By Anoop Prajapati | Oct 11, 2024
बहुत जल्द ही महाराष्ट्र की सभी 288 सीटों पर विधानसभा चुनाव होने हैं। जानकारी के अनुसार, चुनाव आयोग अक्टूबर में ही चुनावों का ऐलान करने वाला है। जिसको सभी बड़े और छोटे राजनीतिक दलों ने चुनाव को लेकर जोर-शोर से तैयारियां शुरू कर दी हैं। महायुति और महाविकास अघाड़ी में सीट शेयरिंग का फार्मूला तय किया जा रहा है। सीट बंटवारे को लेकर दोनों ही खेमों में गहन मंथन किया जा रहा है। जिससे चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करते हुए महाराष्ट्र की बागडोर अपने हाथों में ली जा सके। राज्य की अंबरनाथ सीट को शिवसेना का गढ़ कहा जाता है। हालांकि, पिछले चुनाव के बाद शिवसेना में दो फाड़ होने के चलते इस बार यहां यह अंदाजा लगाना मुश्किल हो रहा है कि कौन बाजी मारने वाला है।
अंबरनाथ विधानसभा अतीत के आईने से
1978 से लेकर अब तक अंबरनाथ विधानसभा सीट पर कुल 10 विधानसभा चुनाव हुए हैं। जिसमें से 6 बार अकेले शिवसेना ने जीत दर्ज की है। इसके साथ ही यहां दो बार कांग्रेस और एक-एक बार जेएनपी और एनसीपी ने बाजी मारी है। पिछले तीन चुनाव की बात करें तो यहां शिवसेना प्रत्याशी बालाजी किणीकर जीत हासिल करते चले आ रहे हैं। 2009 में उन्होंने करीब 20 हजार वोटों से जीत हासिल की तो 2014 में महज 2 हजार वोटों से चुनाव जीते। लेकिन बात करें पिछले चुनाव की तो उन्होंने 29 हजार से भी ज्यादा मार्जिन से जीत दर्ज की है।
जानिए क्या कुछ कहते हैं जातीय आंकड़े?
कल्याण लोकसभा क्षेत्र और ठाणे जनपद के अंतर्गत आने वाली यह विधानसभा सीट एससी कैटेगरी के लिए रिजर्व है। एससी कैटेगरी में आरक्षित होने के पीछे वजह भी यही है कि यहां दलित वोटर्स का ठीक ठाक दबदबा है। 2019 के आंकड़ों के मुताबिक, कुल 3 लाख 15 हजार मतदाताओं वाली इस सीट पर 46 हजार से ज्यादा दलित वोटर्स हैं। इसके साथ ही यहां 23 हजार 600 के आस पास मुस्लिम मतदाता भी हैं। इसके अलावा इस सीट पर आदिवासी वोटर्स की संख्या भी लगभग 10 हजार है। शत प्रतिशत वोटर्स शहरी क्षेत्र के हैं इसलिए चुनाव में शहरी मुद्दे भी हावी रहते हैं।
कौन दिखाएगा इस चुनाव में दांव?
इस सीट पर शुरुआत के तीन चुनाव और 2004 को छोड़ दिया जाए तो यहां 10 चुनाव में से कुल 6 बार शिवसेना ने बाजी मारी है। वहीं पिछले तीन चुनाव में डॉ. बालाजी किणीकर (अब शिवसेना एकनाथ शिंदे) ने जीत दर्ज की है। 2019 में मार्जिन भी अच्छा खासा रहा था। इस लिहाज से देखा जाए तो एक बार फिर शिवसेना और बालाजी किणीकर का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है। लेकिन देखना दिलचस्प होगा कि पार्टी में फूट के बाद क्या कुछ असर पड़ता है।