By रेनू तिवारी | Nov 30, 2022
कहते है कि विज्ञान के पास तीसरी आंख होती हैं और वह आने वाले खतरों को भांप लेता है। जैसे ग्रीन हाउस गैसे के कारण पृथ्वी का तापनाम बढ़ रहा है और यह आने वाले समय में विनाशकारी हो सकता हैं। पृथ्वी के बढ़ते तापमान (Global Warming) का असर साफ तौर पर दिखाई दे रहा हैं। जलवायु में परिवर्तन के कारण ग्लैशियर पिघटने (Melting Glaciers) लगे हैं। ओजोन परत में छेद हो गया हैं। बाढ़, भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने अपना रूप भी विकराल कर लिया हैं। इसके अलावा प्रकृति से छेड़छाड़ करने का नतीजा हाल ही में पूरे विश्व ने कोरोना वायरस के रूप में देखा हैं। अब इससे बड़ा खतरा पृथ्वी पर मंडरा रहा हैं। दरअसल शोधकर्ताओं के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन तेजी से प्राचीन पर्माफ्रॉस्ट (Permafrost) को पिघला रहा है, जो मनुष्यों के लिए एक नया खतरा पैदा कर सकता है। जलवायु परिवर्तन (Climate change) के कारण प्राचीन पर्माफ्रॉस्ट पिछल रहे हैं और पर्माफ्रॉस्ट के नीचे सदियों से दबे कई खतरनाक वायरस हैं। ये ऐसे वायरस है तो लाखों साल से धरती और प्राचीन पर्माफ्रॉस्ट की नीचे की सतहों में दबे हुए हैं लेकिन आज भी संक्रमित हैं। यह इतने खतरनाक है कि अगर यह मानवीय दुनिया में फैल गये तो विश्व तबाही और इंसान खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगा।
हाल ही में शोधकर्ताओं ने अपनी एर नयी खोज से इस खतरे के बारे में दुनिया को सतर्क किया हैं। यूरोपीय शोधकर्ताओं ने रूस के साइबेरिया क्षेत्र में पर्माफ्रॉस्ट से एकत्रित प्राचीन नमूनों की जांच की। इसमें 48,500 से पर्माफ्रॉस्ट में दबे एक वायरस की जांच भी की गयी और पाया गया कि ये वायरस संक्रमित हैं। साथ ही ये मानवता के लिए खतरा हैं। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने 13 नए रोगजनकों को पुनर्जीवित किया और उनकी विशेषता बताई, जिसे उन्होंने ज़ोंबी वायरस (zombie viruses) कहा और पाया कि जमे हुए मैदान में कई सहस्राब्दियों तक फंसे रहने के बावजूद वे संक्रामक बने रहे। ज़ोंबी वायरस मिलने से पहले 2013 में पैंडोरावायरस येडोमा (वायरस) की विज्ञानिकों ने खोज की थी। यह 30,000 साल पुराने वायरस था। पैंडोरावायरस येडोमा का रिकॉर्ड जौंबी ने तोड़ दिया हैं क्योंकि 48,500 साल पुराना माना जा रहा हैं।
वैज्ञानिकों ने लंबे समय से चेतावनी दी है कि वायुमंडलीय वार्मिंग के कारण पर्माफ्रॉस्ट का विगलन मीथेन जैसी पहले से फंसी हुई ग्रीनहाउस गैसों को मुक्त करके जलवायु परिवर्तन को और खराब कर देगा। लेकिन सुप्त रोगजनकों पर इसका प्रभाव कम समझा गया है। रूस, जर्मनी और फ्रांस के शोधकर्ताओं की टीम ने कहा कि उनके द्वारा अध्ययन किए गए विषाणुओं को फिर से सजीव करने का जैविक जोखिम "पूरी तरह से नगण्य" था क्योंकि उन्होंने लक्षित उपभेदों, मुख्य रूप से अमीबा रोगाणुओं को संक्रमित करने में सक्षम थे। एक वायरस का संभावित पुनरुद्धार जो जानवरों या मनुष्यों को संक्रमित कर सकता है, बहुत अधिक समस्याग्रस्त है, उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि खतरे को वास्तविक दिखाने के लिए उनके काम को अलग किया जा सकता है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है, "इस प्रकार यह संभावना है कि प्राचीन परमाफ्रॉस्ट पिघलने पर इन अज्ञात वायरस को छोड़ देगा।"