तीन तलाक को अपराध करार देने वाले कानून के वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय विचार करने के लिए सहमत हो गया। उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक पर लागू किए गए नए कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। जस्टिस एनवी रमन्ना और जस्टिस अजय रस्तोगी की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका पर सुनवाई की। पीठ ने वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद से कहा कि वह ‘इस पर विचार करेंगे।’खुर्शीद एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए थे। खुर्शीद ने पीठ से कहा कि एक साथ तीन तलाक को दंडात्मक अपराध बनाने और करीब तीन साल की सजा होने सहित इसके कई आयाम है इसलिए शीर्ष न्यायालय को इस पर विचार करने की जरूरत है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने उच्चतम न्यायालय याचिका डाली थी। जिसमें कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट एक साथ 3 तलाक को अमान्य कह चुका है, ऐसे में कानून की ज़रूरत नहीं थी। याचिका में कहा गया कि पति के जेल जाने से पत्नी की मदद नहीं होगी। लापरवाही से जान लेने जैसे अपराध के लिए 2 साल की सज़ा है और तलाक़ के लिए 3 साल की।
गौरतलब है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 1 अगस्त को तीन-तलाक विधेयक को मंजूरी दे दी, जिसके अंतर्गत सिर्फ तीन बार 'तलाक' बोल कर तत्काल तलाक देना अपराध की श्रेणी में आ गया है जिसके लिए तीन साल तक की सजा दी जा सकती है। तीन-तलाक या मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 संसद के दोनों सदनों में पहले ही पारित हो चुका है।