By प्रभासाक्षी न्यूज नेटवर्क | Aug 02, 2024
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पंकज मिथल ने आरक्षण नीति पर नए सिरे से विचार करने की वकालत करते हुए बृहस्पतिवार को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा 1961 में लिखे गए एक पत्र का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था।
न्यायमूर्ति मिथल ने कहा, ‘‘पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 27 जून, 1961 को सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को संबोधित अपने पत्र में किसी भी जाति या समूह को आरक्षण और विशेषाधिकार देने की प्रवृत्ति पर दुख जताया था तथा कहा था कि ऐसी प्रथा को छोड़ दिया जाना चाहिए और नागरिकों की मदद जाति के आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर करने पर जोर दिया जाना चाहिए।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति मदद की हकदार हैं, लेकिन किसी भी तरह के आरक्षण के रूप में नहीं, विशेषकर सेवाओं में।’’ प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से बृहस्पतिवार को व्यवस्था दी कि राज्यों को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) में उपवर्गीकरण करने की अनुमति दी जा सकती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन समूहों के भीतर और अधिक पिछड़ी जातियों को आरक्षण दिया जाए।
नेहरू ने अपने पत्र में कहा था, ‘‘मैं चाहता हूं कि मेरा देश हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने। जिस क्षण हम दोयम दर्जे को बढ़ावा देते हैं, हम खो जाते हैं।’’ उन्होंने पत्र में लिखा था, ‘‘पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र वास्तविक तरीका अच्छी शिक्षा का अवसर देना है।
इसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, जो अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है। बाकी सबकुछ एक तरह की बैसाखी का प्रावधान है, जो शरीर की ताकत या स्वास्थ्य में कोई वृद्धि नहीं करता है।