एआई की जिम्मेदारियां (व्यंग्य)

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By संतोष उत्सुक | Mar 20, 2025

एआई की जिम्मेदारियां (व्यंग्य)

एआई उर्फ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा किया जा रहा बहुत कुछ समझ में नहीं आता है। यह भ्रम रहता है कि कोई कलात्मक वस्तु होगी लेकिन इसका अर्थ तो असल में नकली है। इंटेलिजेंस यानी बुद्धि तो बहुत अमूल्य होती है, सब के पास नहीं होती लेकिन कम मिलने वाली चीज़ भी कृत्रिम हो जाए तो लगता है ज़्यादा फायदेमंद नहीं रहती। अब तक हुए एआई के प्रयोग से निकले परिणाम बता रहे हैं कि नई नकली बुद्धि, पुरानी असली बुद्धि से ज्यादा प्रभावशाली है। इसने असली को फेल कर दिया है।


पिछले दिनों इसने लाखों कारों की पार्किंग को आसान बनाया। मिर्च किसानों की आय दोगुना कर दी। भविष्य में होने वाली बीमारियों का अनुमान लगा रही है। वास्तव में देखा जाए तो यह बिगड़े हुए वाहन चालकों को, कहीं भी पार्क कर देने वालों को पार्किंग करना तो नहीं सिखा पाएगी। क्या एआई उन चालकों के दिमाग में यह सुविचार पैदा कर सकती है कि अपनी आदतें सुधारें। मिर्च उत्पादकों की आय दुगना कर सकती है। क्या यह पत्नी के गुस्से या गलती के कारण, सब्जी में हुई ज़्यादा मिर्च को कम कर सकती है। शायद नहीं, उसके लिए तो आटे की गोलियां ही डालनी पड़ेंगी या फिर पंद्रह बीस वीडियो देखनी पड़ेंगी तब शायद कई समाधान सामने हों और नया असमंजस पैदा हो जाए।  भविष्य में होने वाली बीमारी के अनुमान अगर ज्योतिषियों के अंदाजों जैसे हुए तो दिलचस्प रहेगा। बेचारा इंसान अपने भूतकाल का लबादा उतार नहीं पाता, वर्तमान उसे रौंद कर रखता है उसे बेहतर भविष्य के लिए नए ज्यादा उपाय करने होंगे। 

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सुना है तेज़ी से बदल रही अर्थव्यवस्था के इम्तहान में भी असली बुद्धि फेल हो गई है। लगता है एआई इसमें मदद कर सकती है। असली व्यवस्था तो हमारे शासक पार्टी के आर्थिक नीति निर्धारकों, राजनेताओं और प्रशासकों के दिल और दिमाग में रहती है। एआई लाभार्थियों को समय पर मदद मिलनी आसान कर सकती है लेकिन क्या यह सभी तरह की भूख खत्म कर सकती है। यह भी पता चला है कि शेरों की आबादी जानने और उनका व्यवहार समझने के लिए नकली बुद्धि सॉफ्ट वेयर बनाया गया है। क्या हमारे असली असामाजिक शेरों का दुर्व्यवहार समझने के लिए कुछ कर सकती है।


आलू की असली गुणवत्ता भी नकली बुद्धि परख रही है। क्या यह आलू और अन्य सब्जियों को पालीथिन में पैक करना रुकवा सकती है। फलों को समय से पहले पकाने वालों को सज़ा दिलवा सकती है। हमारे असली राष्ट्रीय खेल क्रिकेट की कमेंट्री, कृत्रिम बुद्धि से करवाई जा रही है। क्या यह हमारे राजनेताओं, धार्मिक नेताओं और सामाजिक अभिनेताओं की अनैतिक कमेंट्री को सदबुद्धि की राह पर ला सकती है। भ्रष्टाचार खाने की आदत छुड़ाने के लिए नया आचार डाल सकती है। हे भगवान्! अब तो एआईजी पर ही अंधविशवास करना होगा।  


- संतोष उत्सुक

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