By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Nov 07, 2019
नयी दिल्ली। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बृहस्पतिवार को वित्तीय स्थिरता एवं विकास परिषद (एफएसडीसी) की बैठक में अर्थव्यवस्था की स्थिति की समीक्षा की। बैठक में वित्तीय क्षेत्र के संकट पर भी विचार किया गया। वित्त मंत्री इस परिषद की अध्यक्ष हैं। एफएसडीसी अलग-अलग क्षेत्र के नियामकों का शीर्ष निकाय है।
एफएसडीसी की 21वीं बैठक ऐसे समय हुई है जबकि 2019-20 की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर पांच प्रतिशत के छह साल के निचले स्तर पर आ गई है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के कुछ वृहद आर्थिक आंकड़े भी अर्थव्यवस्था की उत्साहवर्धक तस्वीर नहीं दर्शाते हैं। अगस्त में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 1.1 प्रतिशत के 26 माह के निचले स्तर पर आ गई है। वहीं सितंबर में आठ बुनियादी उद्योगों का उत्पादन 5.2 प्रतिशत घटा है, जो अर्थव्यवस्था में गंभीर सुस्ती की ओर इशारा करता है। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा, ‘‘कुल मिलाकर बैठक में वृहद आर्थिक मुद्दों तथा अर्थव्यवस्था की स्थिति पर विस्तार से विचार विमर्श किया गया। कुछ अंतर नियामकीय मुद्दों पर भी चर्चा हुई। हमने साइबर सुरक्षा के मुद्दों पर भी चर्चा की।’’ उन्होंने कहा कि बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि आगे चलकर नियामक कैसा रुख अपनाना चाहिए जिससे विभिन्न नियामक एक-दूसरे के क्षेत्र में दखल बच सकें। रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा कि गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की स्थिति पर भी विचार विमर्श हुआ। बड़ी संख्या में एनबीएफसी ऐसी हैं जो अच्छी तरह से काम कर रही हैं।
दास ने कहा, ‘‘आज भी बड़ी संख्या में एनबीएफसी ऐसी हैं जो बेहतर तरीके से कामकाज कर रही हैं। इनमें से कुछ एनबीएफसी को बाजार से, कुछ को बैंकों से और कुछ तो विदेशी बाजार से भी कोष उपलब्ध हो रहा है।’’ उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक शीर्ष 50 एनबीएफसी की नजदीकी निगरानी कर रहा है। एनबीएफसी क्षेत्र की संपत्तियों का 75 प्रतिशत इन 50 एनबीएफसी के पास है। यह मोदी 2.0 सरकार के सत्ता संभालने के बाद एफएसडीसी की दूसरी बैठक थी। करीब दो घंटे तक चली बैठक के बाद वित्त सचिव राजीव कुमार ने कहा, ‘‘यह बैठक काफी रचनात्मक रही और इसमें पूरी वित्तीय प्रणाली और अन्य मुद्दों पर विचार विमर्श हुआ।’’ सूत्रों ने बताया कि बैठक में वित्तीय समाधान एवं जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक पर भी चर्चा हुई। नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में यह विधेयक पेश किया गया था लेकिन विवादास्पद ‘बेल-इन’ प्रावधान की वजह से यह पारित नहीं हो पाया था। ‘बेल इन’ के तहत वित्तीय संस्थानों को धाराशायी होने से बचाया जाता है। इसके लिये कर्जदाताओं के कर्ज को रद्द किया जाता है। वित्त मंत्रालय ने बयान में कहा कि परिषद ने मौजूदा वैश्विक और घरेलू वृहद आर्थिक स्थिति और वित्तीय स्थिरता तथा अत्यंत संवेदनशील मुद्दों पर विचार विमर्श किया गया। इनमें एनबीएफसी और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से जुड़े मुद्दे शामिल हैं।
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परिषद ने एफएसडीसी द्वारा पूर्व में लिए गए फैसलों पर सदस्यों द्वारा की गई कार्रवाई की भी समीक्षा की। इसके अलावा बैठक में समाधान रूपरेखा को और मजबूत करने के लिए दिए गए प्रस्तावों और वित्तीय क्षेत्र में साइबर सुरक्षा के मुद्दों पर भी बातचीत हुई। बैठक में रिजर्व बैंक के गवर्नर की अगुवाई वाली एफएसडीसी उप समिति की गतिविधियों और वित्तीय क्षेत्र के विभिन्न नियामकों द्वारा की गई पहल की भी समीक्षा की गई। बैठक में रिजर्व बैंक के गवर्नर के अलावा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन अजय त्यागी, भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) के चेयरमैन सुभाष चंद्र खुंटिया, भारतीय दिवाला एवं शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) के चेयरमैन एम एस साहू और पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण के चेयरपर्सन रवि मित्तल भी मौजूद थे। आर्थिक मामलों के सचिव अतनु चक्रवर्ती, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय में सचिव अजय प्रकाश साहनी, राजस्व सचिव अजय भूषण पांडेय, मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति वी सुब्रमण्यन और वित्त मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी बैठक में मौजूद थे।