Ajit Pawar की घर वापसी के विरोध में नहीं हैं Sharad Pawar, Maharashtra Politics में फिर होगा उलटफेर!

By नीरज कुमार दुबे | Jul 18, 2024

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों के नतीजों से साफ हो गया है कि शरद पवार द्वारा स्थापित राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को भले उनके भतीजे अजित पवार ने हथिया लिया हो लेकिन जनता का समर्थन बड़े पवार के साथ ही है। हाल में जिस तरह से भाजपा के भीतर अजित पवार से नाता तोड़ने की मांग बढ़ने लगी है और जिस तरह अजित पवार की पार्टी के नेता और जनप्रतिनिधि बड़े पवार के साथ जाने लगे हैं उससे सवाल उठा है कि क्या अजित पवार भी घर वापसी कर सकते हैं? हम आपको बता दें कि हाल ही में अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार ने शरद पवार से मुलाकात की थी। इसके अलावा अजित के करीबी छगन भुजबल भी शरद पवार से लंबी मुलाकात कर चुके हैं। इस बीच, आरएसएस से करीब से जुड़े दो पत्रिकाओं ने भी जिस तरह अजित पवार के साथ भाजपा के गठबंधन पर सवाल उठाये हैं उससे माना जा रहा है कि भगवा दल भी अब अजित पवार से पीछा छुड़ाने के मूड़ में है।


दूसरी ओर, शरद पवार के रुख को देखें तो वह भी अजित से उतना नाराज नजर नहीं आ रहे हैं और उनकी घर वापसी के विरोध में भी नहीं हैं। जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-शरदचंद्र पवार (राकांपा-एसपी) के प्रमुख शरद पवार से इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी में किसी भी नेता के संभावित प्रवेश पर निर्णय सामूहिक होगा। शरद पवार ने पुणे में संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कई मुद्दों पर बात की। जब पत्रकारों ने विशेष रूप से पूछा कि क्या अजित पवार के लिए राकांपा-एसपी में जगह है, तो शरद पवार ने कहा, "इस तरह के फैसले व्यक्तिगत स्तर पर नहीं लिए जा सकते। संकट के दौरान मेरे साथ खड़े रहे मेरे सहयोगियों से पहले पूछा जाएगा।"

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शरद पवार की पार्टी ने क्या कहा?


हम आपको यह भी बता दें कि शरद पवार की पार्टी ने यह भी दावा किया है कि भाजपा उप मुख्यमंत्री अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को महाराष्ट्र में सत्तारुढ़ ‘महायुति’ से अलग होने का संदेश दे रही है। राकांपा (एसपी) के प्रवक्ता क्लाईड क्रास्टो ने कहा है कि लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद भाजपा महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनाव जीतने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसको एहसास हो गया है कि अजित पवार के नेतृत्व वाली पार्टी के साथ गठबंधन को जारी रखने से उसकी संभावनाओं को नुकसान पहुंचेगा। उन्होंने कहा, ‘‘सच्चाई यह है कि महाराष्ट्र की जनता ने बड़े पैमाने पर राकांपा (एसपी) के पक्ष में मतदान किया है। भाजपा भी इस पूरे मामले में सावधानी से काम कर रही है क्योंकि वह चुनाव जीतना चाहती है।’’ क्रास्टो ने कहा कि अजित पवार को साथ लाने के फैसले ने भाजपा के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। इसी वजह से पार्टी को महाराष्ट्र में कई लोकसभा सीटें गंवानी पड़ी हैं। महाराष्ट्र की चुनावी राजनीति में यही मौजूदा वास्तविकता है। ऐसा लगता है कि लोगों ने भाजपा के राकांपा और इसी तरह मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ गठबंधन को स्वीकार नहीं किया है।


