By ललित गर्ग | Jan 21, 2020
दो साल से कैंसर से जूझ रहे पत्रकारिता के एक महान् पुरोधा पुरुष, मजबूत कलम एवं निर्भीक वैचारिक क्रांति के सूत्रधार, उत्कृष्ट राष्ट्रवादी, भाजपा के पूर्व सांसद और पंजाब केसरी के मुख्य सम्पादक अश्विनी कुमार अब हमारे बीच नहीं रहे। वे 63 वर्ष की उम्र में अठारह जनवरी, 2020 को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में जिन्दगी एवं मौत के बीच जूझते हुए हार गये, आखिर मौत जीत गयी। एक संभावनाओं भरा हिन्दी पत्रकारिता का सफर ठहर गया, उनका निधन न केवल पत्रकारिता के लिये बल्कि भारत की राष्ट्रवादी सोच के लिये एक गहरा आघात है, अपूरणीय क्षति है। ‘मिन्ना’ नाम से प्रसिद्ध अश्विनीजी का जीवन सफर आदर्शों एवं मूल्यों की पत्रकारिता की ऊंची मीनार है। उनका निधन एक युग की समाप्ति है।
शहीदों और निर्भीक पत्रकारों के परिवार की परंपरा के चमकते सितारे अश्विनी कुमार अमर शहीद लाला जगत नारायण के पौत्र और शहीद रमेश चंद्र के पुत्र थे। किरण के साथ वे परिणय सूत्र में बंधे और फिर उनके घर में पुत्र आदित्य, आकाश और अर्जुन की किलकारियां गूंजीं। वे जितने सफल जननायक थे उतने ही कुशल पारिवारिक नेतृत्व के धनी थे। उन्हें निर्भीक विचारों, स्वतंत्र लेखनी और बेबाक सम्पादकीय टिप्पणियों के लिये जाना जाता रहा है। उनको पढ़ने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में है और अपने निर्भीक लेखन से वे काफी लोगों के चहेते थे। तमाम उग्रपंथी ताकतों की तरफ से लगातार धमकियां मिलने के बावजूद उन्होंने अपने लेखन की धार को कम नहीं होने दिया। उन्होंने पत्रकारिता में उच्चतम मानक स्थापित किये। वे न केवल अपने कॉलम के जरिये राष्ट्र की ज्वलंत समस्याओं को सशक्त तरीके से प्रस्तुति देते रहे बल्कि गरीबों, अभावग्रस्तों, पीड़ितों और मजलूमों की आवाज बनते रहे और उनकी बेखौफ कलम के सामने सत्ताएं हिल जाती थीं। अपनी कलम के जरिये उन्होंने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी कलम जब भी चली उन्होंने लाखों लोगों की समस्याओं को सरकारों और प्रशासन के सामने रखा और भारतीय लोकतंत्र में लोगों की आस्था को और मजबूत बनाने में योगदान दिया।
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अश्विनीजी को हम भारतीयता, पत्रकारिता एवं भारतीय राजनीति का अक्षयकोष कह सकते हैं, वे चित्रता में मित्रता के प्रतीक थे तो गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, निडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे। वे एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व थे, जिन्हें पत्रकार जगत का एक यशस्वी योद्धा माना जाता है। उन्होंने आमजन के बीच, हर जगह अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। लाखों-लाखों की भीड़ में कोई-कोई अश्विनी जैसा विलक्षण एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति जीवन-विकास की प्रयोगशाला में विभिन्न प्रशिक्षणों-परीक्षणों से गुजर कर महानता का वरण करता है, विकास के उच्च शिखरों पर आरूढ़ होता है और अपनी मौलिक सोच, कर्मठता, कलम, जिजीविषा, पुरुषार्थ एवं राष्ट्र-भावना से समाज एवं राष्ट्र को अभिप्रेरित करता है। वे भारतीय पत्रकारिता, खेल-जगत एवं राजनीति का एक आदर्श चेहरा थे। उन्होंने आदर्श एवं संतुलित समाज निर्माण के लिये कई नए अभिनव दृष्टिकोण, सामाजिक सोच और कई योजनाओं की शुरुआत की। वे मूल्यों की पत्रकारिता एवं समाजसेवा करने वाले जनसेवक थे। देश और देशवासियों के लिये कुछ खास करने का जज्बा उनमें कूट-कूट कर भरा था। वे एक स्थापित क्रिकेट खिलाड़ी थे, राष्ट्रीय स्तर पर ईरानी ट्राफी और रणजी ट्राफी में नाम कमाने के बाद ‘मिन्ना’ ने लालाजी की शहादत के चलते बैट-बाल छोड़कर कलम थाम ली।
11 जून 1956 को जन्मे अश्विनी कुमार ने गुरु नानक देव विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासिल की और 21 साल की उम्र में ही उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल की। इसके बाद वह अमेरिका के कैलिफोर्निया चले गये और पत्रकारिता में सर्टिफिकेट कोर्स करने के बाद वह भारत लौटे और अपने दादाजी और पिताजी के मार्गदर्शन में पंजाब केसरी समूह के प्रकाशन और प्रसारण कार्यों को देखने लगे। अश्विनी कुमार ने अपनी योग्यता, दूरदर्शिता और पत्रकारिता की समझ को साबित किया और ग्रुप को आगे ले जाने में बड़ी भूमिका निभाई। वे समाज के लिये पूरी तरह