Book Review। सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं को उजागर करती लघुकथाएँ

By दीपक गिरकर | Jan 06, 2025

सहज, सरल व्यक्तित्व के धनी सुपरिचित साहित्यकार श्री शेर सिंह की पुस्तक “समय चक्र” इन दिनों चर्चा में है। शेर सिंह के आलेख, कहानियाँ, कविताएँ, लघुकथाएँ, संस्मरण और पुस्तक समीक्षाएँ निरंतर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। शेर सिंह की प्रमुख कृतियों में “मन देश है, तन परदेश” (कविता संग्रह), “शहर की शराफ़त”, “आस का पंछी”, "शहर की शराफत", "घास का मैदान", "बावला", "चेन्ना माया" (कहानी संग्रह), एक लंबी कहानी की पुस्तिका "रतन का सपना" "यांरा से वॉलोंगॉन्ग", "यायावरी-सिडनी शहर में वे दिन"  (संस्मरण-यात्राएं) शामिल हैं। शेर सिंह राष्ट्र भारती अवार्ड सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। "समय चक्र" शेर सिंह का पहला लघुकथा संग्रह है। देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों और साहित्यिक पत्रिकाओं में आपकी लघुकथाएँ निरंतर प्रकाशित हो रही हैं। लेखक ने सत्य और सच्चाई पर आधारित रचनाएं अधिक लिखी हैं। काल्पनिक एवं मनघड़ंत विषय लेखक को पसंद नहीं है। काल्पनिक अथवा कल्पना अच्छी हो सकती है, लेकिन वे आम जीवन के सत्य से दूर होने के कारण प्रभावित नहीं करती है। सच बेशक कड़वा होता है परन्तु जीवन के अनुभवों से एकाकार कराता है। इस सोच की वजह से लेखक ने जीवन के सकारात्मक पहलुओं, उज्ज्जवल पक्षों को उजागर करने का अधिक प्रयास किया। लेखक शेर सिंह का उद्देश्य यही है कि सत्य के माध्यम से ही हम जीवन की कठिनाइयों और चुनौतियों का सामना कर सकते हैं  और इससे हम अपने जीवन को बेहतर और सकारात्मक रूप से जी सकते हैं।  शेर सिंह ने इस संग्रह की लघुकथाओं में मानवीय संवेदना, सामाजिक सरोकार और पारस्परिक संबंधों का ताना-बाना प्रस्तुत किया है। इस संग्रह की रचनाओं में रचनाकार मानवीय स्वभाव और समाज की सूक्ष्म पड़ताल करते हुए दिखते हैं। इनकी लघुकथाएँ हमारे आसपास की हैं। 


संग्रह की पहली लघुकथा "आजमाया हुआ नुस्खा" लघुकथा दो गहरे मित्रों के रिश्ते में आए परिवर्तन और उनके पेशेवर जीवन में बदलाव को दर्शाती है। शुरू में दोनों मित्र अपने काम में साथ मिलकर उत्कृष्ट प्रदर्शन करते थे, लेकिन जब वार्षिक मूल्यांकन में उनके रेटिंग में अंतर आया, तो उनकी स्थिति और रिश्ते में भी बदलाव आया। एक मित्र को "एक्सेप्शनल" रेटिंग मिली, जबकि दूसरे को "वैरी  गुड" रेटिंग प्राप्त हुई। यह बदलाव उनके वेतन और पे बेंड़ में अंतर लेकर आया, जिससे दोनों के काम करने के तरीके और उनके आपसी रिश्ते में खटास आ गई। लघुकथा का मुख्य मोड़ तब आता है जब "वैरी गुड" रेटिंग वाला मित्र जानबूझकर अपने काम को ठीक से नहीं करता है और परिणामस्वरूप "एक्सेप्शनल" रेटिंग वाले मित्र को अपने वरिष्ठ अधिकारियों से डांट खानी पड़ती है। जब "एक्सेप्शनल" रेटिंग वाले मित्र से उसके बॉस ने यह सवाल किया कि वह अपने मित्र से अच्छे से काम क्यों नहीं ले पा रहा है, तो उसने जवाब दिया कि वह उसे डांटने में संकोच करता है क्योंकि वह उसका मित्र है। इस पर बॉस ने उसे सलाह दी कि यदि वह डांट नहीं खानी चाहता तो उसे अपने मित्र को डांटना शुरू करना चाहिए। इस सलाह के बाद, 'वैरी गुड' रेटिंग वाला मित्र धीरे-धीरे अपने काम में सुधार करने लगता है, क्योंकि उसे यह स्वीकार नहीं था कि वह अपने किसी घनिष्ठ मित्र से रोज़ डांट खाए। इस बदलाव के साथ वह अपने काम में सुधार लाता है, और उनकी मित्रता में भी कुछ सुधार होता है। लघुकथा यह सिखाती है कि पेशेवर रिश्तों में पारदर्शिता और उचित संवाद महत्वपूर्ण होते हैं। 

