इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (आईआईएससी), बंगलुरु के शोधकर्ताओं ने आँखों की हरकत से नियंत्रित कंप्यूटर इंटरफेस आधारित रोबोटिक बाँह बनायी है। इसे बनाने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह स्पीच एवं मोटर अक्षमता से ग्रस्त लोगों के लिए मददगार हो सकती है।
स्पीच एवं मोटर अक्षमता; सेलेब्रल पाल्सी जैसे डिस्ऑर्डर के कारण होने वाली एक शारीरिक स्थिति है। इससे ग्रस्त लोगों के लिए कई तरह के शारीरिक कार्यों को अंजाम देना मुश्किल होता है। इन कार्यों में जॉयस्टिक, माउस या ट्रैकबॉल जैसे उपकरणों का संचालन या फिर स्पीच रिकग्निशन सिस्टम का उपयोग शामिल है। शोधकर्ताओं का कहना है कि निगाहों से नियंत्रित यह कंप्यूटर इंटरफेस उन्हें विभिन्न कार्यों को करने में मदद कर सकता है।
आईआईएससी द्वारा जारी बयान में बताया गया है कि यह एक नॉन इन्वेसिव इंटरफेस है, जो आँखों की हरकत से संचालित हेड-माउंटेड सिस्टम युक्त दूसरे उपकरणों से अलग है। वेबकैम और कंप्यूटर से संचालित इस इंटरेफेस को आईआईएससी के सेंटर फॉर प्रोडक्ट डिजाइन ऐंड मैन्यूफैक्चरिंग के शोधकर्ताओं ने विकसित किया है। इस इंटरफेस को बनाने के लिए आईआईएससी के शोधकर्ताओं ने चेन्नई की संस्था विद्यासागर के स्पीच एवं मोटर अक्षमता से ग्रस्त छात्रों के साथ मिलकर काम किया है।
इस परियोजना का नेतृत्व कर रहे आईआईएसी के शोधकर्ता प्रोफेसर प्रदीप्ता बिस्वास ने बताया कि “सेलेब्रल पाल्सी से ग्रस्त अधिकतर छात्र निगाहों की अनियंत्रित गतिविधि के कारण अपने दृश्य क्षेत्र (विजुअल फील्ड) में किसी एक बिंदु पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते। वे दृश्य क्षेत्र के हिस्सों को समान रूप से नहीं देख पाते।” उपयोगकर्ताओं के चेहरे की लाइव वीडियो फीड के विश्लेषण के लिए शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर विज़न और मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म का उपयोग किया है। इसे ऑग्मेंटेड रियलिटी एप्लीकेशन से जोड़ा गया है, ताकि उपयोगकर्ता रोबोटिक बांह के उपयोग से चीजों को उठाने या फिर रखने जैसे काम कर सकें।
निगाहों से नियंत्रित इस रोबोटिक बांह का मुख्य उपयोग स्पीच एवं मोटर अक्षमता से गंभीर रूप से ग्रस्त लोगों का फैब्रिक प्रिंटिंग जैसे कार्यों के जरिये पुनर्वास करना है। इस तरह के कामों में उन्हें मदद की जरूरत पड़ती है, क्योंकि ऐसे काम वे बिना मदद नहीं कर पाते हैं। रोबोटिक बांह के उपयोग से स्पीच एवं मोटर अक्षमता से ग्रस्त लोग आँखों की हरकत से मैकेनिकल कार्य कर सकते हैं, जिससे उन्हें हैंडीक्राफ्ट जैसे कामों में मदद मिल सकती है।
इस इंटरफेस को चेन्नई की विद्यासागर संस्था में लगाया गया है। प्रोफेसर बिस्वास ने कहा है कि इंटरफेस और रोबोटिक बांह का परीक्षण एवं मूल्यांकन अंतिम उपयोगकर्ताओं के साथ करना इस अध्ययन का एक अहम योगदान है। उनका कहना है कि इस उपकरण में सुधार करके इसका उपयोग स्पीच एवं मोटर अक्षमता के शिकार लोगों की ई-लर्निंग में किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह इंटरफेस भविष्य की तकनीकों के विकास की दिशा में एक कदम है, जो यह सुनिश्चत कर सकती हैं कि शैक्षणिक प्रशिक्षण और कामकाजी जिंदगी में शारीरिक अक्षमता बाधा न बने। प्रोफेसर बिस्वास कहते हैं कि यह सिस्टम ऑटोमोटिव एवं ऐरोनॉटिकल एप्लीकेशन्स के साथ-साथ स्मार्ट मैन्यूफैक्चरिंग में उपयोग होने वाले कोलेबोरेटिव रोबोट्स के विकास में उपयोगी हो सकता है।
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