समर्पित थे और समाज के उत्थान, एकता और सामाजिक समरसता के लिये उन्होंने एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन पंचनंद की स्थापना की जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिये अपने प्राणों को आहूत करने वाले लाखों अनाम लोगों को सम्मान दिलाना है। उन्होंने ऐसे लोगों की भलाई के लिये भी काम किया जिन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिये अपनी मातृभूमि को छोड़ना पड़ा। इस उद्देश्य के लिये और ऐसे लोगों की याद में एक स्मारक बनाने के लिये कुरूक्षेत्र के नजदीक 20 एकड़ भूमि भी खरीदी गई और उस पर स्मारक बनाने के लिये योजना पर भी उन्होंने काम किया।
अश्विनी कुमार एक ऐसे जीवन की दास्तान है जिन्होंने अपने जीवन को बिन्दु से सिन्धु बनाया है। उनके जीवन की दास्तान को पढ़ते हुए जीवन के बारे में एक नई सोच पैदा होती है। जीवन सभी जीते हैं पर सार्थक जीवन जीने की कला बहुत कम व्यक्ति जान पाते हैं। अश्विनीजी के जीवन कथानक की प्रस्तुति को देखते हुए सुखद आश्चर्य होता है एवं प्रेरणा मिलती है कि किस तरह से दूषित राजनीतिक परिवेश एवं आधुनिक युग के संकुचित दृष्टिकोण वाले समाज में जमीन से जुड़कर आदर्श जीवन जिया जा सकता है, आदर्श स्थापित किया जा सकता है। और उन आदर्शों के माध्यम से देश की पत्रकारिता, राजनीति, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैयक्तिक जीवन की अनेक सार्थक दिशाएँ उद्घाटित की जा सकती हैं। उन्होंने व्यापक संदर्भों में जीवन के सार्थक आयामों को प्रकट किया है, वे आदर्श जीवन का एक अनुकरणीय उदाहरण हैं, मूल्यों पर आधारित पत्रकारिता, समाजसेवा एवं राजनीति को समर्पित एक लोककर्मी का जीवनवृत्त है। उनके जीवन से कुछ नया करने, कुछ मौलिक सोचने, पत्रकारिता एवं राजनीति को मूल्य प्रेरित बनाने, सेवा का संसार रचने, सद्प्रवृत्तियों को जागृत करने की प्रेरणा मिलती रहेगी।
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अश्विनी कुमार वर्तमान भारतीय राजनीति के कद्दावर नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता भरी नीतियों से प्रभावित होकर वे उनके समर्थक बन गये और उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिये सक्रिय राजनीति में उतरने का फैसला किया। 2014 में अश्विनी कुमार ने भाजपा के टिकट पर हरियाणा के करनाल से लोकसभा का चुनाव लड़ा और बड़े अंतर से जीत कर वह देश की संसद में पहुंचे। लेकिन वे एक राजनीतिज्ञ के रूप में सदा दूसरों से भिन्न रहे। घाल-मेल से दूर। भ्रष्ट राजनीति में बेदाग। विचारों में निडर। टूटते मूल्यों में अडिग। घेरे तोड़कर निकलती भीड़ में मर्यादित। उनके जीवन से जुड़ी विधायक धारणा और यथार्थपरक सोच ऐसे शक्तिशाली हथियार थे जिसका वार कभी खाली नहीं गया। वे जितने उच्च नैतिक-चारित्रिक राजनेता एवं पत्रकार थे, उससे अधिक मानवीय एवं सामाजिक थे। अश्विनी कुमार को एक सुलझा हुआ और कद्दावर नेता, जनसेवक एवं पत्रकार माना जाता रहा है। उनका निधन एक आदर्श एवं बेबाक सोच की पत्रकारिता का अंत है। वे सिद्धांतों एवं आदर्शों पर जीने वाले व्यक्तियों की श्रृंखला के प्रतीक थे। उनके निधन को पत्रकारिता एवं राजनैतिक जीवन में शुद्धता की, मूल्यों की, राजनीति की, आदर्श के सामने राजसत्ता को छोटा गिनने की या सिद्धांतों पर अडिग रहकर न झुकने, न समझौता करने की समाप्ति समझा जा सकता है।
अश्विनीजी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व सफल राजनेता, प्रखर पत्रकार, खिलाड़ी, कुशल प्रशासक के रूप में उनकी अनेक छवि, अनेक रंग, अनेक रूप में उभरकर सामने आते रहे हैं। वे समर्पित-भाव से पत्रकारिता-धर्म के लिये प्रतिबद्ध थे। आपके जीवन की दिशाएं विविध एवं बहुआयामी थीं। आपके जीवन की धारा एक दिशा में प्रवाहित नहीं हुई, बल्कि जीवन की विविध दिशाओं का स्पर्श किया। यही कारण है कि कोई भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र आपके जीवन से अछूता रहा हो, संभव नहीं लगता। आपके जीवन की खिड़कियाँ समाज एवं राष्ट्र को नई दृष्टि देने के लिए सदैव खुली रही। उनकी सहजता और सरलता में गोता लगाने से ज्ञात होता है कि वे गहरे मानवीय सरोकार से ओतप्रोत एक अल्हड़ व्यक्तित्व थे। बेशक अश्विनीजी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन अपने सफल पत्रकार जीवन के दम पर वे हमेशा भारतीय पत्रकारिता के आसमान में एक सितारे की तरह टिमटिमाते रहेंगे।
-ललित गर्ग