By अंकित सिंह | Jul 08, 2022
उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के प्रमुख सचिव राजेश सिंह द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक कि 27 मई को विधान परिषद में सपा 11 सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी थी और साथ ही गणपूर्ति (कोरम)हेतु भी सक्षम थी। इसकी वजह से पार्टी के सदस्य लाल बिहारी यादव को नेता प्रतिपक्ष के तौर पर मान्यता प्रदान की गई थी। विधान परिषद में सपा के नेता लाल बिहारी यादव ने सभापति के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि विधान परिषद के सभापति द्वारा नेता प्रतिपक्ष की मान्यता समाप्त करना गैर कानूनी, नियमों के विपरीत और असंवैधानिक है। यहां जारी एक बयान में यादव ने नियमों का हवाला देते हुए सभापति के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा कि नेता प्रतिपक्ष सदन में संपूर्ण विपक्ष का नेता होता है। समाजवादी पार्टी बड़ी पार्टी है; लेकिन नियमों का गलत हवाला देकर नेता प्रतिपक्ष की मान्यता समाप्त करना लोकतंत्र को कमजोर एवं कलंकित करने वाला कदम है।
इस बारे में विधान परिषद के पूर्व नेता प्रतिपक्ष और सपा नेता संजय लाठर ने कहा कि सदन में सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है, चूंकि समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी हैं; इसलिए उसे नेता प्रतिपक्ष का पद दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस मामले पर अदालत का दरवाजा खटखटायेगी। उल्लेखनीय है कि बृहस्पतिवार को विधान परिषद के 12 सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो गया। इसके साथ ही नेता प्रतिपक्ष का पद भी समाप्त कर दिया गया। विधान परिषद के विशेष सचिव ने बृहस्पतिवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया है। कार्यकाल पूरा करने वाले सदस्यों में जगजीवन प्रसाद, बलराम यादव, डॉ. कमलेश कुमार पाठक, रणविजय सिंह, राम सुंदर दास निषाद, शतरुद्र प्रकाश, अतर सिंह राव, दिनेश चंद्रा, सुरेश कुमार कश्यप और दीपक सिंह शामिल हैं। इनका स्थान सात जुलाई से रिक्त घोषित कर दिया गया है। विधान परिषद के कुल 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो गया है।