सुनेत्रा और भुजबल की बड़े पवार से मुलाकात


जहां तक सुनेत्रा और भुजबल की शरद पवार से मुलाकात की बात है तो आपको बता दें कि राज्यसभा सदस्य सुनेत्रा पवार ने मंगलवार को पुणे के मोदीबाग इलाके का दौरा किया था। मोदीबाग इलाके में ही अजित पवार के चाचा शरद पवार का घर है। हालांकि परिवार की ओर से कहा गया है कि सुनेत्रा पवार उपमुख्यमंत्री अजित पवार की बहन से मिलने मोदीबाग गईं थीं। छगन भुजबल की शरद पवार से मुलाकात के एक दिन बाद सुनेत्रा पवार का यह दौरा हुआ। इस पर भुजबल ने कहा कि शरद पवार, पवार परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं। इसलिए, अगर वह (सुनेत्रा) उनसे मिलीं हैं तो मुझे लगता है कि उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। भुजबल की पवार से मुलाकात के बारे में यह बताया जा रहा है कि वह चाचा के पास भतीजे का संदेश लेकर पहुँचे थे। कुछ सूत्रों का यह भी कहना है कि चूंकि भुजबल को लग रहा है कि पार्टी में उनकी बात नहीं सुनी जा रही है इसलिए वह एक बार फिर पाला बदलने को तैयार हैं।


विवेक ने उठाये भाजपा के विवेक पर सवाल


जहां तक आरएसएस की पत्रिका में अजित पवार के संबंध में की गयी टिप्पणी की बात है तो आपको बता दें कि एक साप्ताहिक अखबार ने लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खराब प्रदर्शन के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) से गठबंधन के उसके फैसले को कसूरवार ठहराया है। अखबार में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि भाजपा के अजित पवार के नेतृत्व वाले राकांपा गुट से हाथ मिलाने के बाद जनभावनाएं पूरी तरह से पार्टी के खिलाफ हो गईं। लेख के मुताबिक, उसने भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों से बात की और इन सभी ने कहा कि वे राकांपा से हाथ मिलाने के पार्टी के फैसले से सहमत नहीं थे। अखबार ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच व्याप्त असंतोष को “कम करके आंका गया।” उसने यह भी कहा कि मध्य प्रदेश में बेहतर समन्वय और शासन एवं निर्णय लेने की प्रक्रिया में कार्यकर्ताओं को दिए गए महत्व ने राज्य की लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने में भाजपा की मदद की। आरएसएस से जुड़े साप्ताहिक अखबार ‘विवेक’ ने मुंबई, कोंकण और पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र में 200 से अधिक लोगों पर की गई अनौपचारिक रायशुमारी के आधार पर यह लेख प्रकाशित किया। लेख में कहा गया है, “भाजपा या संगठन (संघ परिवार) से जुड़े लगभग हर व्यक्ति ने कहा कि वह राकांपा (अजित पवार के नेतृत्व वाले) के साथ गठबंधन करने के भाजपा के फैसले से सहमत नहीं है। हमने 200 से अधिक उद्योगपतियों, व्यापारियों, चिकित्सकों, प्रोफेसर और शिक्षकों की राय जानी। इन सभी ने माना कि भाजपा-राकांपा गठबंधन को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में व्याप्त असंतोष को कम करके आंका गया।”


लेख में कहा गया है कि राकांपा से हाथ मिलाने के बाद जनभावनाएं पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ हो गईं। राकांपा की वजह से गणित गड़बड़ाने के बाद पार्टी की भावी रणनीति को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। लेख के मुताबिक, भाजपा की एक ऐसे दल के रूप में छवि बन गई, जो नेताओं को मांझने की पुरानी संगठनात्मक प्रक्रिया को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए दूसरी पार्टी के नेताओं को खुद में शामिल करती है। लेख में कहा गया है कि इस प्रक्रिया से पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर अटल बिहारी वाजपेयी और राज्य स्तर पर गोपीनाथ मुंडे, प्रमोद महाजन, नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे दिग्गज नेता मिले।

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