अरविंद घोष ने दर्शन के साथ योगा को भी प्राथमिकता दी

By प्रज्ञा पाण्डेय | Dec 05, 2020

महान दार्शनिक, कवि और राष्ट्रवादी क्रांतिकारी योगभ्यास तथा अपने ज्ञान के लिए पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध थे। श्री अरविंद ने अपने दर्शन के माध्यम से दिव्यता पर प्रकाश डाला और योग की महत्ता को बताया। आज के दिन यानि 5 दिसम्बर को उस महान संत का निधन हुआ था तो आइए हम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर बारे में बताते हैं।

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अरविंद का पूरा नाम अरविंद घोष था। वह एक राष्ट्रवादी होने के साथ दार्शनिक तथा कवि भी थे। उनका मानना था कि आध्यात्मिक विकास के द्वारा मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। उन्हें अपने जीवन काल में योगाभ्यास के जरिए परमात्मा से साक्षात्कार की अनुभूति हुई थी। साथ ही उन्हें यूरोपीय संस्कृति तथा दर्शन की अच्छी जानकारी थी। अरविंद घोष का दर्शन महत्वपूर्ण था उसमें जीवन की विविध पहलुओं का समावेश किया गया है। 


अरविंद घोष का जन्म बंगाल के एक सम्पन्न परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम कृष्ण धन घोष और माता का नाम स्वर्णलता देवी था। उनका जन्म 15 अगस्त 1872 को कोलकाता में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा दार्जिलिंग में हुई थी उसके बाद वह इंग्लैंड गए।


उन्होंने कैम्ब्रिज विश्विविद्यालय में पढ़ाई और विदेशी भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था। इंग्लैंड में उनकी मुलाकात बड़ौदा नरेश से हुई। बड़ौदा नरेश अरबिंद से बहुत प्रभावित हुए और उन्हें अपना प्राइवेट सेक्रेटरी नियुक्त कर लिया। उसके बाद भारत लौटने पर वह पहले बड़ौदा कॉलेज में पहले प्रोफेसर बने और फिर बाद में वाइस प्रिंसीपल भी बन गए। बड़ौदा में फ्रेंच पढ़ाने के दौरान उन्होंने हजारों युवकों को क्रांति की शिक्षा दी। इसके अलावा उन्होंने कोलकाता में भी विभिन्न कॉलेजों में प्राचार्य के रूप में कार्य किया। अरविंद ने अपनी संस्कृति, भाषाओं और योग पर भी गहन अध्ययन किया। 1905 में लार्ड कर्जन ने बंग-भंग की योजना रखी। इस योजना में बंगाल का विभाजन निहित। बंगाल विभाजन से पूरे बंगाल में आक्रोश था अरविंद ने भी बंगाल विभाजन का विरोध किया और वंदे मातरम पत्रिका का प्रकाशन किया। 

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ब्रिटिश सरकार अरविंद की क्रांतिकारी गतिविधियों से परेशान होकर 1908 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें अलीपुर जेल में कैद कर दिया गया। इस घटना को अलीपुर षडयन्त्र केस भी कहा जाता है। अलीपुर जेल में ही उन्हें आध्यात्मिक अनुभूति की प्राप्ति हुई थी। अरविंद घोष के दर्शन में सार्वभौमिक मोक्ष के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है। इसमें आध्यात्मिक मस्तिष्क यौगिक प्रकाशन के जरिए नीचे से ऊपर की ओर जाने का प्रयत्न करता है। 

 

श्री अरविंद दार्शनिक तथा विचारक होने के साथ ही योगी भी थे। उनका दर्शन बहुत महत्वूपूर्ण तथा वह दिव्यता पर बल देते थे। साथ ही उन्होंने योग जीवन को भी प्राथमिकता दी थी। अरविंद घोष ने अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की रचनाएं की थीं उनमें दार्शनिक चिंतन, कविता, नाटक और अन्य लेख शामिल किए जा सकते हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में द लाइफ डिवाइन, द सिंथेसिस आफ योगा, एस्सेज ऑन गीता, कलेक्टेड पोयम्स एंड प्लेज, द ह्यूमन साइकिल, द आईडियल ऑफ ह्यूमन यूनिटी। इनके अलावा ऑन द वेदा, द फाउंडेंशन ऑफ इंडियर कल्चर और ए लीजेंड एंड ए सिंबल भी प्रमुख हैं। 


प्रज्ञा पाण्डेय

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