इसे भी पढ़ें: Book Review। सशक्त, मार्मिक और रोचक उपन्यास

"आदर्श अध्यापक" लघुकथा विद्यालय में प्रिंसिपल और छात्रों के बीच गहरे स्नेह और आपसी प्रेम को दर्शाता है। इस विद्यालय में अनुशासन और विद्यालय का अच्छा वातावरण है। प्रिंसिपल का बच्चों के प्रति वात्सल्य और स्नेहभाव उनकी शिक्षा और नेतृत्व की कुशलता को प्रकट करता है। इस विद्यालय में सिर्फ शिक्षा नहीं, बल्कि एक सकारात्मक और देखभालपूर्ण माहौल भी छात्रों के आत्मविश्वास और खुशी के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आमंत्रित अतिथियों को यह समझ में आया कि इस विद्यालय का माहौल न केवल शिक्षा के लिए, बल्कि छात्रों के मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए भी अनुकूल है। प्रिंसिपल और छात्रों के बीच का स्नेहपूर्ण रिश्ता विद्यालय के अनुशासन और बच्चों के खुश रहने के कारणों में से एक है, जिससे वे आत्मीयता और संतुष्टि का अनुभव करते हैं।


"आस्था की लौ" लघुकथा में कामवाली संतोषी की बेटी शिवरात्रि के दिन निर्जला व्रत रखती है और शंकर भगवान से प्रार्थना करती है कि हमें भी दूसरे लोगों की तरह पैसे वाला बना दो ताकि हमें लोगों के घरों में जाकर झाड़ू बर्तन नहीं करना पड़े। "अपनी-अपनी सोच" लघुकथा में लघुकथा का सूत्रधार जब भुवनेश्वर में साइकिल रिक्शे वाले से पूछता है कि "तुम उड़िया हो या तेलुगु"। तब रिक्शेवाला जवाब देता है "मैं न उड़िया हूँ और न तेलुगु। मैं तो आदिवासी हूँ। तब लघुकथा के सूत्रधार की बोलती बंद हो जाती है। "अपनी-अपनी चिंता" रचना में माँ चाहती थी कि बेटी की शादी हो जाए और बेटी शादी इसलिए नहीं करना चाहती थी कि घर में माँ अकेली रह जायेगी।  दोनों में इसी बात को लेकर शीत युद्ध जारी था। "बेटा-बेटी समानता के पैरोकार" रचना में राम स्वरूप  "बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ" पर आयोजित एक सेमीनार में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहकर प्रतिभागियों को बेटा-बेटी में समानता की वकालत करते हुए जोरदार भाषण देकर घर आए थे। पांच वर्षीय बेटे ने आठ वर्षीय बेटी की शिकायत की कि बड़ी बहन ने मुझे मारा। राम स्वरूप ने आव देखा न ताव, बेटी के कोमल गालों पर तमाचे जड़ दिए। बेटी के दोनों गाल लाल होकर सूज गए। जबकि बेटी का इतना कसूर था कि उसने छोटे भाई को अपने बाल खींचने से मना भर किया था। "मुआवजा" रचना में तीन चार युवक एक पैराग्लाइडिंग कराने वाले को मुआवजे के नाम पर दस हजार रूपए लूट लेते हैं। 


