By अनन्या मिश्रा | Mar 31, 2023
शीला दीक्षित एक कुशल राजनीतिज्ञ के तौर पर जानी जाती थी। उन्होंने देश की राजधानी में न सिर्फ एक दशक तक शासन किया, बल्कि दिल्लीवासियों का जीवनस्तर ऊपर उठाने का प्रयास भी किया। यूपी की बहू और पंजाब की बेटी कहा जाने वाली शीला दीक्षित 3 बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। उनका नाम कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शामिल था। शीला दीक्षित को राजनीति की सबसे कद्दावर महिला नेता माना जाता था। आज ही के दिन यानी की 31 मार्च को हुआ था। उनका राजनीतिक करियर जितना ज्यादा दमदार रहा, निजी जिंदगी भी उतनी ही ज्यादा रोचक थी।
कहा जाता है कि शीला दीक्षित ने राजनीति के दांव पेंच अपने ससुर से सीखे थे। वहीं उनकी लव स्टोरी भी किसी फिल्मी कहानी के जैसी है। राजनीति में आने के बाद वह युवा महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनी और कई राजनीतिक उपलब्धियों को अपने नाम किया। अपने काम करने के तरीके से वह कांग्रेस नेताओं की टीम का एक बड़ा नाम बन गईं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर शीला दीक्षित की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें...
जन्म और शिक्षा
ब्रिटिश शासन काल में शीला दीक्षित का जन्म 21 मार्च 1938 को पंजाब के कपूरथला में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरूआती शिक्षा कॉन्वेंट आफ जीसस एंड मैरी स्कूल से पूरी की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह दिल्ली चली आईं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के मिरांडा हाउस कॉलेज से उन्होंने कला में स्नातक और स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की और बाद में पीएचडी किया।
शीला दीक्षित की लव स्टोरी
शीला दीक्षित ने अपनी किताब 'सिटीजन दिल्ली: माय टाइम्स माय लाइफ' में अपनी निजी जिंदगी की कुछ बातें शेयर की थीं। इस किताब में उनकी लव स्टोरी के बारे में भी जिक्र किया गया है। शीला दीक्षित ने स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व राज्यपाल व केंद्रीय मंत्री रहे उमा शंकर दीक्षित के बेटे विनोद दीक्षित से शादी की थी। यह प्रेम विवाह था। शीला और विनोद एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। यहीं से दोनों के प्यार की शुरूआत हो गई। शीला दीक्षित ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि चांदनी चौक के पास एक बस में सफर करने के दौरान विनोद ने उन्हें शादी के लिए प्रपोज किया था।
लेकिन जब दोनों के लव स्टोरी की खबर शीला दीक्षित के परिवार को हुई तो अंतरजातीय विवाह की अड़चन के कारण शादी की बात ठंडी पड़ गई। वहीं कॉलेज खत्म होने के बाद जहां विनोद ने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की तो वहीं शीला दीक्षित दिल्ली के एक स्कूल में पढ़ाने लगीं। एक बार जब विनोद ने शीला को अपने पिता उमाशंकर दीक्षित मिलवाया तो उन्हें शीला काफी ज्यादा पसंद आईं। शीला दीक्षित ने कहा कि विनोद की मां को इस शादी के लिए मनाना होगा। शादी के लिए विनोद और शीला ने करीब 2 साल तक इंतजार किया। आखिर में दोनों परिवारों को शादी के रजामंद होना पड़ा।
राजनीतिक करियर
कॉलेज खत्म होने के बाद बतौर टीचर कार्य करने वाली शीला दीक्षित ने शादी के बाद ससुर की सहायता करना शुरू कर दिया। उनके ससुर उमाशंकर दीक्षित उन दिनों इंदिरा गांधी की सरकार में मंत्री थे। इसलिए शीला दीक्षित अपने ससुर की कानूनी सहायता करती थीं। यहीं से इंदिरा गांधी को शीला दीक्षित के बारे में पता चला तो उन्होंने शीला को राजनीति में आने का ऑफर दिया। जिसके बाद उन्हें संयुक्त राष्ट्र कमिशन के दल के सदस्य के तौर पर नामित किया। यहीं से शीला दीक्षित के राजनीतिक सफर की शुरूआत हुई। साल 1970 में वह युवा महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनीं। फिर साल 1984 से 1989 तक कन्नौज सीट से शीला दीक्षित लोकसभा सदस्य बनीं।
इसके अलावा उन्होंने केंद्रीय मंत्री के पद पर काम किया। शीला दीक्षित ने दो प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल में बतौर राज्यमंत्री संसदीय कार्य मंत्रालय का कार्यभार भी संभाला। साल 1990 में वह महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को लेकर आंदोलन में उतर पड़ीं। इसके बाद साल 1998 में वह पहली बार दिल्ली की सीएम बनी और फिर लगातार तीन बार यानि की 15 साल तक दिल्ली की सत्ता संभाली। फिर साल 2014 में उन्हें केरल का राज्यपाल बनाया गया। लेकिन उन्होंने कुछ महीने बाद ही राज्यपाद पद से इस्तीफा दे दिया। वहीं साल 2015 में वह एक बार फिर दिल्ली के वर्तमान सीएम अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव में खड़ी हुईं, लेकिन यहां पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
मौत
दिल्ली की सत्ता पर लंबे समय तक काबिज रहने वाली शीला दीक्षित अपने अंतिम समय में भी राजनीति में एक्टिव थीं। वह दिल की मरीज थीं। 20 जुलाई 2019 को दिल का दौरा पड़ने के कारण 81 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था। डॉक्टर्स ने बताया था कि बीते कुछ सालों में उनकी कई सर्जरी हुई थी। अंतिम समय में उनका दिल सामान्य से तेज धड़क रहा था। शीला को हमेशा से गांधी-नेहरू परिवार का करीबी माना जाता था।