By अजय कुमार | Sep 03, 2024
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने 2 लाख 45 हजार कर्मचारियों का वेतन रोकने का निर्णय लिया है। यह कार्रवाई उन कर्मचारियों के खिलाफ की गई है जिन्होंने बार-बार की चेतावनी के बावजूद अपनी संपत्ति का विवरण सरकार के मानव संपदा पोर्टल पर अपलोड नहीं किया। दो दिन पहले राज्य सरकार ने राजकीय सेवा में तैनात सभी आईएएस, आईपीएस, पीसीएस, और पीपीएस अधिकारियों का वेतन जारी किया था। इसी के साथ सभी अन्य कर्मचारियों का वेतन भी जारी किया जाना था, लेकिन मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह के आदेशानुसार, केवल 6 लाख 2 हजार 75 कर्मचारियों का वेतन जारी किया गया, जबकि बाकी 2 लाख 45 हजार कर्मचारियों का वेतन रोक दिया गया।
उत्तर प्रदेश में कुल 8 लाख 46 हजार 640 कर्मचारी राजकीय सेवा में कार्यरत हैं। सरकार ने हाल ही में सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अपनी संपत्ति का विवरण 31 अगस्त तक मानव संपदा पोर्टल पर अपलोड करने का निर्देश दिया था। इस संदर्भ में लगातार कर्मचारियों को आगाह किया गया था, फिर भी 2 लाख 45 हजार कर्मचारियों ने यह जानकारी उपलब्ध नहीं कराई।
17 अगस्त को मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने एक शासनादेश जारी किया था, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि 31 अगस्त तक संपत्ति का ब्यौरा नहीं देने वाले कर्मचारियों का वेतन रोका जाएगा। यह शासनादेश एक सख्त चेतावनी थी, लेकिन इसके बावजूद 29 प्रतिशत कर्मचारियों ने अपने संपत्ति का विवरण अपडेट नहीं किया। शिक्षा, टेक्सटाइल, सैनिक कल्याण, ऊर्जा, खेल, कृषि और महिला कल्याण विभाग के कर्मचारियों में इस निर्देश का पालन करने की दर सबसे कम रही। खासतौर पर शिक्षा विभाग के कर्मचारियों में इस आदेश का अनुपालन कम देखा गया है।
गृह विभाग के अनुसार, पुलिस विभाग के कई जवान भी इस सूची में शामिल हैं जिन्होंने अभी तक अपनी संपत्ति का विवरण नहीं दिया। विभाग ने बताया कि त्योहारों और पुलिस भर्ती परीक्षा के चलते पुलिसकर्मी अधिक व्यस्त थे, जिसके कारण वे संपत्ति का विवरण समय पर अपडेट नहीं कर पाए। विभागीय अधिकारियों ने इस स्थिति से शासन को अवगत कराया है और पुलिसकर्मियों को संपत्ति का विवरण देने के लिए अतिरिक्त समय देने की मांग की है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि संपत्ति का विवरण देने के मामले में कोई रियायत नहीं दी जाएगी। जो कर्मचारी अब भी निर्देशों का पालन नहीं करेंगे, उनके खिलाफ और भी कड़ी कार्रवाई की जा सकती है। इस कदम का उद्देश्य सरकारी सेवा में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है।