"लागि छूटे ना" एक मार्मिक लघुकथा है जो पाठक को भावुक कर देती है। वृद्ध दंपत्ति का रिश्ते में गहरी भावनात्मक जुड़ाव और उनकी रोज़मर्रा की आदतों की यह रचना हमें जीवन की असलियत और समय के साथ आए परिवर्तनों की याद दिलाता है। पति का अपनी पत्नी की कमी का एहसास करना और उनका चाय के कपों को वैसे ही रख देना, यह दर्शाता है कि वह अब भी अपनी पत्नी के साथ की तलाश कर रहे हैं, जो अब इस दुनिया में नहीं है। इस लघुकथा के माध्यम से लेखक ने यह संदेश दिया है कि प्यार और संबंध समय के साथ शारीरिक रूप से कमज़ोर हो सकते हैं, लेकिन भावनाएँ और यादें हमेशा जीवित रहती हैं। लघुकथा यह भी दर्शाती है कि जब कोई प्रिय व्यक्ति हमें छोड़ जाता है, तो उसकी यादें और उसके द्वारा की गई छोटी-छोटी बातें हमारे जीवन का हिस्सा बन जाती हैं, जो कभी खत्म नहीं होतीं। "वक्त-वक्त की बात" लघुकथा में शहर में रहने वाला मित्र अपने गाँव वाले मित्र को अजनबी निगाह से देखकर आगे निकल जाता है। "साहब का नौकर" लघुकथा में एक अफसर को दूसरे अफसर से यह बताते हुए शर्म आ रही थी कि यह जो बूढ़ा है, उसके पिताजी है। वह अफसर दूसरे को कहता है कि यह बूढ़ा मेरा नौकर है। 

                 

इस संग्रह की अन्य लघुकथाएँ मन को छूकर उसके मर्म से पहचान करा जाती है। इस तरह इस संग्रह में कुल 101 लघुकथाएँ हैं। प्रत्येक लघुकथा अपने अंदर कोई न कोई मूल्य या संदेश लिए हुए है। जीवन की विविध मार्मिक घटनाओं पर रचनाकार की बारीक दृष्टि काबिलेतारीफ है। लेखक शेर सिंह ने इस संग्रह की लघुकथाओं में सामाजिक विसंगतियों और विद्रूपताओं को उजागर किया हैं।  इस संकलन की रचनाएँ अपने आप में मुकम्मल और उद्देश्यपूर्ण हैं। आशा है प्रबुद्ध पाठकों में इस लघुकथा संग्रह का स्वागत होगा। 


पुस्तक  : समय चक्र (लघुकथा संग्रह)  

लेखक  : शेर सिंह

प्रकाशक : न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन, सी-155, बुद्ध नगर, इंद्रपुरी, नई दिल्ली- 110012   

आईएसबीएन नंबर : 978-93-6407-665-4

मूल्य   : 275/- रूपए


- दीपक गिरकर

समीक्षक

28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,

इंदौर- 452016

प्रमुख खबरें

AAP के लोकलुभावन वादों का असर, मतदाता आवेदनों में 5.1 लाख की हुई बढ़ोतरी

उज्बेकिस्तान जा रह था रूसी विमान, अचानक हुई इमरजेंसी लैंडिंग, जानें वजह

Dandruff Treatment: डैंड्रफ की वजह से होना पड़ता है शर्मिंदा तो करें फिटकरी के ये उपाय, स्कैल्प की इचनेस होगी दूर

Nothing Phone (3a) जल्द होगा भारत में लॉन्च, मिलेगा अनोखा डिजाइन और कमाल के फीचर्स