हिंदू धर्म के अनुसार सावन का महीना बहुत ही पवित्र और शुभ माना गया है। 14 जुलाई से शिव जी की भक्ति का खास महीना सावन शुरू हो रहा है। ये महीना 12 अगस्त तक रहेगा। सावन में शनि अपनी खुद की राशि में वक्री रहेगा। गुरु 29 जुलाई से अपनी ही राशि मीन में वक्री हो जाएगा। सावन महीने में इन दोनों का ग्रहों अपनी-अपनी राशि में वक्री होना बहुत खास योग है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि सावन में शिव जी के साथ ही, सूर्य, चंद्र, शनि और गुरु के लिए विशेष पूजा करने से सभी नौ ग्रहों के दोष दूर हो सकते हैं। 20 जुलाई को सूर्य पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेगा। इसके बाद अच्छी बारिश के योग बन सकते हैं। सावन हिन्दी पंचांग का पांचवां महीना है। इस महीने की अंतिम तिथि पूर्णिमा पर श्रवण नक्षत्र रहता है, इस वजह से इसे श्रावण और बोलचाल की भाषा में सावन कहा जाता है। 2 अगस्त को नाग पंचमी और 11 अगस्त को रक्षा बंधन मनाया जाएगा।
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि वहीं सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई को पड़ेगा। और सावन का अंतिम सोमवार 8 अगस्त को पड़ रहा है। इस साल सावन में कुल 4 सोमवार आ रहे हैं। वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस समय मंत्र जप का भी बहुत महत्व होता है। 'ओम नमः शिवाय' मंत्र का जप करने से सभी तरह के दुख-दर्द दूर हो जाते हैं। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक शिव भगवान को यदि प्रसन्न करना है तो सावन माह में पूरे विधि विधान के साथ उनकी पूजा जरूर करनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि सावन मास भगवान शिव का सबसे पसंदीदा माह है और इस दौरान यदि कोई श्रद्धालु पूरी आस्था के साथ भोलेनाथ की आराधना करता है तो उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है।
सावन मास में हुआ था शिव विवाह
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि पौराणिक मान्यता है कि राजा दक्ष के यज्ञ में आत्मदाह करने के बाद माता सती का दूसरा जन्म माता पार्वती के रूप में हुआ था। माता पार्वती ने शिवजी को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और सावन माह में शिवजी ने माता पार्वती से विवाह किया था, इसलिए उन्हें यह माह प्रिय है। ब्रह्मा के पुत्र सनत कुमारों ने शिवजी से एक बार पूछा था कि आपको सावन मास क्यों प्रिय है, तब शिवजी ने उपरोक्त बात सनत कुमारों को बताई थी।
पंचदेवों में से एक हैं शिव जी
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि किसी भी शुभ काम की शुरुआत पंचदेवों की पूजा के साथ की जाती है। पंचदेवों में शिव जी, विष्णु जी, गणेश जी, दुर्गा जी और सूर्य देव शामिल हैं। इस संबंध में श्री गणेश अंक में लिखा है कि आकाश तत्व के स्वामी विष्णु जी, अग्रि तत्व की स्वामी देवी दुर्गा, वायु तत्व के स्वामी सूर्य देव, पृथ्वी तत्व के स्वामी शिव जी और जल तत्व के स्वामी गणेश जी हैं। पंच तत्व अग्रि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल से मिलकर ही हमारा शरीर बना होता है। इसी वजह से पंचदेवों का महत्व काफी अधिक माना गया है।
सावन में रोज करनी चाहिए सूर्य की आराधना
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि सावन माह में रोज सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए और सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। सावन में अधिकतर जगहों पर बारिश की वजह से सूर्य के दर्शन नहीं हो पाते हैं, ऐसी स्थिति सूर्य की प्रतिमा या तस्वीर के दर्शन करना चाहिए और पूर्व दिशा की ओर मुंह करके अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। इस दौरान सूर्य के मंत्र ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जप करना चाहिए।
भगवान शिव का जलाभिषेक
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि इसके अलावा यह भी मान्यता है कि जब देव और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था तो इस दौरान सबसे पहले विष निकला था और इसे शिवजी ने अपने गले में धारण कर लिया था। इसके कारण भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा। विष के कारण उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगा तो देवताओं ने उन पर शीतल जल डालकर उस ताप को शांत किया। तभी से शिवजी को जल अति प्रिय लगने लगता है।
बारिश में डूब जाते हैं कई शिवलिंग
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि देश में कई शिव मंदिर ऐसे हैं, जहां बारिश के दौरान जलधारा सीधे शिवलिंग पर ही आकर गिरती है या बारिश के कारण शिवलिंग डूब जाते हैं। शिवलिंग के ऊपर एक कलश लटका रहता है, जिससे बूंद-बूंद जल शिवलिंग का अभिषेक करता है, जिसे जलाधारी कहते है। इसलिए भी सावन मास का विशेष महत्व है।
चंद्रमा व मां गंगा से भी सीधे संबंध
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि शिवजी के मस्तक पर सुशोभित चंद्रमा और गंगा मैया का संबंध भी सावन मास से है। दरअसल कैलाश पर्वत पर सभी स्थान पर बर्फ जमी रहती है और उसके पास मानसरोवर भी स्थित है। भगवान शिव को जल से काफी लगाव है। भगवान विष्णु तो जल में ही निवास करते हैं।
सावन माह में हर साल ससुराल आते है भगवान शिव
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि साथ ही ये भी धार्मिक मान्यता है कि भगवान शिव सावन मास में ही धरती पर अवतरित हुए थे। उसके बाद जब ससुराल गए तो उनका खूब धूमधाम से स्वागत किया गया। इस कारण से ऐसा माना जाता है कि हर वर्ष सावन माह में अपने ससुराल में आते हैं। इन्हीं कारणों के चलते भगवान शिव को सावन का महीना अत्यंत प्रिय है।
सावन सोमवार की तिथियां
14 जुलाई गुरुवार- श्रावण मास का पहला दिन
18 जुलाई सोमवार- श्रावण मास का पहला सोमवार
25 जुलाई सोमवार- श्रावण सोमवार व्रत
01 अगस्त सोमवार- श्रावण सोमवार व्रत
08 अगस्त सोमवार- श्रावण सोमवार व्रत
12 अगस्त शुक्रवार- श्रावण मास का अंतिम दनि
- अनीष व्यास
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक