By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Oct 14, 2021
नयी दिल्ली| विपक्ष के कुछ नेताओं ने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा महात्मा गांधी और वीर सावरकर के संदर्भ में की गई एक टिप्पणी को लेकर बुधवार को उन पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि वह ‘इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रहे हैं।’
सिंह ने मंगलवार को कहा था कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने अंग्रेजी शासन को दया याचिकाएं दी थीं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश और एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन औवैसी ने महात्मा गांधी द्वारा से 25 जून, 1920 को सावरकर के भाई को एक मामले में लिखे गए पत्र की प्रति ट्विटर पर साझा की और आरोप लगाया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह गांधी द्वारा लिखी गई बात को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहे हैं।
रमेश ने कहा, ‘‘राजनाथ सिंह जी मोदी सरकार की कुछ गंभीर और शालीन लोगों में से एक हैं। परंतु लगता है कि वह भी इतिहास के पुनर्लेखन की आरएसएस की आदत से मुक्त नहीं हो सके हैं। उन्होंने महात्मा गांधी ने 25 जनवरी, 1920 को जो लिखा था, उसे अलग रूप से पेश किया है।’’
ओवैसी ने कहा कि सावरकर की ओर से पहली दया याचिका 1911 में जेल जाने के छह महीनों बाद दी गई थी और उस समय महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में थे। इसके बाद सावरकर ने 1913-14 में दया याचिका दी। भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने सावरकर का बचाव करते हुए ट्वीट कर कहा, ‘‘कांग्रेस सावरकर जी का विरोध करती है जो ब्रिटिश प्रशासन के साथ कभी नहीं जुड़े और मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान का उदाहरण प्रस्तुत किया। बहरहाल, कुछ लोग माउंटबेटन के घर पर नियमित रूप से रात्रिभोज करते थे।’’
भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख अमित मालवीय ने सावरकर के बारे में गांधी की एक टिप्पणी को उद्धृत करते हुए कहा, ‘‘वह बहुत समझदार हैं। वह बहादुर हैं, वह देशभक्त हैं। मौजूदा सरकार में निहित बुराई को उन्होंने मुझसे पहले देख लिया था। वह भारत से बहुत प्रेम करने के कारण अंडमान में हैं। वह सरकार में वह बड़े पद पर आसीन रहे होते।’’
राजनाथ सिंह ने मंगलवार को कहा था कि राष्ट्र नायकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में वाद-प्रतिवाद हो सकते हैं लेकिन विचारधारा के चश्मे से देखकर वीर सावरकर के योगदान की उपेक्षा करना और उन्हें अपमानित करना क्षमा योग्य और न्यायसंगत नहीं है। राजनाथ सिंह ने उदय माहूरकर और चिरायु पंडित की पुस्तक ‘‘वीर सावरकर हु कुड हैव प्रीवेंटेड पार्टिशन’’ के विमोचन कार्यक्रम में यह बात कही।
उन्होंने यह भी कहा था कि महात्मा गांधी के कहने पर सावरकर ने अंग्रेजों के समक्ष दया याचिका दी थी। राजनाथ सिंह की इस टिप्पणी को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि वीर सावरकर ने वर्ष 1925 में जेल से बाहर आने के बाद अंग्रेजों के फूट डालो और राज करो के एजेंडे पर काम किया और उन्होंने सबसे पहले दो राष्ट्र की बात कही थी।
बघेल ने रायपुर संवाददाताओं से कहा, ‘‘मुझे एक बात बताइए। महात्मा गांधी उस समय कहां वर्धा में थे, और ये (वीर सावरकर)कहां सेल्युलर जेल में थे। इनका संपर्क कैसे हो सकता है। जेल में रहकर ही उन्होंने दया याचिका मांगी और एक बार नहीं आधा दर्जन बार उन्होंने मांगी।
एक बात और है सावरकर ने माफी मांगने के बाद वह पूरी जिंदगी अंग्रेजों के साथ रहे। उसके खिलाफ एक शब्द नहीं बोले। बल्कि जो अंग्रेजों का एजेंडा है ‘फूट डालो राज करो’। उस एजेंडे पर काम करते रहे।’’
भाजपा की सहयोगी जद (यू) के नेता केसी त्यागी ने कहा कि गांधी और सावरकर के बीच आदान-प्रदान किए गए पत्रों को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘यह सच है कि सावरकर कई वर्षों तक जेल में रहे। लेकिन यह भी सच है कि उन्होंन माफी मांगी और ब्रिटिश शासन के साथ समझौते के बाद बनी सहमति से वह छूटे।’’
महाराष्ट्र में कांग्रेस की सहयोगी शिवसेना सांसद संजय राउत ने बुधवार को कहा कि वीर सावरकर ने कभी भी अंग्रेजों से माफी नहीं मांगी। उन्होंने पुणे में कहा कि जेल में सजा काटने के दौरान एक अलग रणनीति अपनाई जाती है।
राउत ने कहा, यदि सावरकर ने ऐसी रणनीति अपनाई थी, तो इसे माफी मांगना नहीं कह सकते। हो सकता है कि सावरकर ने ऐसी रणनीति अपनाई हो। सावरकर ने अंग्रेजों से कभी माफी नहीं मांगी।
सावरकर के पौत्र रंजीत सावरकर ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी ने सभी राजनीतिक कैदियों के लिए आम माफी मांगी थी। उन्होंने यह भी कहा कि यदि स्वतंत्रता सेनानी ने अंग्रेजों से माफी मांगी होती तो उन्हें कोई न कोई पद दिया जाता।