By अभिनय आकाश | Aug 29, 2020
''हम सिमटते गए उनमें और वो हमें भुलाते गए, हम मरते गए उनकी बेरुखी से, और वो हमें आजमाते गए''
संसद 14 सितंबर से सजेगी, हंगामा खूब सुनेंगे। मुद्दें खूब उठेंगे। इन सब के बीच संसद के मॉनसून सत्र से पहले कांग्रेस ने कई नियुक्तियां की हैं। संसद के सत्र में मोदी सरकार को घेरने के लिए पांच-पांच लोगों की टीम बनाई गई है। इसके लिए पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गौरव गोगोई को लोकसभा में पार्टी का उपनेता और रवनीत सिंह बिट्टू को डिप्टी व्हिप नियुक्त किया है। वहीं, राज्यसभा की टीम में वरिष्ठ नेता अहमद पटेल और महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल को जोड़ा गया है। कांग्रेस ने जयराम रमेश को राज्यसभा में पार्टी का चीफ व्हिप बनाया है। गम में कुछ गम का मशगला कीजिए, दर्द की दर्द से दवा कीजिए। पूर्णकालिक एवं जमीनी स्तर पर सक्रिय अध्यक्ष बनाने और संगठन में ऊपर से लेकर नीचे तक बदलाव की मांग को लेकर सोनिया गांधी को 23 वरिष्ठ नेताओं की ओर से पत्र लिखे जाने से सोनिया गांधी बहुत आहत हुई थीं। राहुल गांधी भी बहुत आहत और क्रोधित दिखे थे। गांधी परिवार के दर्द की दवा कांग्रेस पार्टी ने पांच सदस्यों की समिति बनाए जाने से की जिसमें लेटर लिखने वाले जी-23’ नेताओं का पत्ता साफ कर दिया गया है। इससे एक बात साफ हो गया है कि कांग्रेस आलाकमान असंतुष्ट गुट के नेताओं से न तो समझौते के लिए न ही पार्टी में स्पेस देने के लिए तैयार है।
जब सारी दुनिया सो रही होगी तो भारत जीवन और आजादी की करवट के साथ उठेगा। 1947 में 14-15 अगस्त की मध्य रात्रि में नेहरू ने आजादी के सपनों की खुश्बों इन्ही सपनों के साथ बिखेरी थी। शायद उस वक्त देश भी नेहरू के उन सपनों में भावी हिन्दुस्तान की तस्वीर देख रहा था। कांग्रेस ने गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हिन्दुस्तान को देखा है। आजादी की हवा में हिन्दुस्तान को सांस लेते देखा है। संविधान को बनते देखा है। संसद को बैठते देखा। जम्हूरियत को मजबूत होते देखा। खुद को टूटते हुए देखा है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में अपने साथ दलों को जुड़ते हुए भी देखा है। सवा सौ साल से हिन्दुस्तान को देखा है। इंग्लैंड की लेबर पार्टी, जमर्नी की सोशल डेमोक्रेट पार्टी और अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी की बराबरी करते कांग्रेस ने खुद में एक इतिहास समेटा हुआ है। इतिहास 1885 के वक्त का जब मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कालेज में कांग्रेस की बुनियाद पड़ी। कांग्रेस में समय समय पर किस तरह बगावत भड़की या मतभेदों के चलते पार्टी में खेमेबाज़ी हुई और नतीजा ये हुआ कि पार्टी किसी न किसी तरह टूटी। देश की सबसे पुरानी सियासी पार्टी में इन दिनों भीतरी असंतोष की चर्चा के बीच जानें की अतीत में भी विद्रोह होता रहा है। लेकिन उसे संभाल लिया गया। इस बार कहा जा रहा है कि ऐसे हालात तब बने हैं, जब इतिहास में कांग्रेस अपने सबसे खराब दौर से गुज़र रही है।