By नीरज कुमार दुबे | Apr 15, 2024
कांग्रेस और विपक्ष के तमाम नेता दिल्ली में बैठ कर दावे करते हैं कि लोकतंत्र को कुचला जा रहा है, देश में तानाशाही का माहौल बनाया जा रहा है और विपक्ष को जांच एजेंसियों का डर दिखाया जा रहा है। लेकिन जब आप राज्यों में जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि विपक्ष अपनी भूमिका सही ढंग से नहीं निभा रहा है। इस बात का सबसे सशक्त उदाहरण अरुणाचल प्रदेश है। अरुणाचल प्रदेश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव साथ ही हो रहे हैं। राज्य में लोकसभा की दो सीटें हैं जबकि विधानसभा की 60 सीटें हैं। इस चुनाव को लेकर विपक्ष कितना गंभीर है इसका अंदाजा आपको इस बात से ही लग जायेगा कि दस विधानसभा सीटें भाजपा चुनाव से पहले ही निर्विरोध जीत चुकी है क्योंकि इन दस सीटों पर विपक्ष का कोई भी दल अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा कर सका।
राज्य में दशकों तक शासन करने वाली कांग्रेस की इस समय क्या स्थिति है इसे इस बात से भी समझ सकते हैं कि 10 सीटों पर निर्विरोध निर्वाचन के बाद जिन 50 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव कराया जा रहा है उसमें भी कांग्रेस ने सिर्फ 19 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं। यानि कांग्रेस राज्य की 60 में से सिर्फ 19 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसका मतलब यह है कि वह यह चुनाव जीतने के लिए या सरकार बनाने के लिए लड़ ही नहीं रही है। सवाल उठता है कि क्या यही है लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका? सवाल उठता है कि जो दल विपक्ष की भूमिका के साथ न्याय नहीं कर पा रहा वह यदि सत्ता में आया तो क्या कर पायेगा? देखा जाये तो विपक्ष अपनी भूमिका सही ढंग से नहीं निभाये तो लोकतंत्र को खतरा हो सकता है। इसलिए मतदाताओं को चाहिए कि कांग्रेस को मुख्य विपक्ष की भूमिका से भी कुछ समय के लिए बाहर कर किसी और दल को यह अवसर दें। आप विडंबना देखिये कि अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस ने जिन 19 उम्मीदवारों को उतारा है उसमें से 17 नये चेहरे हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस का टिकट लेने के लिए कोई पुराना नेता राजी ही नहीं था इसलिए नये चेहरों को आगे बढ़ाया गया है। संभवतः यही कारण है कि राहुल गांधी ने अरुणाचल प्रदेश में अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार नहीं किया जबकि वह अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा लेकर इस साल के शुरू में अरुणाचल पहुँचे थे।
चुनावों में जनता से किये जा रहे वादों की बात करें तो कांग्रेस एक ओर जहां तमाम तरह के न्यायों की गारंटी देने की बात कर रही है वहीं भाजपा ने 'विकसित भारत, विकसित अरुणाचल प्रदेश' नामक संकल्प पत्र में तमाम वादे जनता से किये हैं। महिला सशक्तिकरण, राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार और आधुनिकीकरण, युवाओं के लिए तमाम सहूलियतें, सरकार की जवाबदेही, राज्य की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए कई और कदम उठाने, राज्य की संस्कृति और पर्यटन को बढ़ावा देने, सबका साथ सबका विकास के सिद्धांत पर आगे बढ़ते रहने, किसानों को आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनाने और राज्य की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाने जैसे कई प्रमुख वादे किये गये हैं जोकि जनता को भा रहे हैं।
आप पूरे अरुणाचल प्रदेश में पाएंगे कि कांग्रेस चुनाव प्रचार से पूरी तरह गायब है जबकि भाजपा के नेता और कार्यकर्ता गली-गली घूम रहे हैं। वैसे अरुणाचल प्रदेश की यह बात अच्छी लगी कि यहां राजनीतिक पार्टियां उत्तर भारत की तरह अनाप शनाप खर्चे नहीं करतीं। यहां लगातार बड़ी रैलियां आयोजित करने से बचा जाता है और लाउडस्पीकरों पर दिनभर अपने उम्मीदवार के लिए प्रचार करते चुनावी वाहनों से मचने वाले शोर भी नहीं सुनाई देते। यहां घर-घर संपर्क और सामाजिक रूप से होने वाले जन एकत्रिकरण के दौरान लोगों को अपने वादों और उपलब्धियों से अवगत कराया जाता है।
अरुणाचल प्रदेश में उम्मीदवारों की बात करें तो 50 विधानसभा सीटों के लिए कुल 133 उम्मीदवार मैदान में हैं। सभी सीटों पर 19 अप्रैल को मतदान होगा। पहले विधानसभा चुनावों की मतगणना लोकसभा चुनावों की मतगणना वाले दिन ही कराने का ऐलान किया गया था लेकिन राज्य विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने के चलते अब दो जून को ही पता चल जायेगा कि राज्य में किस पार्टी की सरकार बनेगी। हम आपको बता दें कि भाजपा के जिन 10 उम्मीदवारों ने निर्विरोध जीत हासिल की है उनमें मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी शामिल हैं। भाजपा यहां सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है इसलिए सवाल उठता है कि क्या बहुमत मिलने पर पेमा खांडू ही फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे या राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह भाजपा यहां भी किसी नये चेहरे को आगे करेगी?
विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सभी 50 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं जबकि विपक्षी कांग्रेस केवल 19 सीटों पर लड़ रही है। इसके अलावा, मेघालय स्थित एनपीपी ने 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं जबकि एनसीपी 14 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) 11 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसके अलावा, अरुणाचल डेमोक्रेटिक पार्टी ने चार सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) एक सीट से लड़ रही है। इसके अलावा 14 निर्दलीय उम्मीदवार भी मैदान में हैं। आंकड़ों के मुताबिक कुल 80 उम्मीदवार पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। विधानसभा चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों में आठ महिलाएं हैं- जो राज्य में अब तक के किसी भी विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक संख्या है। भाजपा ने चार महिलाओं को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस ने तीन महिलाओं को मैदान में उतारा है और एक महिला निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भी चुनावी मैदान में है।
दूसरी ओर, अरुणाचल प्रदेश की दो लोकसभा सीटों की बात करें तो यहां कुल 14 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। अरुणाचल पश्चिम सीट पर आठ उम्मीदवार और अरुणाचल पूर्व सीट पर छह उम्मीदवार मैदान में हैं। एक साथ होने वाले चुनावों में कुल 8,86,848 लोग मतदान करने के पात्र हैं। राज्य में कुल 2,226 मतदान केंद्र हैं और उनमें से 228 तक ही पैदल पहुंचा जा सकता है। लोंगडिंग विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र संख्या 2-पुमाओ प्राइमरी स्कूल में मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक 1,462 है, जबकि ह्युलियांग निर्वाचन क्षेत्र के मालोगम गांव में केवल एक मतदाता है। इसके अलावा, तवांग जिले के मुक्तो निर्वाचन क्षेत्र में मतदान केंद्र संख्या 18-लुगुथांग राज्य का सबसे ऊंचा मतदान केंद्र है, जो 13,383 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। बहरहाल, कुल मिलाकर देखें तो ऐसा लगता है कि यह शांत प्रदेश इस बात को तय कर चुका है कि राज्य और देश के हित में किस पार्टी की सरकार बनानी है।
-नीरज कुमार दुबे