प्रसिद्ध और महान लोग कहते रहते हैं कि क्षमा का आदान प्रदान कर लेने से कई समस्याएं खत्म हो जाती हैं। फेसबुक जैसी महान किताबों के रचयिता ने भी तो हमारे जैसे विश्वगुरु देशों से माफ़ी मांगकर अपना धंधा कायम रखा है। यह नीम में लिपटा गुलाब जामुन टाइप एक हज़ार प्रतिशत सच है कि फेसबुक, यूटयूब, इन्स्टाग्राम, वह्त्सेप जैसा ग़ज़ब स्वादिष्ट चारा चरने वाले हमसे बेहतर दुनिया भर में नहीं मिल सकते। हर समझदार प्रबंधन बुद्धिमान ज्योतिषी की मानिंद होता है जिसे पता होता है कि अपना सामान बेचने के लिए बाज़ार में माहौल कैसे तैयार करना है वहां कौन से सच और झूठ बिक सकते हैं।
किसी को भी माफ़ न करने वाली महारानी राजनीतिजी लोकतंत्र को कभी नाराज़ नहीं करती। बेचारे विदेशी तो न के बराबर गलती पर भी माफ़ी मांग लेते हैं लेकिन हम ठहरे लंबी और ठोस नाक वाले, हम उनकी नक़ल क्यूं करेंगे। रहीम ने भी बड़ों द्वारा क्षमा करने की सलाह दी है लेकिन आज तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि सचमुच ‘बड़े’ लोग माफ़ करेंगे या सिर्फ उम्र में बड़े। इन छोटन लोगों के उत्पात तो जारी रहते ही हैं। बड़प्पन की धरती पर कौन छोटा है, जिसके कृत्य छोटे हैं या उम्र। बदली हुई परिभाषाओं की क्यारी में समझ की घास का बड़ा गड़बड़झाला है। बढ़ते तनाव, दबाव, बहाव और रक्तचाप की स्थिति में खालिस भारतीय नुस्खों को ओढ़ते हुए माफ़ी का प्रयोग किया जाए तो नैतिक परिवर्तन हो सकता है। वो ‘बड़े’ व्यक्ति पर निर्भर करेगा कि माफ़ करे या न करे या किसी भी कीमत पर न करे।
अच्छी बात तो अच्छी ही होती है। हम यही मानते हैं क्षमा मांगने या कर देने से कोई छोटा नहीं हो जाता बलिक यह पता चलता है कि हम रिश्तों की कितनी कद्र करते हैं। वैसे आजकल रिश्ते वस्तुओं की मानिंद ट्रेंडी हैं। राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक, पारिवारिक और आर्थिक अस्वस्थताओं के कारण रिश्ते लगातार रिसते जा रहे हैं तभी ज़माना दिल से नहीं, दिमाग से क्षमा मांगता है। वक़्त चाहता है कि हम विदेशियों का यह (अव) गुण भी अपना लें। विदेशों में तो बाकायदा ‘राष्ट्रीय सॉरी दिवस’ मनाया जाता है और उस दिन क्षमा वितरित करने की शुभ राष्ट्रीय शुरुआत हो सकती है।
अपनी अपुष्ट कारगुजारियों के लिए सरकारें भी इस दिन एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर ‘दुःख निवारण दिवस’ मना सकती है। क्षमा मांगने या करने को यदि व्यवसाय में न बदला जाए तो कई दशाएं सुधर सकती हैं। यह नई किस्म का मानवीय प्रायोजन हो सकता है। संशय यह है कि माफ़ ‘बड़े’ करेंगे या ‘छोटे’ और उत्पात कौन मचाएगा। क्योंकि बड़ा आदमी, छोटा उत्पात मचाना नहीं चाहता और छोटा आदमी, बड़ा उत्पात मचाने के काबिल नहीं होता। वास्तव में पहले खुद को क्षमा करने की ज़रूरत है फिर दूसरों को उनके उन क्रियाकलापों के लिए जो हमें गुस्ताखियां लगे, के लिए माफ़ कर देना चाहिए।
अनाम, बेनाम और बदनाम लोगों को उनके प्रसिद्ध कृत्यों के लिए भी माफ़ कर देने से इंसानियत का भला बढ़ सकता है। माफ़ करने वाला इंसान ही रहेगा या....। सवाल एक और भी है, क्या हमारे विकसित, सभ्य, संपन्न समाज को वाकई इस तुच्छ चीज़ की ज़रुरत है।
- संतोष उत्सुक