By अनन्या मिश्रा | Jan 08, 2024
प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या मूलरूप से मंदिरों का शहर रहा है। बताया जाता है कि भगवान श्रीराम के पूर्वज विवस्वान (सूर्य) पुत्र वैवस्वत मनु द्वारा अयोध्या नगरी को बसाया गया था। इसलिए यहां पर महाभारत काल तक सूर्यवंशी राजाओं का राज रहा। वहीं अयोध्या के राजा दशरथ के महल में प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था। वहीं वाल्मीकि रामायण में भी अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा और खूबसूरती के बारे में वर्णन मिलता है। इस कारण वाल्मीकि रामायण में अयोध्या नगरी की तुलना इंद्रलोक से की गई है।
वहीं बताया जाता है कि प्रभु श्रीराम के जल समाधि लेने के बाद अयोध्या नगरी कुछ समय के लिए उजड़ गई थी। लेकिन बाद में श्रीराम के पुत्र कुश ने फिर से इस नगरी का पुनर्निमाण कराया। जिसके बाद सूर्यवंश की अगली 44 पीढ़ियों तक इस नगरी का अस्तित्व चरम पर रहा। लेकिन महाभारत काल में हुए युद्ध के बाद अयोध्या नगरी फिर से उजाड़ हो गई थी। पौराणिक कथा-कहानियों के मुताबिक श्रीराम के जल समाधि और महाभारत युद्ध के बाद उजाड़ हुई इस नगरी के फिर से बसने का वर्णन मिलता है।
हांलाकि श्रीराम जन्म भूमि अयोध्या और यहां बने श्रीराम मंदिर को कई आक्रमणों का सामना करना पड़ा। मुगलों द्वारा अयोध्या को नष्ट करने के लिए कई अभियान भी चलाए गए। मंदिर के विध्वंस के बाद बाबरी ढांचा खड़ा किया गया। लेकिन श्रीराम की नगरी अयोध्या कभी नष्ट नहीं हो सकी। वैसे तो इस नगरी का इतिहास त्रेतायुग से भी पुराना है। लेकिन आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको अयोध्या नगरी में विवाद से लेकर विध्वंस, निर्माण और उद्घाटन तक के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइए जानते हैं अयोध्या नगरी के करीब 500 सालों के बारे में...
आपको बता दें कि रामजन्म भूमि देश के सबसे लंबे चलने वाले केसों में से एक है। इसका इतिहास काफी पुराना है। साल 1528 से लेकर 2023 तक श्रीराम जन्मभूमि के पूरे 495 सालों के इतिहास में कई अहम मोड़ आए। लेकिन इनमें से 9 नवंबर 2019 का दिन काफी खास रहा। क्योंकि इसदिन 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था।
जानिए राम जन्मभूमि का इतिहास
साल 1528 में मुगल बादशाह बाबर के सिपहसालार मीर बाकी विवादित स्थान पर मस्जिद का निर्माण करवाया था। लेकिन हिंदू समुदाय के लोगों ने इस स्थान को लेकर दावा किया कि मस्जिद निर्माण वाला स्थान राम जन्मभूमि है। यहां पर प्राचीन मंदिर हुआ करता था। हिंदू पक्ष द्वारा यह भी बताया गया कि मस्जिद में बने तीन गुंबदों में एक गुंबद के नीचे प्रभु श्रीराम का जन्मस्थान बताया गया।
साल 1853-1949 के बीच राम जन्मभूमि पर जहां मस्जिद का निर्माण कराया गया। वहीं पर साल 1853 में पहली बार आसपास के कई स्थानों में दंगे हुए। वहीं साल 1959 में विवादित स्थान के पास बाड़ लगा दी। इसके बाद हिंदूओं को बाहर चबूतरे के पास और मुस्लिमों को ढांचे के अंदर पूजा करने की इजाजत दे दी।
लेकिन 23 सितंबर 1949 को श्रीराम जन्म भूमि का असली विवाद तब हुआ, जब मस्जिद में श्रीराम की मूर्तियां मिलीं। तब हिंदू समुदाय के लोगों ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यहां पर साक्षात श्रीराम प्रकट हुए। वहीं मुस्लिमों की तरफ से यह आरोप लगाया गया कि किसी ने चुपके से मस्जिद में मूर्तियां रखी हैं। तब उत्तर प्रदेश सरकार ने उन मूर्तियों को वहां से हटाए जाने का आदेश दिया। लेकिन धार्मिक भावना को ठेस पहुंचने और दंगों भड़कने के डर से जिला मैजिस्ट्रेट (डीएम) केके नायर ने इस आदेश में असमर्थता जताई। जिसके बाद सरकार की तरफ से इसको विवादित मानकर इस पर ताला लगा दिया।
