पनी की स्थापना की जाए जो लम्बी अवधि के बॉन्ड जारी कर वित्त की व्यवस्था करे एवं यह राशि बुनियादी ढाँचे विकसित करने वाली कम्पनियों को ऋण के रूप में उपलब्ध कराए। इन बांड्ज़ में विभिन पेन्शन एवं बीमा फ़ंड भी लम्बी अवधि का निवेश कर सकते हैं। 

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बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु पूँजी जुटाने में विदेशी निवेशकों का भी भरपूर योगदान लिया जा सकता है। हालाँकि हाल ही के समय में सेवा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तेज़ी से बढ़ रहा है। वर्ष 2019-20 के प्रथम 6 माह के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश में 15-16 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। यह निवेश वर्तमान कम्पनियों की क्षमता का विस्तार करने के उद्देश्य से किया गया है एवं इन कम्पनियों में पूँजीगत निवेश के चलते बढ़ा है। पिछले 10 वर्षों में एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश भारत में आया है और अब अगले 5 वर्षों में 1.4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के विदेशी निवेश को भारत में लाने की बात की जा रही है। इसके लिए कुछ नीतियों में बदलाव भी करना होगा, जिस ओर भारत सरकार लगातार प्रयास कर रही है। हालाँकि, हाल ही के समय में भारत में निवेश करने हेतु विदेशी निवेशकों का रुझान बढ़ा है। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश देश में आना ज़रूरी है इससे विदेशी मुद्रा में भुगतान संतुलन को बनाए रखने में भी मदद मिलती है और यह काफ़ी स्थिर पूँजी रहती है। बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिए आधारिक संरचना के क्षेत्र में भी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ाना ही होगा। इसे और अधिक आकर्षक बनाये जाने की आवश्यकता है।

 

संरचना पाइप लाइन सम्बंधी जो दस्तावेज़ जारी किया गया है उसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारों को भी अपना निवेश बढ़ाना होगा। केंद्र एवं राज्य सरकारों को बुनियादी ढाँचे के विकास एवं पूँजीगत ख़र्चे हेतु राशि का प्रावधान अपने बजट में ही करना होगा। केंद्र सरकार को अगले 5 वर्षों के दौरान यदि लगभग 40 लाख करोड़ रुपए बुनियादी ढाँचे के विकास पर ख़र्च करना है तो प्रतिवर्ष औसतन 8 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में करना होगा और यह एक ट्रिगर पोईंट सिद्ध हो सकता है, इसके बाद निजी निवेशक एवं विदेशी निवेशक भी आगे आएँगे।

 

-प्रह्लाद सबनानी

सेवानिवृत्त उप-महाप्रबंधक

भारतीय स्टेट बैंक

 

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