इसके बाद साल 1950 में फैजाबाद के सिविल कोर्ट में दो अर्जियां दाखिल की गई। इनमें से एक अर्जी विवादित भूमि पर रामलला की पूजा की इजाजत मांगी गई और दूसरी अर्जी में मूर्ति रखने की इजाजत मांगी गई थी।
फिर साल 1961 में यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने एक अर्जी दाखिल की गई। साथ ही विवादित भूमि पर पजेशन और मूर्तियों को हटाने की मांग की गई।
वहीं 1 फरवरी 1986 में फैजाबाद के जिला जज केएम पांडे ने यूसी पांडे की याचिका पर हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी और विवादित ढांचे से ताला हटाने का आदेश दे दिया।
वीएचपी और शिवसेना समेत कई हिंदू संगठन के लाखों कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे को गिरा दिया। जिसके कारण पूरे देश में सांप्रदायिक दंगे हुए और हजारों की संख्या में लोगों ने अपनी जान गंवाई।
गोधरा ट्रेन साल 2002 में हिंदू कार्यकर्ताओं को लेकर जा रही थी, जिसमें आगजनी कर दी गई और इस घटना में 58 लोगों की मृत्यु हो गई। इसको लेकर गुजरात में दंगे की आग भड़क गई। इस दंगे में करीब 2000 से ज्यादा लोग मारे गए।
साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए विवादित भूमि को रामलला विराजमान, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के बीच तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया।
इसके बाद साल 2011 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी।
वहीं साल 2017 में आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट का सुप्रीम कोर्ट द्वारा आह्वान किया। इस दौरान बीजेपी के कई नेताओं पर आपराधिक साजिश के आरोपों को बहाल किया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च 2019 को मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा और 8 सप्ताह के अंदर कार्यवाही को खत्म किए जाने का आदेश दिया। फिर 1 अगस्त को मध्यस्थता पैनल द्वारा रिपोर्ट पेश की गई। वहीं 2 अगस्त को मध्यस्थता पैनल मामले में सुप्रीम कोर्ट समाधान निकालने कामयाब नहीं रहें। जिसके बाद अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में प्रतिदिन सुनाई होने लगी। वहीं 16 अगस्त को मामले की सुनवाई पूरी हो जाने के बाद फैसले को कोर्ट द्वारा सुरक्षित रख लिया गया।
फिर 9 नवंबर 2019 को श्रीराम जन्म भूमि के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया। इस फैसले के आधार पर 2.77 एकड़ विवादित भूमि हिंदू पक्ष को मिली। वहीं कोर्ट की तरफ से मुस्लिम पक्ष को अलग से 5 एकड़ जमीन मस्जिद के लिए मुहैया कराने का आदेश दिया गया।
पूरे 28 साल बाद यानी की 25 मार्च 2020 को रामलला टेंट से निकलकर फाइबर मंदिर में शिफ्ट हुए और 5 अगस्त को भूमि पूजन का कार्यक्रम किया गया।
साल 2023 में अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि पर रामलला का भव्य मंदिर निर्माण हो समाप्ति की ओर पहुंच चुका है।
अब यानी की 22 जनवरी 2024 को रामलला के भव्य मंदिर का अभिषेक होगा। इस तरह से न जाने कितने सालों से चले आ रहे विवाद का हमेशा के लिए अंत होगा और फिर रामलला की पूजा-अर्चना होने लगेगी।
श्रीराम मंदिर का अभिषेक
करीब 500 साल के लंबे इंतजार और लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार 22 जनवरी 2024 को भव्य राम मंदिर का अभिषेक समारोह होगा। यह राम भक्त और सनातन प्रेमियों के लिए खुशी, उल्लास और भक्ति का पल होगा। राम भक्तों के लिए 22 जनवरी का दिन किसी त्योहार से कम नहीं होगा। क्योंकि 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर में रामलला के अभिषेक और प्राण-प्रतिष्ठा के बाद 24 जनवरी 2024 को पीएम मोदी द्वारा इसका उद्घाटन किया जाएगा। जिसके बाद से सभी श्रद्धालु रामलला के दर्शन कर सकेंगे।